क्या छोटे दल बड़े राजनीतिक दलों का मोहरा बनते रहेंगे?

Edited By ,Updated: 05 May, 2024 05:33 AM

will small parties continue to become pawns of big political parties

छोटे राजनीतिक दल स्थानीय मुद्दों को उठाकर सच्ची और सामाजिक सरोकार की राजनीति कर सकते हैं। ऐसे राजनीतिक दल जनता से जुड़ाव और स्थानीय मुद्दों को केन्द्र में रखकर सामाजिक परिवर्तन में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस तरह के...

छोटे राजनीतिक दल स्थानीय मुद्दों को उठाकर सच्ची और सामाजिक सरोकार की राजनीति कर सकते हैं। ऐसे राजनीतिक दल जनता से जुड़ाव और स्थानीय मुद्दों को केन्द्र में रखकर सामाजिक परिवर्तन में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस तरह के दल बड़े राजनीतिक दलों के चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं। लगभग 8-10 जिलों तक सिमटे रहने वाले छोटे राजनीतिक दलों का व्यवहार लगातार बदलता रहता है। वे किसी एक विचारधारा पर कायम नहीं रह पाते हैं। जब छोटे दल किसी भी हाल में सत्ता के साथ गठजोड़ कर लेते हैं तो यह सवाल खड़ा होता है कि बड़ी-बड़ी बातें करने वाले छोटे राजनीतिक दलों का उद्देश्य आखिर क्या होता है? अक्सर बहुत छोटी राजनीतिक पाॢटयां समय आने पर स्वयं राजनीतिक सौदेबाजी करने लगती हैं या फिर राजनीतिक सौदेबाजी का शिकार हो जाती हैं। 

इस तरह ऐसी पार्टियां संघर्ष का रास्ता छोड़कर अपने लिए मलाई चाटने वाला रास्ता पकड़ लेती हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बहुत छोटे राजनीतिक दल किसी बड़े सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर पैदा होते हैं या फिर उनका उद्देश्य केवल अपना व्यक्तिगत स्वार्थ साधना होता है? छोटे राजनीतिक दलों का दायरा छोटा होने के कारण वे जनता से बेहतर तरीके से संवाद कर सकते हैं और उनके दुख-दर्द में शामिल हो सकते हैं। जनता से व्यक्तिगत रूप से जुडऩे का फायदा भी उन्हें हो सकता है। बड़े राजनीतिक दल अक्सर जनता के बहुत छोटे मुद्दों पर मौन रहते हैं। ऐसे माहौल में छोटे दलों के पास यह अवसर होता है कि वे बड़े दलों की इस कमजोरी का फायदा उठाकर सामाजिक परिवर्तन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें और सामाजिक सरोकार की राजनीति को आगे बढ़ाएं। विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है? क्या सच्चे अर्थों में छोटे दल किसी बड़ी क्रान्ति का स्वप्न देखते हैं या फिर किसी भी तरह सत्ता का हिस्सा बनना ही उनका स्वप्न होता है? 

अक्सर कुछ अपवादों को छोड़कर छोटे राजनीतिक दल कोई बड़ा संघर्ष करते नजर नहीं आते। ऐसे दल सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने और सामाजिक परिवर्तन की बात करते जरूर हैं लेेकिन जब सामाजिक परिवर्तन के लिए लडऩे की बारी आती है तो लडऩे का रास्ता छोड़ देते हैं। उनके लिए सामाजिक परिवर्तन से ज्यादा जरूरी अपना परिवर्तन हो जाता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जनता छोटे राजनीतिक दलों पर क्यों विश्वास करे? छोटे राजनीतिक दलों पर विश्वास कर उन्हें क्या हासिल होगा? छोटे दलों के इस व्यवहार से जनता को कुछ हासिल हो या न हो लेकिन राजनीतिक दलों के आकाओं को बहुत कुछ हासिल हो जाता है। जातिवादी राजनीति के चलते ऐसी राजनीतिक पाॢटयां 8-10 जिलों में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं और लगातार राजनीतिक सौदेबाजी के माध्यम से मलाई चाटती रहती हैं। इसी जातिवादी राजनीति के चलते छोटे दलों के अध्यक्ष छाती ठोककर लगातार पाला बदलते रहते हैं और अपने स्तरहीन बयानों के माध्यम से चर्चा में बने रहते हैं।

इस पूरे माहौल में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भविष्य में छोटे राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद ही न की जाए ? उम्मीद पर तो यह दुनिया ही टिकी है लेकिन इस दौर में जिस तरह से विचारधारा की राजनीति खत्म हो रही है, उससे वास्तविक रूप से सामाजिक सरोकार रखने वाले संवेदनशील इंसान के मन में एक निराशा का भाव जरूर पैदा होता है। तो क्या भविष्य में छोटे राजनीतिक दल अपनी तुच्छ राजनीतिक इच्छाओं के स्वार्थ में बड़े राजनीतिक दलों का मोहरा बनते रहेंगे? क्या संघर्ष का रास्ता छोड़कर वे उन मतदाताओं का स्वप्न पूरा कर पाएंगे, जिनका नाम लेकर वे राजनीति करते हैं? लेकिन जब जनता ने ही सवाल उठाना बंद कर दिया हो तो छोटे राजनीतिक दलों से क्या उम्मीद की जा सकती है।-रोहित कौशिक 
 

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