पंजाब में कांग्रेस अंतर्कलह को लेकर उलझी

Edited By Updated: 08 Jun, 2021 05:03 AM

congress embroiled in infighting in punjab

पंजाब में कांग्रेस नेतृत्व पार्टी के अंतर्कलह को लेकर उलझा हुआ है। यहां राजनीतिक संकट आपे से बाहर हो चुका है। हाईकमान एक ऐसे फार्मूले की तलाश में है जो मु यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिं

पंजाब में कांग्रेस नेतृत्व पार्टी के अंतर्कलह को लेकर उलझा हुआ है। यहां राजनीतिक संकट आपे से बाहर हो चुका है। हाईकमान एक ऐसे फार्मूले की तलाश में है जो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के खिलाफ उपजे विरोध को शांत कर सके। यहां पर विधानसभा चुनाव अगले वर्ष होने हैं। पंजाब कांग्रेस शासित प्रदेशों में से एक है जहां पार्टी फिर से सत्ता पर काबिज होना चाहेगी। पंजाब एक सरहदी और संवेदनशील राज्य है जिसने पूर्व में ङ्क्षहसा को झेला है।

हालांकि मु यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद निकट माना जाता है। वहीं उनके आलोचक राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी से समर्थन पाते हैं। भाई-बहन दोनों ही मु य विरोधी तथा आलोचक पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को एक नेता के तौर पर देखना चाहते हैं जिनका पंजाब के युवाओं में एक आकर्षण है। 

हालांकि नई दिल्ली में पिछले सप्ताह नाटक खेला गया जब 25 विधायकों तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ मुख्यमंत्री ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खडग़े के नेतृत्व वाले 3 सदस्यीय पैनल के साथ मुलाकात की थी। इस कमेटी को सोनिया गांधी ने स्थापित किया था। बेशक कैप्टन ने 2017 में अपने शासन के अंतिम मौके के तौर पर वोट मांगे थे। अब उन्होंने यूटर्न लेते हुए अपना स्टैंड बदल लिया है कि वह एक और कार्यकाल चाहेंगे। 

कांग्रेस के पास नेतृत्व संकट राष्ट्रीय स्तर पर भी है। बिना किसी पद के राहुल गांधी अभी भी ज्यादातर पार्टी के निर्णय खुद लेते हैं। पंजाब के मामले में राहुल तथा प्रियंका दोनों ने कैप्टन से एक आभासी बैठक के दौरान पिछले सप्ताह बातचीत की। यह पहला मौका नहीं है कि जब मु यमंत्री ने पार्टी में मतभेद झेला है। सोनिया गांधी के समर्थन से कैप्टन 2005 में विद्रोह से बच गए थे मगर ऐसे ही संकट ने उन्हें उनके दूसरे मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान घेर लिया। कैबिनेट सदस्य तथा पार्टी विधायकों ने खुलेआम उनके आदेश को धत्ता बताया था।

क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू इस हमले का नेतृत्व कर रहे हैं। महत्वाकांक्षी सिद्धू का कांग्रेस विधायकों या कैडर पर ज्यादा प्रभाव नहीं है मगर अमरेंद्र के खिलाफ उनके विद्रोह ने मतभेद को उत्प्रेरित किया है। कैप्टन के लिए अनुकूल परिस्थिति यह है कि विरोधियों ने उनके खिलाफ बेशक शिकायत की है मगर वे उनके विकल्प पर सहमत नहीं हैं।

वर्तमान विरोध का विस्फोट इसलिए आया है क्योंकि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 2015 की कोटकपूरा फायरिंग घटना ने एक एस.आई.टी. रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। सिद्धू का आरोप यह है कि मु यमंत्री जि मेदारी से बच रहे हैं। मतभेद रखने वाले यह भी दावा रखते हैं कि मु यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह का बादलों के साथ नर्म रवैया है। 2017 के विधानसभा चुनावों में नशे का मुद्दा एक मु य मुद्दा रहा था। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। 

सिद्धू ने मुख्यमंत्री बनने का सपना उस समय लेना शुरू कर दिया जब उन्होंने प्रियंका गांधी तथा राहुल गांधी का समर्थन पा लिया। कैप्टन के बाद मु यमंत्री की दौड़ में कतार में लगे वरिष्ठ नेताओं को भी यह बात नहीं भा रही। सिद्धू पी.सी.सी. अध्यक्ष भी बनना चाहते हैं हालांकि सबको साथ लेने की क्षमता उनके पास अभी नहीं। कांग्रेस हाईकमान द्वारा जो समाधान सुझाए गए हैं उनमें कैबिनेट फेरबदल, अन्य जातियों को और ज्यादा प्रतिनिधित्व देना तथा चुने हुए प्रतिनिधियों को खुली छूट देने के लिए नौकरशाही में फेरबदल करना शामिल है। इसके अलावा यहां पर नई प्रचार समिति के गठन का प्रस्ताव भी है। ऐसे बदलावों को करके विरोधियों को समायोजित किया जाएगा। 

कांग्रेस पार्टी में गुटबंदी एक नई बात नहीं है। एक कमजोर नेतृत्व राज्य को संभाल नहीं सकता। पार्टी को इस समय एकता की जरूरत है। कांग्रेस नेतृत्व के लिए और ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं। मु यमंत्री तथा विरोधियों के बीच तत्काल रूप से शांति स्थापित करना पहला कदम है। दूसरी बात यह है कि मु यमंत्री को प्रत्येक नेता को अपने साथ लेकर चलना होगा। तीसरा, चुनावों के दौरान किए गए वायदों को लागू करने के लिए तेजी लानी होगी। 

चौथी बात यह है कि कोविड आपदा कार्यों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। जब तक लोग ये नहीं मान लेते कि सरकार एक अच्छा कार्य कर रही है तब तक चुनौतियां कायम रहेंगी। पांचवां यह कि जब तक कोई विकल्प नहीं हो तब तक मु यमंत्री को और सुदृढ़ करना होगा। 

छठा यह कि पार्टी कार्यकत्र्ताओं को जागरूक करना होगा ताकि वह चुनावों के लिए तैयार रहें। पंजाब विधानसभा चुनाव फरवरी 2022 के शुरू में एक गर्म राजनीतिक युद्ध हो सकता है। अकाली दल तथा भाजपा जैसी अन्य पाॢटयां भी चीजों को स्थापित करने में लगी हैं। हालांकि कृषि बिलों के मुद्दे को लेकर अकाली दल ने पिछले वर्ष भाजपा से नाता तोड़ लिया था और यह तय किया था कि दोनों ही आगामी चुनावों में अपना-अपना राग अलापेंगे। इसलिए आने वाले समय में पंजाब कई कोणों वाली लड़ाई लड़ सकता है। भाजपा की विस्तारवादी योजनाएं आक्रामक हैं।-कल्याणी शंकर

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