‘वुडन चिकन’ का सेवन ‘मधुमेह’ की समस्या बढ़ा सकता है

Edited By ,Updated: 19 Aug, 2020 05:20 AM

consumption of wooden chicken can aggravate the problem of diabetes

मैंने चिकन को खाने में सैंकड़ों समस्याएं बताई होंगी। सबसे हालिया कुछ एेसा है जिससे पोल्ट्री उद्योग वास्तव में चिंतित है। उन्होंने इस समस्या को वुडन ब्रैस्ट सिंड्रोम या चुई चिकन का नाम दिया है। ब्रैस्ट फिलेट की एक बढ़ती हुई संख्या में कठोर फाइबर होते...

मैंने चिकन को खाने में सैंकड़ों समस्याएं बताई होंगी। सबसे हालिया कुछ एेसा है जिससे पोल्ट्री उद्योग वास्तव में चिंतित है। उन्होंने इस समस्या को वुडन ब्रैस्ट सिंड्रोम या चुई चिकन का नाम दिया है। ब्रैस्ट फिलेट की एक बढ़ती हुई संख्या में कठोर फाइबर होते हैं। एक अध्ययन में, एक उपभोक्ता पैनल ने प्रभावित मांस को ‘‘सख्त‘‘, ‘‘चिपचिपा’’, ‘‘चबाने में कठिनाई वाला’’, ‘‘रबड़ जैसा’’ और ‘‘मुंह में स्वाद सही नहीं लगने’’ वाला बताया। 

जब आपने अपना चिकन खाया, तो क्या उसका मांस सख्त और चबाने में मुश्किल भरा था और क्या आपने इसे सही से न पकाने के लिए कुक को दोषी ठहराया था? कुक कुछ भी नहीं कर सकता है। यह समस्या उस परिवेश में निहित है जिसमें चिकन को पाला गया है। पालने की तकनीक, आहार दिनचर्या और मुर्गी पालन के व्यावसायिक पैमाने पर उत्पादन ने उत्पादित मांस की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया है। 

सख्त और चबाने में मुश्किल वाले चिकन के मांस का कारण, डेलावेयर कालेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड नैचुरल रिसोॢसज के शोधकत्र्ताआें ने जनरल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में अपने कार्य को प्रकाशित किया है, उन्होंने पाया है कि लिपोप्रोटीन लाइपेस में उतार-चढ़ाव, जो वसा के पाचन के लिए महत्वपूर्ण एंजाइम है, ब्रायलर मुर्गियों में वुडन ब्रैस्ट सिंड्रोम का कारण है। ये हालात अब औद्योगिक मुर्गी पालन में पाली जाने वाली लाखों मुर्गियों के हैं। मुर्गी पालन उद्योग को इससे चिकन को होने वाले दर्द की चिंता नहीं है-उन्हें केवल यह चिंता है कि इससे उन्हें इसे बेचने में समस्या आ रही है। 

वध के लिए जबरन पाली जाने वाली ब्रायलर मुर्गियों में जीन अनियमितताएं विकसित हो गई हैं और इस बीमारी में छाती की मांसपेशियों के टिशुआें में असामान्य वसा जमा हो जाती है। इस स्थिति के कारण चिकन की छाती का मांस स्पर्श के लिए कठोर हो जाता है और अक्सर खराब गुणवत्ता की बनावट के साथ रंग में पीला पड़ जाता है। अल्पावधि समाधान यह स्थिति विकसित हो जाने वाले पक्षियों को मार डालना है जिससे नुक्सान और अधिक होगा। दूसरा उपाय यह है कि और दवाइयां खोजी जाएं जो छोटे पिंजरों में बंद किए गए और एंटीबायोटिक्स तथा एंटीफंगल के माध्यम से जीवित रखे गए पहले से ही तनावग्रस्त पक्षियों में समस्या का ‘‘प्रबंधन’’ कर देगा। 

जर्नल जीन में प्रकाशित शोध में, वैज्ञानिकों ने चिकन में वुडन बै्रस्ट सिंड्रोम और मनुष्यों में मधुमेह, विशेष रूप से मधुमेह काॢडयोमायोपैथी-एक एेसी बीमारी जो हृदय की मांसपेशी के अणुआें को बदल देती है, की जटिलताआें के बीच समानताएं खोजने को सूचित किया है। पोल्ट्री उद्योग के वैज्ञानिक मुर्गियों को बेचने तक मधुमेह-रोधी दवाआें को खिलाने का सुझाव दे रहे हैं जिसका अर्थ है कि आपके अपने कृत्रिम रूप से तेजी से विकसित फैक्टरी में पाले जाने वाले ब्रायलर मुर्गियों को एक और दवा खिलाई जाएगी और यदि आपको मधुमेह नहीं है, तो कौन जानता है कि आपके चिकन में इन दवाआें की मौजूदगी आपके शरीर के लिए क्या करेगी। 

लिपोप्रोटीन लाइपेस एक ‘‘रखवाला’’ है जो निर्धारित करता है कि किसी दिए गए टिशु के अंदर कितनी वसा जाएगी। जब रखवाले एंजाइम मुर्गियों की कई पीढिय़ों पर कई वर्षों के जैनेटिक दुव्र्यवहारों से प्रभावित होते हैं, तो चिकन की सीने की मांसपेशियों और एंडोथेलियल मांसपेशियों में अधिक असामान्य वसा जमा होती है। स्थिति के पहले चरण में ब्रैस्ट टिशु में नसों की सूजन और प्रभावित नसों के आसपास वसा का जमना शामिल होता है। समय के साथ, इसमें मांसपेशी कोशिका की मृत्यु होती है और इसे फाइबर वाले तथा वसायुक्त टिशु द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। 

बड़े, तेजी से विकसित चिकन में लाखों समस्याएं हैं। यदि आप दो साल के मानव के बच्चे को 6 फीट तक बढ़ाने और पहलवान की मांसपेशियां और सीना देने का प्रयास करेंगे तो मानव शरीर भी तनाव के साथ ढह जाएगा। पोल्ट्री उद्योग अब एेसे चिकन बना रहा है जो 1920 के दशक वालों से तीन गुना बड़े हैं। तब, औसत चिकन का वजन 2.5 पाऊंड था। नैशनल चिकन काऊंसिल के अनुसार चिकन का वजन आज औसतन 6-10 पाऊंड है। ब्रायलर चिकन अब एेसी बै्रस्ट फिलेट उत्पन्न करता है जो कुछ दशक पहले तक के एक पूरे पक्षी से अधिक भारी होती हैं। अपने दिल का वजन अपने पूरे शरीर से अधिक होने की कल्पना कीजिए। 

इटली की यूनिवॢसटी ऑफ बोलोग्रा के भोजन वैज्ञानिक मासिमिलियानो पेट्राकी का कहना है कि बड़े, तेजी से विकसित होने वाले चिकन को वुडन ब्रैस्ट की उत्पत्ति से जोड़ा जाता है। अर्बन यूनिवर्सिटी में पोल्ट्री साइंस के प्रोफैसर एमिरिटस सेसिट एफ. बिलगिली कहते हैं कि ‘‘अंतिम वजन उतना मायने नहीं रखता जितना कि पक्षी कितनी तेजी से इसे प्राप्त करता है।’’ 1930 में एक ब्रायलर को एक पाऊंड वजन प्राप्त करने में 50 दिन लगते थे। अब एक पाऊंड प्राप्त करने में 7.7 दिन लगते हैं। 1965 में, 3$5 पाऊंड के पक्षी को बाजार में आने में 63 दिन लगते थे। एग्री स्टैट्स इनकार्पोरेटिड के अनुसार, 2015 में, औसत पक्षी का वजन 48 दिनों में 6$2 पाऊंड था। कई कम्पनियां अब 10 पाऊंड या उससे बड़े चिकन को ला रही हैं। 

जैसे मधुमेह के लक्षण नहीं दिखते हैं, वुडन बै्रस्ट, जोकि भारी मुर्गियों में अधिक आम है,  इसका जीवित जानवरों में पता लगाना मुश्किल है, जो पक्षियों के मारे जाने और उनकी हड्डी निकाले जाने के बाद दिखता है। वुडन चिकन का सेवन करना केवल गलत भोजन खाने का मामला नहीं है। क्या मांस जिगर की समस्याआें, मधुमेह और एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में वसा का जमना) वाले लोगों में समस्या को बढ़ा सकता है? क्या वुडन ब्रैस्ट सिंड्रोम चिकन मधुमेह का एक और नाम है?-मेनका गांधी

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!