क्या सपा-बसपा गठबंधन बाजी जीतेगा

Edited By ,Updated: 09 Jan, 2019 04:33 AM

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आमतौर पर कहा जाता है कि ‘उत्तर प्रदेश भारत है और भारत उत्तर प्रदेश’। भारत के सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य में विजय किसी भी पार्टी के लिए राष्ट्रीय चुनावों में एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है क्योंकि 545 संसदीय सीटों में से 80 यहां हैं। इसके साथ ही...

आमतौर पर कहा जाता है कि ‘उत्तर प्रदेश भारत है और भारत उत्तर प्रदेश’। भारत के सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य में विजय किसी भी पार्टी के लिए राष्ट्रीय चुनावों में एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है क्योंकि 545 संसदीय सीटों में से 80 यहां हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश ने देश को कई प्रधानमंत्री उपहार स्वरूप दिए हैं। 

दो क्षेत्रीय विरोधियों बहुजन समाज पार्टी तथा समाजवादी पार्टी के मित्र बनने तथा 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बिना महागठबंधन के लिए जाने से चुनावी परिदृश्य दिलचस्प बनता जा रहा है। यदि गठबंधन के लिए बातचीत में कोई सफलता मिलती है तो कांग्रेस अभी भी एक गठबंधन सांझीदार बन सकती है लेकिन फिलहाल दोनों क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस को बाहर रखना चाहते हैं क्योंकि अभी उनकी योजना में इसके लिए कोई स्थान नहीं है। वे अपने मजबूत क्षेत्रों में अधिकतम सीटें जीतने और वहां से शीर्ष पद के लिए मामले को चुनाव बाद के परिदृश्य तक ले जाना चाहेंगे। 

कांग्रेस की जरूरत नहीं
सपा तथा बसपा को कांग्रेस की जरूरत नहीं है, जो उस महत्वपूर्ण राज्य में अधिक वजन नहीं रखती। दूसरे, कांग्रेस के वोट परिवर्तनीय नहीं। तीसरे, सपा यह महसूस करती है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठजोड़ के प्रयोग से पार्टी को कोई मदद नहीं मिली। इसके साथ ही कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सपा के एकमात्र विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। हालांकि यह कांग्रेस ही थी, जो भाजपा को पराजित करने के लिए क्षेत्रीय दलों को एक साथ आने की जरूरत पर बल दे रही थी लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में विजय प्राप्त करने के बाद यह इन छोटे दलों की मांगों का सम्मान करने में असफल रही। 

चौथे, मायावती कुछ दलित वोटों के कांग्रेस की ओर खिसकने को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने अपनी पार्टी के हितों को ध्यान में रखते हुए खुद की कुछ राजनीतिक गणनाएं की हैं। पांचवें, वे महसूस करते हैं कि त्रिकोणीय मुकाबले से गठबंधन को फायदा होगा क्योंकि यह पुरानी सबसे बड़ी पार्टी के महागठबंधन में शामिल होने के विरोध में कांग्रेस के वोटों को भाजपा को जाने से रोक सकता है क्योंकि कांग्रेस के प्रमुख वोटर दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक हैं। महागठबंधन में सम्भवत: अजित सिंह की राष्ट्रीय लोक दल तथा कुछ छोटी पाॢटयां शामिल हो सकती हैं। किसी समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बीच मजबूत रही रालोद ने अभी हाल ही में अपना पुनर्गठन शुरू किया है। गठबंधन ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी तथा अपना दल के कृष्णा पटेल धड़े को भी मिलाने का प्रयास कर रहा है। 

गठबंधन की कैमिस्ट्री
गठबंधन का न केवल अपना गणित है बल्कि कैमिस्ट्री भी क्योंकि किसी समय कट्टर शत्रु रहे मायावती (बसपा) तथा सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब ‘बुआ तथा भतीजा’ हैं। 2014 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की मत हिस्सेदारी 42.63 प्रतिशत थी, जबकि सपा-बसपा ने मिल कर 42.19 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, जो लगभग बराबर थे। 2017 में मायावती द्वारा 22.23 प्रतिशत वोटें तथा सपा द्वारा 28.32 प्रतिशत वोटें जीतने से दोनों ने कुल वोटों का लगभग आधा प्राप्त कर लिया था। यदि कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल हो जाती है तो इनकी सांझी मत हिस्सेदारी भाजपा की हिस्सेदारी से अधिक होगी। 

कांग्रेस में गठबंधन में शामिल होने को लेकर मतभेद हैं। यह 2017 के विपरीत है जब पार्टी ने एक राय से सपा के साथ गठबंधन करने का पक्ष लिया था। एक वर्ग का यह मानना है कि मुकाबले को त्रिकोणीय बनाना निश्चित तौर पर भाजपा को चोट पहुंचाएगा। हो सकता है कि एक- दूसरे की मदद करने के लिए महागठबंधन की कांग्रेस के साथ कोई रणनीतिक सहमति हो। इससे भाजपा कहां ठहरती है? विशेषज्ञों का कहना है कि इसका अर्थ यह हुआ कि गठबंधन 50 सीटें ले जा सकता है। इसके बाद कांग्रेस तथा भाजपा के लिए 30 सीटें बच जाएंगी। कांग्रेस 2 सीटें ले जा सकती है, गांधियों की तथा सम्भवत: एक-दो अधिक। भाजपा ज्यादा से ज्यादा 24-25 सीटों की आशा कर सकती है। हिन्दी पट्टी में हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में हार के बाद यह सम्भवत: 30 सीटें और गंवा सकती है। अन्य राज्यों में यह 20 सीटें खो सकती है। इसलिए यह अनुमान है कि भाजपा 100 तक सीटें गंवा सकती है और 2014 में इसके द्वारा जीती गई 282 सीटों के आंकड़े तक पहुंचने के लिए इसे इस अंतर को अन्य क्षेत्रों से पूरा करना होगा। 

भाजपा कितनी सीटें ले पाएगी
पश्चिम बंगाल, दक्षिण तथा ओडिशा में यह कितनी सीटें ले जा पाएगी? और तो और, भाजपा के पास कोई बड़े गठबंधन सांझीदार भी नहीं हैं। तेलुगु देशम पार्टी तथा असम गण परिषद इसे छोड़ चुकी हैं, शिवसेना छोडऩे की धमकी दे रही है। पी.डी.पी. छोड़ चुकी है तथा शिरोमणि अकाली दल खफा है। वर्ष 2014 से लेकर अब तक लगभग 18 छोटे दल राजग को छोड़ चुके हैं। हालांकि भाजपा इस बात से सहमत नहीं क्योंकि उसका मानना है कि लोग मोदी को वोट देंगे। पार्टी को अपने मजबूत नेतृत्व, प्रभावी संचार, अनुशासित संगठन,असीमित कोष के साथ-साथ विभाजित विपक्ष के कारण वापसी की आशा है। हालांकि पार्टी में एक चिंता की भावना देखी जा सकती है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह नरम पड़ चुके हैं। शीर्ष नेतृत्व पहले ही सुधार के रास्ते पर है और अगले सप्ताह होने वाली अपनी राष्ट्रीय परिषद बैठक के लिए एक नए कथानक पर विचार कर रहा है। लेकिन मोदी अभी भी अचम्भे कर सकते हैं। राजनीति में एक सप्ताह लम्बा माना जाता है और किसी भी भविष्यवाणी के लिए तीन महीने बहुत लम्बे हैं। एक बात तो तय है कि सरकार बना कर या बनाए बगैर भाजपा अकेली सबसे बड़ी पार्टी के  तौर पर उभरेगी।-कल्याणी शंकर

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