इंसाफ की डगर पर चलेगी भारत जोड़ो न्याय यात्रा

Edited By ,Updated: 09 Jan, 2024 06:06 AM

bharat jodo nyay yatra will run on the path of justice

कांग्रेस द्वारा घोषित भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने बचपन में सुने इस गीत की याद दिलाई :

कांग्रेस द्वारा घोषित भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने बचपन में सुने इस गीत की याद दिलाई :

इंसाफ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के। 

संविधान की प्रस्तावना में ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय’ के वादे के एक दशक बाद फिल्म ‘गंगा जमुना’ के लिए शकील बदायूंनी का लिखा और हेमंत कुमार की मधुर आवाज में स्वरबद्ध हुआ यह गीत हमें देशभक्ति और न्याय के अंतरंग संबंध की याद दिलाता है। इस गीत के बोल हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हम इंसाफ या न्याय की कितनी गहरी सोच के वारिस हैं। ‘अपने हों या पराए, सबके लिए हो न्याय/ देखो कदम तुम्हारा हरगिज न डगमगाए’। 

ये पंक्तियां न्याय की एक ऐसी समझ की ओर इशारा करती हैं जो किसी भी कटघरे में बंधने को अभिशप्त नहीं हैं, देश की सीमा से भी नहीं। यहां इंसाफ अपने-पराए के किसी भेद को मानने के लिए तैयार नहीं है। भारत का गौरव दूसरों से ऊंचा होने में नहीं बल्कि पूरी मानवता को ऊपर उठाने में है : ‘इन्सानियत के सर पर इज्जत का ताज रखना/ तन-मन भी भेंट देकर भारत की लाज रखना’। गीत हमें यह भी आगाह करता है कि भारत की लाज ‘सच्चाइयों के बल पर’ ही रखी जा सकती है। 

पिछले 63 साल में भारत का सफर हमें इंसाफ की डगर से बहुत दूर ले आया है। हम हर सवाल को अपने-पराए की नजर से देखते हैं अगर शिकार मेरे अपने धर्म या जाति का नहीं है तो हम हर किस्म के अन्याय को बर्दाश्त करने को नहीं बल्कि उसका महिमा मंडन करने को तैयार हैं। सुदूर अतीत में हुए या काल्पनिक अन्याय का बदला लेने को  हम न्याय समझ बैठे हैं। इंसानियत के सिर पर ताज रखने की बजाय हम दूसरे विश्व युद्ध के बाद के सबसे बड़े कत्लेआम को वैधता का जामा पहनाने में जुटे हैं। घर में हो रहे अन्याय के ऊपर झूठ का पर्दा डाल हम विश्व गुरु कहलाने की  फूहड़ कोशिश में जुटे हैं। 

ऐसे में कांग्रेस पार्टी द्वारा न्याय यात्रा की घोषणा करना अगर उम्मीद जगाता है तो कई सवाल भी खड़े करता है। राजनीतिक हलकों में इस भारत जोड़ो न्याय यात्रा को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है, और यह सही भी है। अगर कांग्रेस चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए यह यात्रा कर रही है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। एतराज तब हो सकता है अगर इस जीत के लिए वह नफरत और झूठ का सहारा ले। अगर कोई भी पार्टी चुनाव जीतने के लिए न्याय, सत्य, अहिंसा, समता और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों का सहारा लेना चाहती है तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। 

यहां यह सवाल खड़ा होता है कि इस यात्रा में न्याय का मतलब क्या है? कांग्रेस की तरफ से जारी आधिकारिक घोषणा में न्याय की अवधारणा को संवैधानिक भाषा यानी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय का संदर्भ दिया गया है। यह सही दिशा में संकेत करता है, फिर भी अमूर्त है। सबसे पहले तो इस यात्रा को न्याय के समकालीन संदर्भ से जुडऩा होगा। आजादी के बाद से आम जनता के लिए न्याय को अलग-अलग मुहावरों में व्यक्त किया गया है। 70 और 80 के दशक में न्याय का मतलब था ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ यानी जनता के लिए जीवन यापन की न्यूनतम जरूरतें। औसत जनता का मुहावरा 90 का दशक आते-आते बदल चुका था। अब उन्हें जरूरत थी ‘बिजली, सड़क, पानी’ की, यानी कि सिर्फ जीवन यापन से आगे बढ़कर कुछ न्यूनतम सार्वजनिक सुविधाओं की। 

लेकिन आज जनता की आकांक्षाएं और आगे बढ़ चुकी हैं। हल्ला बोल के नेता अनुपम इस नई आकांक्षा को ‘कमाई, पढ़ाई और दवाई’ का नाम देते हैं। आज देश के नागरिक को राशन चाहिए, बिजली-पानी भी लेकिन वह उस नेता और सरकार की तलाश कर रहा है जो हर युवा को रोजगार दे सके, हर बच्चे को शिक्षा के समान और अच्छे अवसर दे सके और सभी नागरिकों को स्वास्थ्य की नि:शुल्क और अच्छी सुविधा दे सके। भारत जोड़ो न्याय यात्रा को इन नई आकांक्षाओं के साथ जोड़ना होगा। 

इन आकांक्षाओं के साथ न्याय करने के लिए इन्हें ठोस योजनाओं और घोषणाओं का स्वरूप देना होगा ताकि जनता को भरोसा हो सके कि यह एक और जुमला नहीं है। बेरोजगारी के संकट का मुकाबला करने के लिए रोजगार के अधिकार की अवधारणा को ठोस नीति में बदलना होगा। इसके लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी के साथ-साथ राजस्थान में लागू की गई शहरी रोजगार गारंटी और शिक्षित बेरोजगारों के लिए मुफ्त अप्रैंटिसशिप जैसी योजनाओं का खाका पेश करना होगा। स्वास्थ्य की गारंटी के लिए केवल बीमा पर निर्भर होने की बजाय प्राथमिक चिकित्सा केंद्र से लेकर सरकारी जिला अस्पताल की व्यवस्था को  सुदृढ़ करना होगा, इनमें मुफ्त डॉक्टर के साथ-साथ मुफ्त टैस्ट और दवाई की व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी होगी। राजस्थान की चिरंजीवी योजना उसका आधार बन सकती है। शिक्षा के अवसरों में समानता लाने के लिए के.जी. यानी शिशुशाला से पी.जी. यानी स्नातकोत्तर तक गुणवत्ता वाली शिक्षा में समान अवसर सुनिश्चित करने होंगे। 

इसी से जुड़ी और सबसे बड़ी चुनौती है न्याय की इस अवधारणा के लिए राजनीतिक आधार बनाना, जिसके अभाव में यह अवधारणा सिर्फ कागजी बनी रहेगी। आज के भारत में अन्याय के शिकार वर्गों की पहचान करना कठिन नहीं है। महिला, बेरोजगार, युवा, गरीब, मजदूर और किसान के साथ-साथ उन सामाजिक समुदायों को भी चिन्हित करना होगा जो आज भी सामाजिक अन्याय का दंश झेल रहे हैं। दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज की आवाज उठाते समय घुमंतू समाज, पसमांदा समुदाय,अति पिछड़े और महादलित की आवाज को मुखरित करना इस यात्रा की नैतिक और राजनीतिक जिम्मेवारी है। ‘दुनिया के रंज सहना और कुछ न मुंह से कहना/ सच्चाइयों के बल पे आगे को बढ़ते रहना/ रख दोगे एक दिन तुम संसार को बदल के/ इंसाफ की डगर पे’।-योगेन्द्र यादव

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