नागरिकता संशोधन कानून , क्या यह नैतिक है? क्या यह संवैधानिक है? नहीं, ये दोनों है

Edited By ,Updated: 09 Jan, 2020 01:51 AM

citizenship amendment law is it ethical is it constitutional no it s both

यमुना किनारे बसी उत्तरी दिल्ली की एक कालोनी मजनूं का टीला के एक पुराने शरणार्थी कैम्प में छोटी सी ‘नागरिकता’ का जन्म हुआ। उसके माता-पिता ने पाकिस्तान में हो रहे अत्याचारों से बचने के लिए इस शहर में शरण ली थी। उन्होंने अपने लिए अच्छे जीवन की...

यमुना किनारे बसी उत्तरी दिल्ली की एक कालोनी मजनूं का टीला के एक पुराने शरणार्थी कैम्प में छोटी सी ‘नागरिकता’ का जन्म हुआ। उसके माता-पिता ने पाकिस्तान में हो रहे अत्याचारों से बचने के लिए इस शहर में शरण ली थी। उन्होंने अपने लिए अच्छे जीवन की संभावनाएं पेश करने वाला नागरिकता कानून बनने के बाद अपनी बच्ची का नाम नागरिकता रखा। इस दम्पति के लिए नागरिकता कानून ने नागरिकता का दर्जा हासिल करने की उनकी उम्मीदें फिर से जागृत कर दी हैं-जिस अधिकार को हासिल करने से वह अपने मूल देश में लंबे समय से वंचित थे। 

नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) पास होने के बाद शुरू हुए अफवाहें फैलाने व जुनून के दौर में कई सवालों को नजरअंदाज कर दिया गया है-पहला, क्या विशेष तौर पर कुछ देशों में होने वाले अत्याचार वास्तविक हैं या नहीं? दूसरा, क्या इस खुशहाल सांस्कृतिक लोकतंत्र वाले भारत जैसे देश को इस तरह की असमानता का सामना कर रहे लोगों की तकलीफों को कम करना चाहिए? तथा आखिर में क्या सी.ए.ए. के रूप में शुरू की गई कार्रवाई संवैधानिक प्रबंधों के तहत की गई है? अगर इन सवालों का जवाब हां है तो ऐसी स्थिति में इस बारे मचाया जाने वाला शोर राजनीति से प्रेरित है। 

पाकिस्तान धार्मिक आजादी की घोर उल्लंघना करने वाला देश
जिस समय भारत की संसद में नागरिकता संशोधन बिल (सी.ए.बी.) बारे चर्चा हो रही थी तो अमरीकी विदेश विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में पाकिस्तान को एक बार फिर से धार्मिक आजादी का घोर उल्लंघन करने वाले देश के रूप में नामांकित किया था। नागरिकता संबंधी संयुक्त संसदीय कमेटी समक्ष दिए गए बयानों में दिल को छूने वाले तथ्य पेश किए गए। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जनवरी, 2019 में संसद के दोनों सदनों में पेश की। इसके अलावा पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों बारे यूरोपीय संसद द्वारा हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें अल्पसंख्यकों व औरतों की पीड़ा को प्रकट किया गया है। इन अल्पसंख्यकों में से ज्यादातर, विशेष तौर पर हिंदू शरण मांगने के लिए भारत आ गए हैं। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि सी.ए.ए. में शामिल किए गए पाकिस्तान, बंगलादेश तथा अफगानिस्तान तीनों इस्लामिक राष्ट्र हैं। 

जहां तक दूसरे सवाल की बात है, अगर धार्मिक अत्याचारों से परेशान लोग भारत में आते हैं, उनके पास कौन-कौन से विकल्प हैं? सी.ए.ए. उसी स्थिति में सुधार लाना चाहता है जिसका जिक्र श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1950 में हाबज के समरूपता के सिद्धांत द्वारा किया था: ‘‘पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों का जीवन खतरनाक, पशुओं जैसा व छोटा हो चुका है।’’ भारत सिख, जैन, बौद्ध तथा कुछ अन्य महान धर्मों की जन्मस्थली है। भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न धर्मों, भाईचारों तथा रिवायतों का मिश्रण है। 

अंत में नागरिकता के स्थायी कानून पर विचार करने का काम संसद पर छोड़ दिया गया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सी.ए.ए. संविधान की धारा 14 में वॢणत समानता के अधिकार के प्रबंधों को पूरा करता है। संक्षेप में दोहराया जाए तो धारा 14 में कहा गया है कि, ‘‘भारत के क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून की नजर में बराबरी तथा कानून समक्ष सरपरस्ती से वंचित नहीं रखेगा’’ तथा सामाजिक वर्गीकरण के जरिए धारा 14 में किसी तरह की ढील ‘‘दलीलपूर्ण तथा स्पष्ट भेद’’ के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने वाली तथा ‘‘प्राप्ति के लिए निर्धारित उद्देश्यों’’ से संबंधित होनी चाहिए। न्यायिक घोषणाओं ने इस बात का समर्थन किया है कि सिर्फ अलग तरह के व्यवहार का अर्थ संविधान की भावना का जरूरी तौर पर उल्लंघन नहीं है। 

द्विपक्षीय संबंधों के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया गया
सी.ए.ए. के उद्देश्य तथा कारण केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा स्पष्ट तौर पर पेश किए गए हैं। भारत के साथ सीमाएं सांझा करने वाले 7 पड़ोसी देशों में से सिर्फ 3 देशों के संविधानों में राष्ट्र धर्म का प्रबंध है। इसलिए हमारे द्विपक्षीय  संबंधों के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया गया है। ऐतिहासिक तौर पर भारत तथा पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बंगलादेश में सीमा के आर-पार की यात्राएं हुई हैं। धर्म के आधार पर अत्याचारों का सामना करने वाले भाईचारे पलायन करके पनाह मांगने के लिए भारत में दाखिल हुए हैं, चाहे उनके दस्तावेजों की अवधि पूरी हो चुकी हो या उनके दस्तावेज अधूरे हों या उनके पास कोई दस्तावेज न हो। 

मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में, पहले ही इन प्रवासियों को पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) कानून, 1920 तथा विदेशी कानून, 1946 के उलट सजा योग्य नतीजों से छूट प्रदान कर चुकी है तथा 2016 में उसने उन लोगों को लंबी अवधि के वीजे का भी पात्र बनाया था। सी.ए.ए. सिर्फ इन पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता हेतु आवेदन देने का अधिकार प्रदान करता है। सी.ए.ए. संविधान की धारा 25 का उल्लंघन करता है या नहीं, इस बारे बहस जारी है। धारा 25 सभी व्यक्तियों को समान तौर पर कोई भी धर्म अपनाने, व्यवहार करने तथा प्रचारित करने का अधिकार प्रदान करती है। सी.ए.ए. ने इन प्रबंधों का उल्लंघन नहीं किया-इस तथ्य को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात का भरोसा देते हुए स्पष्ट तौर पर दोहराया है कि सी.ए.बी. के कानून बनने से न तो अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन किया गया है, न ही भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र तथा रस्मो-रिवाजों पर प्रश्र चिन्ह लगाया गया है। 

यह पीढिय़ों से कष्ट भोग रहे विस्थापितों को अधिकार सम्पन्न बनाने का ऐतिहासिक कदम है। ऐसी स्थिति में सड़कों पर ङ्क्षहसा एवं अशांति भड़का रहे चांदी के चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए नेताओं से समझदारी की अपील करते हुए स्वामी विवेकानंद द्वारा 1883 में धर्म संसद में प्रकट किए गए विचारों का स्मरण दिलाना सार्थक होगा-‘‘मुझे ऐसे देश से संबंधित होने पर गर्व है जिसने धरती के सभी धर्मों तथा देशों द्वारा प्रताडि़त लोगों तथा शरणाॢथयों को शरण दी है।’’ सी.ए.ए. कई मायनों में इन इच्छाओं की पूर्ति करता है।-धर्मेंद्र प्रधान (पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस व इस्पात मंत्री)

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