‘पेशेवर मैनेजमैंट’ की जरूरत है सहकारी बैंकों को

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2020 03:41 AM

co operative banks need professional management

सरकार ने 24 जून को कहा है कि सभी सहकारी बैंकों और बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की देख-रेख के तहत लाया जाएगा। सरकार के इस कदम का मकसद सहकारी बैंकों के जमाकत्र्ताओं को संतुष्टि और सुरक्षा देना है। एक अनुमान के अनुसार देश में कुल मिलाकर...

सरकार ने 24 जून को कहा है कि सभी सहकारी बैंकों और बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की देख-रेख के तहत लाया जाएगा। सरकार के इस कदम का मकसद सहकारी बैंकों के जमाकत्र्ताओं को संतुष्टि और सुरक्षा देना है। एक अनुमान के अनुसार देश में कुल मिलाकर 1,482 शहरी सहकारी बैंक और 58 के करीब बहुराज्यीय सहकारी बैंक हैं जिनसे 8.6 करोड़ ग्राहक जुड़े हुए हैं। 

सरकार का यह कदम इस लिहाज से काफी अहम है कि पिछले कुछ समय में कई सहकारी बैंकों में घोटाले सामने आए हैं और इससे बैंक के जमाकत्र्ताओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। पिछले साल पी.एम.सी. बैंक घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। यह मामला 4,355 करोड़ रुपए के घोटाले का था। बैंक के घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद रिजर्व बैंक की ओर से प्रशासक नियुक्त करके पी.एम.सी. बैंक से नकदी निकासी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिसकी वजह से बैंक के ग्राहकों को आॢथक नुक्सान उठाना पड़ा था। इसके साथ ही, बैंक के कई ग्राहकों को जान भी गंवानी पड़ी थी। 

सरकार द्वारा बैंकिंग नियमन एक्ट में बदलाव कर सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने की ओर कदम उठाया गया है। देशभर के इन कुल 1540 बैंकों में 8.6 करोड़ लोगों के तकरीबन 5 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। सहकारी बैंकों का नियमन अब आर.बी.आई. के नियमानुसार किया जाएगा। इन बैंकों की ऑडिटिंग भी आर.बी.आई. रूल्स  के तहत होगी। अगर कोई बैंक वित्तीय संकट में फंसता है, तो उसके बोर्ड पर निगरानी भी आर.बी.आई. ही रखेगा। शहरी सहकारी बैंकों और बहुराज्यीय सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक के बेहतर परिचालन के वास्ते रिजर्व बैंक के निरीक्षण के दायरे में लाया जाएगा। अब तक केवल वाणिज्यिक  बैंक ही रिजर्व बैंक के निरीक्षण के तहत आते रहे हैं लेकिन अब सहकारी बैंकों का निरीक्षण भी रिजर्व बैंक करेगा। 

सहकारी बैंक का आशय उन छोटे वित्तीय संस्थानों से है जो शहरी और गैर-शहरी दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों को ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं। सहकारी बैंक आमतौर पर अपने सदस्यों को कई प्रकार की बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं-जैसे ऋण देना, पैसे जमा करना और बैंक खाता आदि प्रदान करते हैं। सहकारी बैंक उनके संगठन, उद्देश्यों, मूल्यों और शासन के आधार पर वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होते हैं। उल्लेखनीय है कि सहकारी बैंक का प्राथमिक लक्ष्य अधिक-से-अधिक लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि अपने सदस्यों को सर्वोत्तम उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध कराना होता है। सहकारी बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जो लोकतांत्रिक रूप से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं। ये भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) द्वारा विनियमित किए जाते हैं एवं बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के साथ-साथ बैंकिंग कानून अधिनियम, 1965 के तहत आते हैं। 

सहकारी बैंक सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत किए जाते हैं। अनेक सहकारी बैंक इस वक्त जिस प्रकार के वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं वह देश की सहकारी बैंकिंग प्रणाली हेतु चिंता का विषय है। इस बात से इंकार  नहीं किया जा सकता कि सहकारी बैंकों ने देश के गांवों और कस्बों में आम लोगों को बैंकिंग से जोड़कर न केवल बैंकिंग प्रणाली के विकास में योगदान दिया है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बावजूद इसके आज भी सहकारी बैंक कई विसंगतियों से ग्रसित हैं जिसमें पेशेवर मैनेजमैंट की कमी महत्वपूर्ण है। इस बिन्दू पर कुछ समितियों की रिपोर्ट दर्शाती है कि सहकारी बैंकिंग अपने लंबे इतिहास के बावजूद देश में किसानों का विश्वास जीतने में असफल रही है और यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर किसानों द्वारा लिए जाने वाले ऋण का कुछ ही हिस्सा सहकारी बैंकों से लिया जाता है। 

आंकड़े दर्शाते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारिता की सदस्यता मात्र 45 प्रतिशत ही है, जिसका अर्थ यह हुआ कि ग्रामीण क्षेत्र के 55 प्रतिशत लोग अब तक सहकारिता से जुड़ ही नहीं पाए हैं। वर्ष 1972 में गठित बैंकिंग आयोग ने इसके लिए खास कारणों को जि़म्मेदार बताया था। जैसे कि ऋण हेतु निश्चित सुरक्षा (स्द्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4) प्रदान करने में लोगों की अक्षमता, भूमि रिकॉर्ड का कुप्रबंधन, निर्धारित क्रैडिट सीमा की अपर्याप्तता, ऋण चुकाने में सदस्य की अयोग्यता इत्यादि  कई अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि देश के कुछ सहकारी बैंक निष्क्रिय हो गए हैं और कुछ तो सिर्फ कागज़ों पर ही हैं। अधिकतर सहकारी बैंक पेशेवर प्रबंधन की कमी का भी सामना कर रहे हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण समस्या सहकारी बैंकों पर नियंत्रण के दो-मुंही होने से उत्पन्न होती है, क्योंकि इनका नियमन और नियंत्रण तो (आर.बी.आई.) द्वारा किया जाता है परंतु इसका प्रशासन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। इसे दुरुस्त किया जाना चाहिए। इन सभी के चलते सरकार का यह कदम इनके पेशेवर प्रबंधन की दिशा में एक अच्छा शुरूआती प्रयास है।-डा. वरिन्द्र भाटिया
 

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