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भाजपा और टी.एम.सी. एक ही सिक्के के दो पहलू

Edited By ,Updated: 13 Apr, 2021 04:47 AM

bjp and t m c two sides of the same coin

यदि भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत चाहती है तो तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में विपक्ष नहीं चाहती। दोनों दल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, यह कहना है पश्चिम बंगाल के कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का जिन्होंने कांग्रेस के लैफ्ट तथा इंडियन

यदि भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत चाहती है तो तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में विपक्ष नहीं चाहती। दोनों दल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, यह कहना है पश्चिम बंगाल के कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का जिन्होंने कांग्रेस के लैफ्ट तथा इंडियन सैकुलर फ्रंट के साथ गठबंधन को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। कांग्रेस 92 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 

एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल तथा देश की राजनीति को लेकर बातें कीं। उनके अनुसार संयुक्त मोर्चा पश्चिम बंगाल के लोगों को भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस के प्रतिस्पर्धी साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक वास्तविक विकल्प देना चाहता है। 

पश्चिम बंगाल में हम चुनावों के मध्य में से गुजर रहे हैं तो यह चुनाव कैसा रहेगा? इस पर रंजन ने कहा कि, ‘‘हमने पश्चिम बंगाल में कभी कोई एक ऐसा विधानसभा चुनाव नहीं देखा जहां पर भाजपा ने मतदाताओं को साम्प्रदायिक प्रचार के माध्यम से बांटने की कोशिश नहीं की। दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व में राज्य के लोग 10 वर्षों से प्रताडऩा झेल रहे हैं।’’ यह देखना दिलचस्प है कि तृणमूल कांग्रेस जिसके पास राज्य में दबाया हुआ लोकतंत्र है, लोगों को यह बता रही है कि वह लोकतंत्र के पुनर्निर्माण के लिए कोशिश कर रही है। लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पश्चिम बंगाल की संस्कृति का एक अटूट अंग है और हम उसको बढ़ावा देते हैं। 

रंजन का मानना है कि जो लोग लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं और राज्य को साम्प्रदायिक आक्रामकता से बचाना चाहते हैं, वे संयुक्त मोर्चे से हमारे साथ जुड़े हैं। इसने न केवल अपनी छाप छोड़ी है बल्कि लोगों का समर्थन भी जुटा रहा है। लोग संयुक्त मोर्चा की मुहिम को भरपूर समर्थन दे रहे हैं और इसका बड़ा उदाहरण ब्रिगेड परेड ग्राऊंड्स की रैली है। 

भाजपा तथा तृणमूल संयुक्त मोर्चा के लिए रुकावट पैदा कर रही हैं। इस पर अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि, ‘‘इस बार के विधानसभा चुनाव अलग प्रकार के हैं। प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री दोनों व्यस्ततम व्यक्ति हैं मगर दोनों ही पश्चिम बंगाल की निरंतर यात्रा पर हैं। वे लगभग हर गली के कोने को सम्बोधित कर रहे हैं। राज्य के चुनाव उनका प्रमुख एजैंडा है। भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस कीचड़ उछालने पर लगी हैं और वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाया गया है।’’ 

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने लोकतंत्र को दबाकर रखा है, इससे आपका क्या अभिप्राय है, तो रंजन ने कहा कि, ‘‘पश्चिम बंगाल में जो कोई भी रहता है वे इस बात से वाकिफ है। एक मिसाल के लिए 2018 के पंचायती चुनावों के दौरान सत्ताधारी पार्टी ने विपक्ष को नामांकन भरने की अनुमति तक नहीं दी।’’ 3-टियर पंचायत स्तर पर लगभग 20 हजार सीटों के संदर्भ में तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी उम्मीदवारों को चुनाव लडऩे की अनुमति ही नहीं दी। पंचायती चुनाव के दिन 80 से 100 लोगों ने अपना जीवन खो दिया। 

इस चुनावों में दल-बदल का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण बिन्दु बन गया है। इस पर जब अधीर के विचार जानने चाहे तो उन्होंने कहा कि, दल-बदल कभी भी पश्चिम बंगाल में 2011 तक राजनीति का हिस्सा नहीं रहा। यह तृणमूल कांग्रेस ही है जिसने ‘दल-बदल’ की राजनीति शुरू की और सत्ता पाने के प्रयास में विपक्षी दलों के विधायकों को अपने में मिलाने की कोशिश की। यहां तक कि 2016 में जब हमारे 44 विधायकों ने चुनाव जीता तो तृणमूल कांग्रेस ने दल-बदल की कार्रवाई शुरू कर दी। 44 में से 20 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए जिन्हें या तो लुभाया गया या स्टेट मशीनरी के माध्यम से डराया गया। निकाय चुनावों में माइक्रो लैवल पर ऐसे दल-बदल शुरू हुए और विपक्ष ने उन पर अपना नियंत्रण खो दिया। 

अब जबकि भाजपा तृणमूल कांग्रेस से आए महत्वपूर्ण नेताओं को अपना रही है तो मेरा यही कहना है कि तृणमूल को उसी की भाषा में जवाब दिया गया है। कांग्रेस ने पूर्व में वामदलों के साथ गठबंधन करने की कोशिश की मगर उसके नतीजे ठीक नहीं निकले, इस बार कितनी उम्मीदें हैं तो अधीर रंजन चौधरी ने माना कि पूर्व के गठबंधन आधे पके हुए और अधूरे मन से किए गए वादे थे। वामदलों के साथ-साथ हमारे इंडियन सैकुलर फ्रंट को भी शामिल किया है। मतदाताओं को हमारा संदेश स्पष्ट है कि लोग बांटने वालों के खिलाफ वोट दें और उन शक्तियों के खिलाफ खड़े हों जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा हैं।-शिव सहाय सिंह

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