चिदम्बरम मामला : सी.बी.आई. के पास अपनी ‘प्रतिष्ठा’ बहाल करने का अवसर

Edited By ,Updated: 27 Aug, 2019 01:06 AM

chidambaram case cbi has an opportunity to restore its  reputation

कर्मों का फल या जो बोओगे सो काटोगे। वर्तमान में राजनीतिक रंगमंच में चल रहे दृश्यों को ये पुरानी कहावतें वॢणत करती हैं, हालांकि कांग्रेस शोर मचा रही है कि यह सब कुछ राजनीतिक बदले की भावना से किया जा रहा है किन्तु पहली बार स्वतंत्र भारत में एक पूर्व...

कर्मों का फल या जो बोओगे सो काटोगे। वर्तमान में राजनीतिक रंगमंच में चल रहे दृश्यों को ये पुरानी कहावतें वॢणत करती हैं, हालांकि कांग्रेस शोर मचा रही है कि यह सब कुछ राजनीतिक बदले की भावना से किया जा रहा है किन्तु पहली बार स्वतंत्र भारत में एक पूर्व गृह मंत्री और वित्त मंत्री चिदम्बरम को आई.एन.एक्स. मीडिया मामले में गिरफ्तार किया गया है जिसे धन शोधन का क्लासिक मामला कहा जा रहा है और चिदम्बरम को इस मामले में मुख्य षड्यंत्रकारी और सरगना कहा गया है। 

यह गिरफ्तारी गुरुवार को हुई जब दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बुधवार को चिदम्बरम की जमानत की अर्जी को खारिज किया गया और उसके बाद वह 27 घंटे तक गायब रहे। फिर वह यकायक कांग्रेस मुख्यालय में प्रैस  कांफ्रैस में आए और जब वहां से घर पहुंचे तो सी.बी.आई. ने 90 मिनट चले ड्रामे के बाद उन्हें गिरफ्तार किया और विडम्बना देखिए चिदम्बरम से उसी भवन में पूछताछ की जा रही है जिसका उद्घाटन उन्होंने गृह मंत्री के रूप में किया था। 

इस पर कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि सी.बी.आई. और प्रवर्तन निदेशालय मामले को सनसनीखेज बना रहे हैं और कुछ लोगों को संतुष्ट करने के लिए यह कार्य कर रहे हैं। यह शक्तियों का दुरुपयोग है। मोदी सी.बी.आई. का उपयोग किसी के चरित्र हनन के लिए कर रहे हैं। सी.बी.आई. का पूरा मामला उस महिला की गवाही तथा केस डायरी पर आधारित है जो अपनी बेटी शीना बोरा की हत्या की आरोपी है। शर्मनाक। हैरानी की बात यह है कि विपक्ष के अन्य दल इस मामले पर देखो और प्रतीक्षा करो की नीति अपना रहे हैं। कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि कर्मों का फल प्राप्त करने का समय आ गया है। चिदम्बरम के कर्मों का एक चक्कर पूरा हो गया है। गृह मंत्री के रूप में 2004-2014 के दौरान उन्होंने मोदी का उत्पीडऩ और अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और यह सुनिश्चित किया कि सोहराबुद्दीन हत्या मामले में अमित शाह को जेल भेजा जाए और अब उनके विभिन्न पापों के लिए उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जा रहा है। 

आई.एन.एक्स. मीडिया केस इस मीडिया ग्रुप को 2007 में 305 करोड़ रुपए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड द्वारा दी गई स्वीकृति में कथित अनियमितताओं को लेकर है जब चिदम्बरम वित्त मंत्री थे। सी.बी.आई. ने 15 मई, 2017 को इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की और प्रवर्तन निदेशालय ने 2018 में धन शोधन का मामला दर्ज किया। आई.एन.एक्स. मीडिया के संस्थापक पीटर मुकेरजा और इन्द्र्राणी पर चिदम्बरम के पुत्र कार्ति के साथ आपराधिक षड्यंत्र करने का आरोप लगाया गया है ताकि उन्हें विदेशी निवेश की मंजूरी मिल सके और विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड से आवश्यक मंजूरियां प्राप्त न करने के लिए दंड से बच सकें। 

मार्च 2018 में इन्द्र्राणी, जो अब सरकारी गवाह बन चुकी है, ने सी.बी.आई. को कहा कि काॢत चिदम्बरम और मुकेरजा के बीच आई.एन.एक्स. मीडिया में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की मंजूरी के लिए एक मिलियन डालर का सौदा हुआ। उसने कथित तौर पर चिदम्बरम के नार्थ ब्लॉक कार्यालय में उनसे मुलाकात करने की बात स्वीकार की और चिदम्बरम ने उससे कहा कि वे कार्ति से मिलें और उनकी मुलाकात दिल्ली के एक होटल में हुई जहां पर यह सौदा तय किया गया। अब सारा दारोमदार सी.बी.आई. पर है क्योंकि आॢथक अपराधों को साबित करने में सी.बी.आई. का रिकार्ड खराब रहा है। इसका उदाहरण 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला है जिसमें पूर्व दूरसंचार मंत्री राजा तथा अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया है। 

सी.बी.आई. के अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद लाभ प्राप्त करने के लिए अपने माई-बाप की सेवा करते हैं। बुधवार को सी.बी.आई. का आचरण अच्छा नहीं रहा। वह चिदम्बरम को नहीं खोज पाई और उच्च सुरक्षा प्राप्त क्षेत्र में चिदम्बरम 27 घंटे तक गायब रहे। कानून अपना काम करेगा किन्तु चिंता का विषय यह है कि भारत में यह स्थिति क्यों पैदा हुई। प्रधानमंत्री के बाद मंत्रिमंडल में दूसरे नम्बर के मंत्री को कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है। 

यवस्था खराब है
हम जानते हैं कि हमारे यहां व्यवस्था खराब है। हम भ्रष्ट हैं और नैतिक रूप से दिवालिया हो चुके हैं। घूसखोरी के बारे में हमारा दृष्टिकोण है कि सब चलता है। इसकी रोकथाम के उपाय कहां हैं? आज राजनीति की ऐसी स्थिति बन गई है कि आरोपी राजनेता, भ्रष्ट नेता और अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू होने के साथ ही वे सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो जाते हैं और वहां उनका स्वागत किया जाता है। यह लेन-देन का मामला होता है जिसके चलते गुंडे, बदमाश, भ्रष्ट और हत्यारे सत्ता के गलियारों तक पहुंच जाते हैं। 

आज सत्ता संख्या खेल बन गई है। राजनीतिक दल अपने संख्या बल के आधार पर चहचहाते हैं और इसी बल पर वे विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई करते हैं, कानून पास करते हैं और अपनी मनमर्जी चलाते हैं। साथ ही भ्रष्ट और अपराधियों को कानून से संरक्षण मिलता है, समाज में सम्मान मिलता है। आज कांग्रेस, तृणमूल और तेदेपा जैसी पार्टियों के मुकुल राय, हेमंत शर्मा जैसे दो दर्जन से अधिक नेता हैं जिनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामले चल रहे थे और जिन्हें भाजपा अपराधी कह रही थी। किन्तु उनके भाजपा में शामिल होने के बाद इन मामलों की जांच बंद हो गई है। 

सपा और बसपा के सुप्रीमो क्रमश: मुलायम और मायावती के बारे में कम ही कहा जाए तो अच्छा है। उनके विरुद्ध आय से अधिक सम्पत्ति के मामले सरकार की राजनीतिक कार्य साधकता का काम करते हैं। ऐसा क्यों है? यह सच है कि निर्वाचन आयोग ने अपनी चल-अचल सम्पत्ति, देनदारी, आपराधिक मामलों के ब्यौरे को प्रकट करना अनिवार्य बना दिया है किन्तु इससे भ्रष्ट और अपराधियों पर रोक नहीं लगी, केवल उनके मामलों का खुलासा हुआ है। इसका कारण यह है कि अनेक नेताओं के विरुद्ध आरोप पत्र तो दायर हो गए हैं किन्तु वे कह सकते हैं कि उन्हें न्यायालय ने दोषी नहीं ठहराया है इसलिए उन्हें निर्दोष माना जाए। 

थकाऊ कानूनी प्रक्रिया
जब भ्रष्टाचार के मामलों की बात आती है तो यह पंक्ति धुंधली हो जाती है। साथ ही कानूनी प्रक्रिया भी बड़ी थकाऊ है। हमारा कानून केवल उन लोगों को अयोग्य घोषित करता है जिन्हें न्यायालय द्वारा दोषी सिद्ध किया जाता है और इसमें दशकों लग जाते हैं। पदों पर बने ऐसे नेताओं को भी पद से हटाना मुश्किल हो जाता है। आज के वातावरण में, जब संसदीय प्रणाली पर भ्रष्ट और आपराधिक राजनेताओं ने कब्जा कर लिया हो, आम आदमी का हताश होना स्वाभाविक है। कोई भी भ्रष्ट व्यक्ति को वोट देना नहीं चाहता है फिर भी वर्ष दर वर्ष भ्रष्ट व्यक्ति चुनकर आते हैं और जनता असहाय दर्शक बन जाती है। 

कांग्रेस के लिए चिदम्बरम का मामला उल्लेखनीय है क्योंकि उसके कई अन्य नेताओं की गिरफ्तारी भी हो सकती है। नैशनल हेराल्ड मामले में कर मूल्यांकन में हेराफेरी का मामला उच्चतम न्यायालय में लम्बित है जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, आस्कर फर्नांडीस संलिप्त हैं और वे वर्तमान में जमानत पर हैं। गुडग़ांव में जमीन के सौदों को लेकर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा और सोनिया के दामाद राबर्ट वाड्रा भी आरोपी हैं। राकांपा के प्रफुल्ल पटेल एयर इंडिया के मामले में आरोपी हैं। 

वास्तव में चिदम्बरम के मामले ने सी.बी.आई. को अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने का एक अवसर दिया है। अत: उसे उचित प्रक्रिया का पालन कर त्वरित न्याय दिलाना चाहिए क्योंकि उचित प्रक्रिया देश में कानून का शासन लागू करने का मूल आधार है। यदि चिदम्बरम विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की मंजूरी के बदले में रिश्वत प्राप्त करने के दोषी हैं तो यह एक गंभीर अपराध है और उन्हें सजा दी जानी चाहिए किन्तु प्रवर्तन एजैंसियों को यह साबित करना होगा कि पैसा उन्होंने प्राप्त किया है। इसके अभाव में नौकरशाही का मनोबल कम हो सकता है और व्यापार करने में आसानी के मार्ग में बाधा पैदा हो सकती है, साथ ही यह राजनीतिक विद्वेष का मामला भी बन जाएगा। 

समय आ गया है
भ्रष्टाचार के विरुद्ध किसी भी अभियान को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि ऐसा अभियान विपक्षी नेताओं को पाला बदलने के लिए मजबूर करने का कारण नहीं बनना चाहिए। इस मामले में तकनीकी और कानूनी प्रक्रिया काम नहीं करेगी। इसका समाधान अच्छी, स्वच्छ लोकतांत्रिक पद्धति और निगरानीकत्र्ता के रूप में मीडिया व सजग जनता है जो राजनीतिक दलों पर दबाव बना सकते हैं। यदि हम सुधारात्मक कदम नहीं उठा पाते हैं तो आज के भ्रष्ट किंगमेकर कल के राजा बन सकते हैं। समय आ गया है कि भ्रष्ट लोगों को उनके कर्मों की सजा दी जाए।-पूनम आई. कौशिश

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