कांग्रेस को ‘युवा’ बनाने की कवायद

Edited By ,Updated: 30 Jun, 2019 04:40 AM

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कांग्रेस का चेहरा-मोहरा बदलने की कवायद शुरू हो चुकी है। राहुल गांधी ने महीने भर पहले जिस बात का आह्वान किया था, उसके बाद अब थोक भाव में कांग्रेस कमेटियों और कांग्रेसी नेताओं के इस्तीफों के दौर शुरू हो गए हैं। राहुल के घर तक भी यह आंच आ पहुंची है,...

कांग्रेस का चेहरा-मोहरा बदलने की कवायद शुरू हो चुकी है। राहुल गांधी ने महीने भर पहले जिस बात का आह्वान किया था, उसके बाद अब थोक भाव में कांग्रेस कमेटियों और कांग्रेसी नेताओं के इस्तीफों के दौर शुरू हो गए हैं। राहुल के घर तक भी यह आंच आ पहुंची है, उनके अति प्यारे के. राजू की भी राहुल दरबार से छुट्टी हो गई है। पर कौशल विद्यार्थी, अलंकार और संदीप सिंह अभी भी राहुल के साथ बने हुए हैं। 

राहुल अब भी इस बात पर अडिग हैं कि अध्यक्ष पद से दिया गया अपना इस्तीफा वह वापस नहीं लेंगे। अत: कहते हैं सोनिया गांधी की ओर से ए.के. एंटनी के नाम का सुझाव आया है, जिनके बारे में माना जाता है कि वह मनमोहन सिंह की तरह ही गांधी परिवार के बेहद वफादार हैं जो कभी परिवार से बाहर नहीं जा सकते और वह इतने उम्रदराज भी नहीं। पर राहुल समेत कांग्रेस के युवा नेताओं का मानना है कि पार्टी को एक ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो नए सिरे से कांग्रेस की शुरूआत कर सके। 

राहुल ने यह भी तय किया है कि पार्टी संगठन के विभिन्न पदों पर आधे से ज्यादा नेताओं की उम्र 40 से कम होनी चाहिए। महिलाओं को भी पार्टी संगठन में जगह देने की बात हो रही है। जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं व नेताओं को पार्टी संगठन में शामिल किए जाने पर बल दिया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक नया संगठन खड़ा करने की कवायद में जुट गई है। नए संगठनों में एन.एस.यू.आई., यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस, सेवा दल जैसे संगठनों में काम करने वाले नेताओं को भी मौका दिया जा रहा है। राहुल यह भी चाहते हैं कि यूथ कांग्रेस, सेवा दल, एन.एस.यू.आई., महिला कांग्रेस के चेहरे-मोहरे को भी बदला जाए और इनके लिए नए सिरे से सदस्यता अभियान चलाया जाए। सोच अच्छी है, परवान चढ़े तो बात बने। 

इस अफसर की वजह से बच गए हुड्डा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गांधी परिवार के सबसे बड़े वफादारों में शुमार होते हैं, चुनांचे केन्द्र नीत भाजपा सरकार और केन्द्रीय जांच एजैंसियों के पिछले काफी समय से वह निशाने पर रहे हैं। केन्द्रीय जांच एजैंसियों ने गुरुग्राम और इसके आसपास के इलाकों के कोई 400 एकड़ जमीन घोटालों के सबूतों को जब खंगालना शुरू किया तो कई चौंकाने वाले नाम उभर कर सामने आए। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो हुड्डा पर कोई कार्रवाई करने से पहले ई.डी. और सी.बी.आई. ने इस पूर्व मुख्यमंत्री के खास अधिकारियों की एक फाइल तैयार की, इस सूची में हुड्डा के सचिव रहे छत्तर सिंह, एम.एल. तायल के अलावा एक आई.ए.एस. अधिकारी राजीव अरोड़ा का भी नाम शामिल बताया जाता है। 

सनद रहे कि राजीव अरोड़ा 2005 के दौर में एच.एस.आई.आई.डी.सी. के एम.डी. थे। सूत्रों की मानें तो अरोड़ा के एम.डी. रहने के दौरान ही ‘स्पैशल इकोनॉमिक जोन’ के तहत तत्कालीन हरियाणा सरकार और रिलायंस समेत कई कम्पनियों के बीच समझौते हुए थे। कहते हैं इस करारनामे को त्वरित गति से परवान चढ़ाने में हुड्डा और अरोड़ा दोनों की एक महत्ती भूमिका थी। 

अगला गृह सचिव कौन
देश का अगला गृह सचिव कौन होगा, इसको लेकर कयासों का बाजार गर्म है। ज्यादातर नौकरशाह इस पद पर तैनाती को कांटों का ताज मानते हैं, अत: विश्वस्त सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो सरकार ने इस बाबत एक लिस्ट तैयार की थी और उस लिस्ट में शामिल तीन ब्यूरोक्रेट्स ने गृह सचिव बनने में अपनी असमर्थता जता दी। इसके बाद से ही इस रेस में बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम का नाम सबसे आगे चल रहा है जिन्हें कश्मीर और आतंकवाद मसले का एक्सपर्ट भी माना जाता है। फिलवक्त केन्द्र सरकार को भी ऐसे ही किसी अधिकारी की तलाश है। 

आंध्र में खिलेगा कमल
आंध्र प्रदेश में भले ही भाजपा इन चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई हो, पर आंध्र में वापसी की भगवा पटकथा लिखी जा चुकी है। जल्द ही भाजपा यहां प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में नजर आ सकती है। भाजपा और जगन दोनों ही इस बात पर एक राय हैं कि आंध्र से चंद्रबाबू व तेदेपा का सूपड़ा साफ होना चाहिए। इस सोच में जगन ने भी भाजपा का साथ देने का मन बनाया हुआ है। राज्यसभा में तेलगु देशम पार्टी के 6 में से 4 सांसदों ने पहले ही भाजपा का दामन थाम लिया है, जिससे उत्साहित होकर भाजपा ने तेदेपा विधायकों पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। इस वक्त आंध्र विधानसभा में तेदेपा के 23 विधायक निर्वाचित होकर पहुंचे हैं। सूत्रों की मानें तो इसमें से 16 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और कहते हैं इनमें से 13 ने भाजपा में आने की सहमति जता दी है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा आंध्र में प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर अवतरित हो सकती है। 

आंध्र में भाजपा की जमीन तैयार करने की पूरी जिम्मेदारी संघ विचारक सुनील देवधर ने उठा रखी है जो पहले ही वर्षों से त्रिपुरा में सरकार में कुंडली जमाए माणिक सरकार को वहां से चलता कर चुके हैं। वैसे भी देवधर के लिए आंध्र में काम इस दफे इसलिए भी आसान हो गया है क्योंकि इन चुनावों में वहां कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। भाजपा जगन पर लगातार यह दबाव बना रही है कि वह जल्दी से जल्दी चंद्र्रबाबू के कथित घोटालों की फाइलें खोलें। यह आइडिया जगन को भी मुफीद लगता है क्योंकि जगन का चंद्रबाबू से छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। एक बार जो नायडू निपट गए, आगे के दिनों में भाजपा के लिए जगन से भिडऩा किंचित आसान होगा। 

मोदी के प्यारे जावड़ेकर व फडऩवीस
महाराष्ट्र के दो पार्टी नेताओं पर प्रधानमंत्री मोदी की विशेष अनुकम्पा बरस रही है। ये दो नेता हैं केन्द्रीय सूचना प्रसारण व पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और महाराष्ट्र के युवा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस। यह प्रधानमंत्री के अतिरिक्त दुलार का असर है कि महाराष्ट्र में फडऩवीस को अब तक अभयदान मिला हुआ है, लगभग 5 वर्ष राज्य में सत्ता चलाने के बावजूद पार्टी या सरकार में उनके खिलाफ असंतोष के स्वर किंचित कम ही उभरे हैं। शांत, सरल व मृदुल स्वभाव के जावड़ेकर के पास मोदी सरकार की नीतियों और उपलब्धियों को जनता के द्वार तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। शायद यही वजह है कि इस बार उन्हें सूचना व प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा भी मिला है। अपनी मुहिम की शुरूआत करते हुए जावड़ेकर ने पिछले हफ्ते मीडिया, डिजीटल मीडिया और आॢथक मामलों से जुड़े 50 चुङ्क्षनदा पत्रकारों को दिल्ली के एक पंचतारा होटल में डिनर पर बुलाया था। 

भाजपा का कश्मीर एजैंडा
शुक्रवार को संसद में जिन लोगों ने गृह मंत्री अमित शाह का भाषण सुना होगा और कश्मीर को लेकर भगवा आग्रहों के निहितार्थ तलाशे होंगे, वे बखूबी समझ चुके होंगे कि भाजपा नेतृत्व कश्मीर को लेकर कितना गंभीर है। शायद यही वजह है कि शाह ने जब देश के बंटवारे और कश्मीर समस्या का जिक्र किया तो अनायास ही पंडित नेहरू को इसका प्रतिनायक ठहरा बैठे। खूब हंगामा हुआ पर शाह अपने तर्क और कश्मीर पर संघ व भाजपा की लाइन से डिगे नहीं, और न ही यह बताने से ही संकोच किया कि कश्मीर में धारा 370 अस्थायी है। कश्मीर को लेकर मोदी-शाह का एजैंडा साफ है कि ‘पहले तो देश को यह संदेश देना है कि कश्मीर की समस्या को कोई हल कर सकता है तो वह भाजपा ही है।’ 

सूत्रों की मानें तो भाजपा का प्लॉन घाटी में राष्ट्रवादी मुस्लिम नौजवानों को तैयार करने का है। इस काम में संघ का एक अनुषांगिक संगठन ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ पहले से जुड़ा हुआ है। इस मंच के संचालक इंद्रेश कुमार को कश्मीर मामलों में सिद्धहस्ता हासिल है। जब से वहां से महबूबा सरकार की विदाई हुई है आतंकियों को लेकर केन्द्र सरकार ने अपनी मंशा साफ जाहिर कर दी है कि या तो सरैंडर करो या फिर गोली खाने को तैयार रहो। न सिर्फ अलगाववादी संगठनों की फंङ्क्षडग पर रोक लगी है, बल्कि ऐसे नेताओं को सलाखों के पीछे भी डाला गया है। भाजपा का यह भी मानना है कि जब तक कश्मीर अपनी लीडरशिप तैयार कर न ले तब तक सर्वसम्मति का कोई माहौल बन नहीं पाएगा। केन्द्र ने कल्याणकारी योजनाओं की कश्मीर में बाढ़-सी ला दी है, वहां के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देने के प्रयास हो रहे हैं और पूरे देश में यह मूड बनाने की कोशिश हो रही है कि कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। 

...और अंत में 
क्या प्रियंका गांधी यू.पी. में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में चूक गई हैं या यू.पी. चुनावों में पार्टी की इतनी बुरी गत से वहां की राजनीति से उनका मोहभंग हो गया है? नहीं तो क्या वजह है कि पूर्वी यू.पी. की जिम्मेदारी उन्होंने अपने भरोसेमंद अजय लल्लू को सौंप दी है। पहले यहां की जिम्मेदारी प्रियंका के पास थी। अब पूर्वी यू.पी. के कांग्रेसी कार्यकत्र्ता लल्लू को यथोचित गंभीरता से नहीं ले रहे, उनका मानना है कि प्रियंका का यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया  लगता है।-मिर्च-मसाला त्रिदीब रमण

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