अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए ‘खर्चों’ पर नियंत्रण आवश्यक

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2020 04:36 AM

control of expenses necessary to strengthen the economy

पुलिस विभाग में आने से पहले मैं कालेज स्तर का अर्थशास्त्र विषय का प्रवक्ता रहा हूं तथा अपनी व्यक्तिगत सूझबूझ से वर्तमान में चरमरा रही भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनुत्पादकीय खर्चों पर नियंत्रण लाने के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत...

पुलिस विभाग में आने से पहले मैं कालेज स्तर का अर्थशास्त्र विषय का प्रवक्ता रहा हूं तथा अपनी व्यक्तिगत सूझबूझ से वर्तमान में चरमरा रही भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनुत्पादकीय खर्चों पर नियंत्रण लाने के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूं। 

भारत सहित दुनिया के कई देशों में आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती होने के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं। कोरोना महामारी ने मानो अर्थव्यवस्था के पहिए जाम कर दिए हैं तथा भारत में भी आर्थिक विकास दर लगातार घटती ही जा रही है। वर्ष 1929-30 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद अब 2020 में एक बार फिर मंदी का तांडव देखने को मिल रहा है। मंदी एक दुष्चक्र की तरह काम करती है जिसका एक पहलू के साथ दूसरे पहलू के साथ  संबंध होता है। लोगों की क्रय शक्ति इसलिए कम हो जाती है क्योंकि उनके पास आय के साधन सीमित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप पूंजी निर्माण कार्य ठप्प पड़ जाते हैं। कम आय होने के कारण उनकी बचत कम हो जाती है तथा इसी तरह कुल निवेश कम होने के कारण बेरोजगारी बढऩे लगती है।

सरकार ने निश्चित तौर पर कुछ आर्थिक कदम उठाए हैं तथा कई प्रकार के आर्थिक पैकेज भी विकसित किए हैं। उदाहरण के तौर पर किसानों के खातों में पैसे डाले हैं, मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी बढ़ाई है तथा जन-धन खातों में भी आर्थिक सहायता के रूप में धन जमा किया है। इसी तरह बैंकों के कर्जों की दरें भी घटाई हैं ताकि लोग अधिक से अधिक कर्ज लेकर अपना निवेश बढ़ाएं। इसी तरह सरकार से फेसलैस इकोनॉमी के अंतर्गत कर प्रणाली को भी सुगम किया है। मगर इन सबका कोई विशेष असर देखने को नहीं मिल रहा है। 

इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महान शक्तियों जैसा कि अमरीका व चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। अभी सरकार लुभावने आर्थिक पैकेज दे रही है मगर इन सबका दूरगामी दुष्प्रभाव भी कुछ ही समय में देखने को मिलेगा जब वित्तीय घाटा बहुत बढ़ जाएगा तथा सरकार के पास आम लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं रहेगा तथा कीमतें आसमान को छूने लगेंगी। सरकारी मुलाजिमों को तो महंगाई भत्ता मिल ही जाएगा मगर गरीब दिहाड़ीदार व्यक्ति पिसना शुरू हो जाएगा। 

आवश्यक है कि कोरोना के इस विकट काल में सरकार को अवांछित खर्चों पर तथा भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की तरफ भी उचित ध्यान देना चाहिए। इस समय सरकारों को बिना वजह के पद सृजित नहीं करने चाहिएं जिनके बगैर भी तो कार्य ठीक चल रहा है तथा सेवानिवृत्त अधिकारियों के लिए सृजित किए जाने वाले पदों का कोई विशेष औचित्य नहीं है। सरकार का आधा बजट मुलाजिमों के वेतन व पैंशन इत्यादि पर खर्च होता है तथा बहुत बड़ा भाग उधार लिए हुए कर्जों की किस्तों को चुकाने में लग जाता है। कई प्रकार के भवन जैसे विश्राम गृहों का निर्माण तथा बिना औचित्य के अन्य छोटे-छोटे ढांचों पर जैसा कि रेन शैल्टरों पर लाखों का पैसा खर्च करना आम लोगों को विशेष सुखदायी नहीं लगता है। 

जहां पर कम खर्चा करने से ही काम चल सकता हो  वहां पर इस तरह सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। राजनीतिज्ञों को भी एक अच्छी गृहिणी की तरह अपना घर चलाने के लिए अपने अवांछित खर्चों पर अंकुश लगाकर मितव्ययिता के आचरण को विकसित करना चाहिए। उपरोक्त वर्णित सुझाव देखने को सूक्ष्म जरूर लगते हैं मगर जिस तरह बूंद-बंद से ही घड़ा भरता है, उसी तरह यह छोटे दिखने वाले कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़  बनाने में कारगर सिद्ध होंगे। यहां पर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री शांता कुमार द्वारा अपने शासनकाल में उठाए गए कदमों की चर्चा करना आवश्यक है जिन्होंने अपने व मंत्रियों के सरकारी भ्रमण के दौरान पुलिस की एस्कॉर्ट व पायलट गाडिय़ां बंद कर दी थीं तथा विश्राम गृहों में बिना वजह से सत्कार रूप से मिलने वाली गार्ड ऑफ ऑनर इत्यादि बंद कर दिए थे। इसी तरह उन्होंने भ्रमण के दौरान अपने साथ केवल एस.पी. व डी.सी. की गाडिय़ों को ही चलाने की अनुमति दे रखी थी। टैलीफोन के बिलों की सीमा निर्धारित कर दी गई थी। मगर अब तो टैलीफोन के नाम पर विधायकों व मंत्रियों को कई हजार का भत्ता दिया जाता है। 

इसी तरह विभिन्न उद्घाटन समारोहों पर दिए जाने वाले प्रीतिभोज व जलपान इत्यादि पर पूर्णतया प्रतिबंध था। विभिन्न समारोहों पर दिए जाने वाले उपहार, शाल व टोपियां इत्यादि पर प्रतिबंध था तथा अधिकारियों को दीवाली जैसे त्यौहारों पर मिलने वाले उपहारों पर भी पूर्ण प्रतिबंध था। आखिर ऐसे प्रीतिभोज संबंधित विभाग द्वारा ही आयोजित किए जाते हैं तथा वह अपनी जेब से ऐसा खर्चा नहीं उठाते बल्कि उस विभाग के अधिकारी यह सारा खर्चा ठेकेदार के सिर पर डालते हैं तथा ठेकेदार इस खर्च की भरपाई बनाए गए भवनों या सड़कों की गुणवत्ता के साथ समझौता करके सरकारी धन का दुरुपयोग करके पूरा करते हैं। 

यह भी देखा गया है कि राज्य सरकारों को केंद्र या अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मिले विशेष अनुदानों का सही प्रयोग नहीं किया जाता तथा यह समझकर कि यह पैसा एक अतिरिक्त धनराशि है, का धड़ल्ले से नाजायज रूप से खर्च किया जाता है। किसी को इसके लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जाता। यदि हम हिमाचल की बात करें तो सरकार ने विभिन्न विभागों द्वारा बनाए जा रहे भवनों इत्यादि की गुणवत्ता निर्धारित करने के लिए एक विभाग जरूर बनाया है मगर संजय कुंडु, आई.पी.एस. जिनके पास इस निगरानी का जिम्मा था, को हिमाचल पुलिस में वापस आ जाने पर यह विभाग केवल औपचारिकता ही निभाता नजर आ रहा है तथा जिसे सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। कोरोना महामारी द्वारा उत्पन्न आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए यहां एक तरफ फिजूल खर्चों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। 

अर्थव्यवस्था की उखड़ती हुई पट्टी की मुरम्मत करने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है तथा समय रहते यदि ऐसे कदमों को न उठाया गया तो भारत की अर्थव्यवस्था निश्चित तौर पर प्रभावित होगी।-राजेंद्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड),हिमाचल प्रदेश
 

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