एक बड़े बैंक की तरह सुरक्षित है भाजपा

Edited By Updated: 17 Jun, 2021 05:11 AM

bjp is safe like a big bank

अमरीकी राजनीति में महामंदी के साथ एक समानता है। राजनीतिक दल तथा सरकारें बाहर से अभेद्य तथा सशक्त जरूर नजर आती हैं मगर उनमें से कुछ 1929 के बड़े बैंकों की तरह हैं। बैंक

अमरीकी राजनीति में महामंदी के साथ एक समानता है। राजनीतिक दल तथा सरकारें बाहर से अभेद्य तथा सशक्त जरूर नजर आती हैं मगर उनमें से कुछ 1929 के बड़े बैंकों की तरह हैं। बैंक शक्तिशाली और सुरक्षित नजर आ रहे थे मगर एक दिन जमाकत्र्ता को एक बैंक से अपना पैसा निकालने के लिए कहा गया तब बैंक का पूरा ढांचा धराशायी होता नजर आया।

बात राजनीति की है। बाहर से देखने पर कुछ ज्यादा बड़ा दिखाई देता है जो गिर नहीं सकता मगर इसका मतलब यह नहीं कि भीतर से यह दोषों तथा कमजोरियों से ग्रस्त नहीं है। इसी समानता के बारे में उस समय सोचा जब मैंने यह पाया कि पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल में क्या घट रहा है? पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में भाजपा ने ममता बनर्जी के खिलाफ बहुत ज्यादा जोश दिखाया। 

कइयों का मानना था कि भाजपा के रथ को रोकना नामुमकिन है। खर्च करने के लिए उसके पास अपार धन है। इसके अलावा पार्टी के पास जांच एजैंसियां भी हैं और एक शानदार सोशल मीडिया आप्रेशन भी है। इन सबसे ऊपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का खुद का करिश्मा भी है। ऐसी बातों को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस के दलबदलू भाजपा की ओर आकॢषत हुए और उन्होंने सोचा कि वह जीत का पक्ष ले रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ढींग मारी कि पार्टी 200 सीटें जीतेगी। मगर आज जो वह कहते हैं उस पर शायद ही कोई भरोसा करे। जैसा कि हम जानते हैं कि भाजपा का रथ दौड़ता-दौड़ता लडख़ड़ाया और धराशायी हो गया। जिन्होंने इस रथ का साथ दिया उन्हें भागने के लिए मुश्किल हो गई। 

दलबदलू मुकुल रॉय ने अपनी मूल पार्टी में फिर से शरण ले ली। नेताओं की वापसी से तृणमूल कांग्रेस इतनी उत्तेजित हो गई कि पार्टी ने भीतर आने वाले बहुत ज्यादा पूर्व सदस्यों को रोकने के लिए अपनी खिड़कियां और दरवाजें बंद कर दिए। बैंक की तरह ही कुछ जमाकत्र्ताओं को अपना पैसा वापस निकालने को कहा और एक बार मजबूत दिखने वाला भवन धराशायी होने लगा।

नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह ने पहचान लिया है कि उनका दूसरा बैंक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हैं जो अगले वर्ष होने हैं। अभी तक भाजपा जीत के लिए अपने आपको पक्का मानती है मगर कुछ ङ्क्षचता वाले संकेत भी हैं। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ही विधायकों के बीच अलोकप्रिय हैं। राज्यभर में लोगों में आक्रोश की लहर है। यदि भाजपा ने उत्तर प्रदेश खो दिया तब सबसे बड़ी महामंदी आ जाएगी जिससे पार पाने के लिए पार्टी को वर्षों का समय लग जाएगा। 

इसी कारण पिछले सप्ताह आदित्यनाथ पर अंकुश लगाने के लिए नुक्सान की मात्रा का आकलन किया गया। यह कोई निश्चित नहीं कि भाजपा उत्तर प्रदेश में अपना सिंहासन खो दे। अभी कई महीनों का सफर तय करना बाकी है। इसलिए पार्टी बहुजन समाज पार्टी के वोटों तक अपनी पहुंच बनाने की उ मीद रखती है। जिस तरह से ममता बनर्जी ने उत्साहित हो मोदी-शाह को हराने के लिए अपना मिशन बनाया इसी तरह अखिलेश यादव मान रहे हैं कि भाजपा का धराशायी होना रुक नहीं सकता। मगर बंगाल में हार तथा उत्तर प्रदेश की ङ्क्षचताएं भाजपा की रणनीति में केन्द्रीय कमजोरी की ओर संकेत करती हैं। वह समझती है कि यहां पर कोई भी वैकल्पिक घटक नहीं है। भाजपा मानती है कि वह तब तक सत्ता में रह सकती है जब तक कि कोई राष्ट्रीय विकल्प नहीं बन जाता। 

भाजपा ने राहुल गांधी को मूर्ख समझने तथा कांग्रेस पार्टी को लडख़ड़ाने वाली पार्टी के तौर पर दर्शाने के लिए प्रचार में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। प्रत्येक समय भाजपा कांग्रेस के बारे में बात करती है और वह गांधियों तथा वंशवाद पर निशाना साधती है। इस दृष्टिकोण में दो दोष हैं। पहला यह कि ये भाजपा को बंगाल जैसे राज्य में जीत दिलाने में मदद नहीं कर सकती जहां कांग्रेस का आधार नहीं है और पार्टी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं है। दूसरा यह कि इन राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात) में भाजपा की सीधी लड़ाई कांग्रेस के साथ है और भाजपा की रणनीति बहुत ज्यादा सीमित है। 

जबकि यह कहा जाता है कि गांधी कठोर लोग हैं तथा कांग्रेस अनेक अद्भुत नेताओं से भरी पड़ी है जिनका भाजपा में स्वागत है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद तथा सचिन पायलट जैसे नेता भाजपा के अतिक्रमण आप्रेशन के लक्ष्य पर थे। हालांकि सचिन पायलट भाजपा में शामिल नहीं हुए और गुलाम नबी आजाद को प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में अश्रुपूर्ण विदाई दी। भाजपा ने यह कयास लगाया हुआ है कि राहुल गांधी सदैव ही कांग्रेस के नेता रहेंगे और प्रत्येक आम चुनाव में मतदाता को नरेन्द्र मोदी तथा राहुल गांधी दोनों में से एक को चुनने के लिए कहा जाएगा। भाजपा मानती है कि निश्चित तौर पर मतदाता मोदी को ही चुनेंगे। 

मगर क्या होगा जब अगले लोकसभा चुनाव होंगे और कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी नहीं करेंगे? मान लीजिए कि राहुल घोषणा करते हैं कि वह इस वर्ष के आखिर में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उ मीदवार नहीं होंगे? मान लीजिए वह घोषणा करते हैं कि वह पार्टी के लिए निरंतर कार्य करते रहेंगे मगर बतौर एक नेता के तौर पर नहीं? राहुल ने ऐसा कहने की कई बार कोशिश की है मगर उन पर कोई भी यकीन नहीं करता क्योंकि कांग्रेस ने अभी नया अध्यक्ष चुनना है। 

इस परिदृश्य में ‘क्योंकि’, ‘चूंकि’ देखने को मिल सकते हैं। यदि भाजपा यू.पी. में जीतती है तो योगी आदित्यनाथ के पास 2 साल का और समय बचेगा जिसे वह अगले लोकसभा चुनावों तक पार्टी को राज्य में और मजबूत कर लेंगे। एन.डी.ए. सरकार मजबूत और सुरक्षित है मगर यह याद रखिए कि यदि एक सुदृढ़ बैंक से एक ग्राहक निकाल लिया जाए तो सब कुछ धराशायी हो सकता है।-वीर संघवी
 

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