खाद्य संकट से जूझता चीन : बदली अपनी प्राथमिकताएं

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2022 06:18 AM

china facing food crisis changed its priorities

ऐसा लगता है जैसे चीन की प्राथमिकताएं पिछले कुछ वर्षों में बदल गई हैं। चीन की सरकार के लिए इस समय खाद्य सुरक्षा का मुद्दा सबसे ऊपर है। चीन ने पिछले कुछ दशकों में खाद्य सामग्रियों के उत्पादन को बढ़ाने का कदम उठाया है और कई देशों से अलग-अलग प्रकार की...

ऐसा लगता है जैसे चीन की प्राथमिकताएं पिछले कुछ वर्षों में बदल गई हैं। चीन की सरकार के लिए इस समय खाद्य सुरक्षा का मुद्दा सबसे ऊपर है। चीन ने पिछले कुछ दशकों में खाद्य सामग्रियों के उत्पादन को बढ़ाने का कदम उठाया है और कई देशों से अलग-अलग प्रकार की खाद्य सामग्रियों का आयात करना शुरू किया है तथा इस पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बयानों को देखते हुए लगता है कि चीन में अब भी खाद्य सामग्रियों का अभाव है, यानी वंचितों और गरीबों को पूरा खाना नसीब नहीं हो रहा। 

इस महीने चीन में 20वीं सी.पी.पी.सी.सी. की मीटिंग होने वाली है उससे पहले ही पॉलिसी नंबर 1 दस्तावेज जारी किया गया है, जिसमें अगले 5 वर्ष की योजना के बारे में जिक्र किया गया है। इसे चीनी कैबिनेट की स्टेट काऊंसिल ने छापा है, जिसमें केन्द्रीय सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा पर जोर दिया गया है, जीन-संपादित पौधों, अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों को व्यावसायिक तौर पर उपजाने जैसे मुद्दों पर बात की गई है। 

खाद्य सुरक्षा इतना गंभीर रूप ले चुकी है कि हाल ही में पोलित ब्यूरो की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में इसे मुख्य रूप से संबोधित कर कहा गया कि आगामी वर्ष की योजनाओं को कृषि क्षेत्र के स्थिर विकास को ध्यान में रखकर जारी किया जाना चाहिए। इसमें स्थिर और निरंतर खाद्य उत्पादन और आपूर्ति के साथ इससे जुड़े ग्रामीण क्षेत्र के कारोबार को बढ़ाने की बात कही गई। 

साथ ही यह भी कहा गया कि चीनी लोगों की खाद्य आवश्यकताओं का उत्पादन और आपूर्ति चीनियों के हाथ में रहनी चाहिए। इसी तर्ज पर केन्द्रीय ग्रामीण कार्य सम्मेलन, जिसकी अध्यक्षता शी जिनपिंग ने की, कहा इस बात पर सरकार की तरफ से अधिक जोर दिया जा रहा है कि मुख्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति शृंखला बाधित न हो। दिसम्बर 2021 में एक बैठक में शी जिनपिंग ने खाद्य सुरक्षा और कृषि भूमि की सुरक्षा के साथ सूअर का मीट, सब्जियां और दूसरे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति को बनाए रखने की बात की थी। हाल ही में नवम्बर 2021 में ताजा सब्जियों की कीमतों में 30.6 फीसदी का उछाल देखा गया था। वहीं अंडे और मीठे पानी की मछलियों के दामों में क्रमश: 21.1 और 18 फीसदी की बढ़ौतरी देखी गई। 

चीन इस समय खाद्य संकट में इसलिए भी फंसा हुआ है क्योंकि उसका अधिकतर कृषि उत्पाद विदेशों से आता है। उदाहरण के तौर पर चीन ब्राजील और अर्जेंटीना से सोयाबीन का आयात करता है, मक्के का 80 फीसदी हिस्सा यूक्रेन से आता है, गेहूं और चावल भी दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से आते हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि चीन ने पिछले 3 दशकों में तेजी से अपने देश का जो औद्योगिकीकरण किया है, उस वजह से चीन ने जरूरत से ज्यादा यूरिया, कीटनाशक और दूसरे जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किया। इस वजह से चीन की 20 फीसदी कृषि भूमि जहरीली हो चुकी है, वहां पर कुछ भी पैदा नहीं किया जा सकता। कई जलीय, दलदली इलाके, नदी के मुहाने, नदियों के बीच की उपजाऊ जमीन भी खराब हो चुकी है जिस कारण वहां कुछ भी नहीं उपज सकता। वहीं दूसरी तरफ चीन पर उसकी भारी आबादी का बोझ है, जिसका पेट भरने के लिए चीन ने कई देशों में पट्टे पर कृषि के लिए जमीन ली है। 

भले ही चीन भारत से 3.5 गुणा बड़ा है लेकिन भारत के पास जितनी कृषि योग्य भूमि है, चीन के पास उसका सिर्फ आधा भाग कृषि योग्य है। उसमें से भी 20 फीसदी रसायनों के कारण जहरीली हो चुकी है। जहां तक खाद्य आयात की बात है, चीन में कोरोना के कारण कोई भी सामान चीन से बाहर न तो आसानी से जा सकता है और न ही आ सकता है। इस वजह से भी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने अपनी जनता से कहा है कि अपने अनाज का कटोरा अपने हाथ में मजबूती से पकड़ कर रखें और अपने देश में अनाज उपजाएं। 

चीन ने कजाखस्तान में गेहूं के लिए जमीन पट्टे पर ले रखी है, अर्जेंटीना और ब्राजील में सोयाबीन के लिए, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में चावल के लिए, अफ्रीका में अन्य फसलोंं के लिए चीन ने कृषि भूमि पट्टे पर ले रखी है, लेकिन इनमें से कई देशों के साथ चीन के संबंध अब बहुत खराब चल रहे हैं और वहां की जनता में चीन के खिलाफ रोष फैला हुआ है। इस वजह से चीन को पूरी तरह से खाद्य आपूर्ति में परेशानी आ रही है। 

कोविड के कारण कई शहरों में लगे लॉकडाऊन से शीआन समेत कुछ शहरों में भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं। अगर इस बार की कृषि नीति के बाद उपज बढ़ाने के लिए चीन ने खेतों में यूरिया और कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ाया तो पर्यावरण पर इसका बुरा असर पड़ेगा, मिट्टी और पानी में अधिक प्रदूषण फैलेगा जिससे बंजर धरती का क्षेत्रफल बढ़ेगा। किसी भी देश की बड़ी आबादी के लिए अधिक अन्न का आयात नहीं किया जा सकता। इन सब कारणों से भविष्य में चीन का खाद्य संकट और गहराने की आशंका ज्यादा दिखाई देती है। इससे निपटना चीन के लिए आसान नहीं होगा। 

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