‘कुदृष्टि’ का शिकार न बन पाएं महिलाएं

Edited By Pardeep,Updated: 25 Nov, 2018 03:56 AM

do not become a victim of  insanity

महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ केवल भारत का ही नहीं अपितु सारे विश्व का रोग बनता जा रहा है। छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार की घटनाएं दुनिया के सभी देशों में बढ़ती जा रही हैं। महिलाओं के प्रति बढ़ती कुदृष्टि का मूल कारण क्या है? इसके लिए महिला...

महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ केवल भारत का ही नहीं अपितु सारे विश्व का रोग बनता जा रहा है। छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार की घटनाएं दुनिया के सभी देशों में बढ़ती जा रही हैं। महिलाओं के प्रति बढ़ती कुदृष्टि का मूल कारण क्या है? इसके लिए महिला इतिहास की यात्रा बहुत संक्षिप्त में समझी जा सकती है। सृष्टि का प्रत्येक प्राणी अर्थात मनुष्य सहित सभी पशु-पक्षियों को जन्म सुख और पालन-पोषण का सुख महिला वर्ग से ही प्राप्त होता है। प्रत्येक महिला किसी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी होती है। जो महिलाएं अपनी सभ्यता और संस्कृति को अपने जीवन में एकरूप कर लेती हैं तो उस सभ्यता के गुण उनकी संतान में और पूरे परिवार में दिखाई देने लगते हैं। 

इस प्रकार एक नारी स्वाभाविक रूप से परिवार को नेतृत्व देने की योग्यता रखती है। अनेकों परिवारों से मिलकर ही राष्ट्र बनता है। जिस प्रकार परिवार के लिए नारी का नेतृत्व एक स्वाभाविक सा गुण है, उसी प्रकार राष्ट्र के लिए भी नारी का नेतृत्व बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। आधुनिक युग में नारी ने परिवार को नेतृत्व देने के साथ-साथ बाहरी समाज को भी नेतृत्व देना प्रारम्भ कर दिया है। जैसे ही नारी परिवार से बाहर निकलती है तो समाज के कुसंस्कारित लोगों की कुदृष्टि का शिकार हो जाती है। परिवार से बाहर निकलने के बावजूद जो नारियां अपने पारिवारिक दायित्व को भी पूरी तरह निभाती रहती हैं, अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी रहती हैं वे बाहरी समाज की कुदृष्टि का मुकाबला करने में भी सक्षम होती हैं।

उद्देश्य बदल जाते हैं परन्तु जब नारी अपनी सभ्यता और संस्कृति से विमुख होकर बाहर के समाज में कदम रखती है तो उसके उद्देश्य बदल जाते हैं। भौतिक विकास, उच्च पदों और धन की लालसा में फंसी नारियां अक्सर कुदृष्टियों को स्वीकृति देने से भी परहेज नहीं करतीं। ऐसी कुछ नारियों के कारण महिलाओं के प्रति कुदृष्टि का विचार बढ़ता चला जाता है। इस संक्षिप्त चर्चा का सारतत्व यह है कि महिलाओं पर कुदृष्टि डालने वाले पुरुष तो निश्चित तौर पर सभ्यता और संस्कारविहीन होते ही हैं, परन्तु इस रोग के बढऩे में केवल उन नारियों को दोषी माना जा सकता है जो स्वयं भी सभ्यता और संस्कारविहीन पथ पर चलने के लिए तैयार हो जाती हैं। इसलिए सभ्यता और संस्कृति के प्रति महिलाओं की निष्ठा अत्यन्त आवश्यक है। इसी एक मजबूती के आधार पर प्रत्येक महिला अपने प्रति पैदा होने वाली कुदृष्टियों का मुकाबला कर सकती है। 

लगभग 2 दशक पूर्व वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा नामक मुकद्दमे में कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए थे। विशाखा महिलाओं का एक गैर-सरकारी संगठन था जिसने राजस्थान के बहुचर्चित भंवरी देवी गैंगरेप केस के बाद सर्वोच्च न्यायालय में कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए एक जनहित याचिका दाखिल की थी। भंवरी देवी ने अपने साथ हुए गैंगरेप के विरुद्ध कानूनी लड़ाई संकल्पबद्ध होकर लड़ी थी। इसके बावजूद आरोपी ट्रायल अदालत के द्वारा आरोपमुक्त कर दिए गए। इस कारण विशाखा सहित अनेकों महिला संगठन अपनी-अपनी याचिकाओं के साथ सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष खड़े नजर आए। 

आंतरिक जांच समिति
सर्वोच्च न्यायालय ने लिंग समानता तथा सम्मान के साथ कार्य करने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और संयुक्त राष्ट्रसंघ के कई प्रस्तावों को आधार बनाकर देशभर में कार्यरत महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए। इस निर्णय का प्रभाव था कि लगभग डेढ़ दशक के बाद संसद को कार्यस्थलों पर महिलाओं के कामुक शोषण को समाप्त करने के लिए वर्ष 2013 में कानून बनाना पड़ा। इस कानून के अनुसार जिस किसी कार्यस्थल पर 10 से अधिक महिलाएं कार्यरत हो वहां इस कानून की धारा-4 के अन्तर्गत एक आन्तरिक जांच समिति का गठन अत्यन्त आवश्यक है। जिस संगठन की एक से अधिक इकाइयां हों तो उन्हें प्रत्येक इकाई के लिए ऐसी जांच समिति गठित करनी होगी।

इस समिति की अध्यक्षा उस संगठन की एक वरिष्ठ महिला अधिकारी ही होनी चाहिए। यदि किसी संगठन के पास अपनी वरिष्ठ महिला अधिकारी न हो तो वे किसी अन्य संगठन की वरिष्ठ महिला अधिकारी को नामित करेंगे। इस समिति में महिला अधिकारों के लिए कार्य कर रहे किसी गैर-सरकारी संगठन का एक सदस्य भी शामिल होगा। समिति के कुल सदस्यों में से आधे से अधिक महिला सदस्य ही होनी चाहिए। इस कानून की धारा-2(ओ) के अन्तर्गत कार्यस्थल को भी बड़े व्यापक तरीके से परिभाषित किया गया है। कार्यस्थल से अभिप्राय किसी भी संस्था, विभाग, उद्योग, कार्यालय, शाखा या इकाई से है जिस पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी नियंत्रण हो या कोई को-ऑप्रेटिव सोसाइटी का नियंत्रण हो और चाहे ऐसे कार्यस्थल किसी निजी कम्पनी या संस्था आदि के नियंत्रण में हों। ये निजी संस्थाएं किसी व्यापार, पेशे, शिक्षण कार्यों, मनोरंजन कार्यों, उद्योग, स्वास्थ्य सेवाओं, खेल या वित्तीय गतिविधियों में लगी हों वे सभी कार्य स्थल की परिभाषा में ही शामिल मानी जाएंगी। 

यह कार्यस्थल बेशक देखने में किसी का आवासीय परिसर या घर की तरह ही क्यों न लगता हो, यदि महिलाएं नियमित रूप से उस कार्यस्थल पर आती हैं तो वह स्थान भी इस कानून के दायरे में रहेगा। इसके अतिरिक्त असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले मजदूरों आदि को भी इस कानून का संरक्षण प्राप्त होगा। आन्तरिक जांच समिति के अतिरिक्त प्रत्येक जिले के कलैक्टर या किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी को जिला स्तरीय जांच समिति का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। यह जिला समिति प्रत्येक ब्लॉक के स्तर पर एक-एक अधिकारी की नियुक्ति करके यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी महिला की कोई भी शिकायत तत्काल इस जिला समिति तक पहुंचे। इस समिति को प्रत्येक शिकायत का निवारण 90 दिनों के भीतर करना होता है। इस जिला समिति के द्वारा दोषी पाए जाने वाले पुरुषों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ पीड़ित महिला के पक्ष में मुआवजे का आदेश भी किया जा सकता है। हालांकि इस कानून का दायरा कामुक शोषण की प्रारम्भिक घटनाओं तक ही सीमित है, परन्तु ऐसे कानूनों के ज्ञान और व्यापक प्रयोग से बलात्कार जैसी गम्भीर घटनाओं को टाला जा सकता है। 

कानून का दायरा और व्यापक हो
हाल ही में कई मदरसों, चर्चों आश्रमों व अन्य धार्मिक स्थलों में भी महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं को कामुक शोषण से सुरक्षा देने वाले कानून में यह कमी रह गई है कि इसमें ऐसे तथाकथित धार्मिक स्थलों को कार्यस्थल की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया जहाँ महिलाएं नौकरी न सही परन्तु सेवा या धार्मिक कार्यों के निर्वहन के लिए आती हैं। ढोंगी बाबा, मौलवी और पादरी धार्मिक स्थलों में जाने वाली महिलाओं को भी अपनी कुदृष्टि का शिकार बना लेते हैं तो ऐसी महिलाओं को भी कामुक शोषण से सुरक्षा की गारंटी दी जानी चाहिए। एक छोटे संशोधन से इस कानून का दायरा अत्यंत व्यापक बनाया जा सकता है। इस कानून की छोटी-सी यात्रा का अनुभव यह बताता है कि अभी तक हमारे देश में इस कानून का प्रयोग व्यापक स्तर पर प्रारम्भ नहीं हो पाया। एक तरफ  सरकारी तंत्र इस कानून को लेकर व्यापक प्रबंध नहीं कर पाया तो दूसरी तरफ  ज्ञान के अभाव में बाहर कार्य करने वाली महिलाएं भी अपने अधिकारों और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली इन सुविधाओं से अनजान ही दिखाई देती हैं।

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इस कानून को एक व्यापक आन्दोलन बनाया जा सकता है। इस कानून की धारा-2(ओ) के अन्तर्गत कार्यस्थल को भी बड़े व्यापक तरीके से परिभाषित किया गया है। कार्यस्थल से अभिप्राय किसी भी संस्था, विभाग, उद्योग, कार्यालय, शाखा या इकाई से है जिस पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी नियंत्रण हो या कोई को-ऑप्रेटिव सोसाइटी का नियंत्रण हो और चाहे ऐसे कार्यस्थल किसी निजी कम्पनी या संस्था आदि के नियंत्रण में हों। ये निजी संस्थाएं किसी व्यापार, पेशे, शिक्षण कार्यों, मनोरंजन कार्यों, उद्योग, स्वास्थ्य सेवाओं, खेल या वित्तीय गतिविधियों में लगी हों वे सभी कार्य स्थल की परिभाषा में ही शामिल मानी जाएंगी। 

यह कार्यस्थल बेशक देखने में किसी का आवासीय परिसर या घर की तरह ही क्यों न लगता हो, यदि महिलाएं नियमित रूप से उस कार्यस्थल पर आती हैं तो वह स्थान भी इस कानून के दायरे में रहेगा। इसके अतिरिक्त असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले मजदूरों आदि को भी इस कानून का संरक्षण प्राप्त होगा। आन्तरिक जांच समिति के अतिरिक्त प्रत्येक जिले के कलैक्टर या किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी को जिला स्तरीय जांच समिति का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। यह जिला समिति प्रत्येक ब्लॉक के स्तर पर एक-एक अधिकारी की नियुक्ति करके यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी महिला की कोई भी शिकायत तत्काल इस जिला समिति तक पहुंचे। इस समिति को प्रत्येक शिकायत का निवारण 90 दिनों के भीतर करना होता है। इस जिला समिति के द्वारा दोषी पाए जाने वाले पुरुषों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ पीड़ित महिला के पक्ष में मुआवजे का आदेश भी किया जा सकता है। हालांकि इस कानून का दायरा कामुक शोषण की प्रारम्भिक घटनाओं तक ही सीमित है, परन्तु ऐसे कानूनों के ज्ञान और व्यापक प्रयोग से बलात्कार जैसी गम्भीर घटनाओं को टाला जा सकता है। 

कानून का दायरा और व्यापक हो
हाल ही में कई मदरसों, चर्चों आश्रमों व अन्य धार्मिक स्थलों में भी महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं को कामुक शोषण से सुरक्षा देने वाले कानून में यह कमी रह गई है कि इसमें ऐसे तथाकथित धार्मिक स्थलों को कार्यस्थल की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया जहाँ महिलाएं नौकरी न सही परन्तु सेवा या धार्मिक कार्यों के निर्वहन के लिए आती हैं। ढोंगी बाबा, मौलवी और पादरी धार्मिक स्थलों में जाने वाली महिलाओं को भी अपनी कुदृष्टि का शिकार बना लेते हैं तो ऐसी महिलाओं को भी कामुक शोषण से सुरक्षा की गारंटी दी जानी चाहिए। एक छोटे संशोधन से इस कानून का दायरा अत्यंत व्यापक बनाया जा सकता है। इस कानून की छोटी-सी यात्रा का अनुभव यह बताता है कि अभी तक हमारे देश में इस कानून का प्रयोग व्यापक स्तर पर प्रारम्भ नहीं हो पाया। एक तरफ  सरकारी तंत्र इस कानून को लेकर व्यापक प्रबंध नहीं कर पाया तो दूसरी तरफ  ज्ञान के अभाव में बाहर कार्य करने वाली महिलाएं भी अपने अधिकारों और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली इन सुविधाओं से अनजान ही दिखाई देती हैं। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इस कानून को एक व्यापक आन्दोलन बनाया जा सकता है।-विमल वधावन(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)

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