भाजपा की हार के लिए किसान आंदोलन भी एक कारण रहा

Edited By ,Updated: 04 May, 2021 02:58 AM

farmer movement was also a reason for bjp s defeat

चार राज्यों तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों की गिनती जैसे ही 2 मई को आर भ हुई तो तमाम मीडिया का ध्यान कोरोना वायरस के बढ़ रहे मामलों से पलट कर एक बार फिर

चार राज्यों तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों की गिनती जैसे ही 2 मई को आर भ हुई तो तमाम मीडिया का ध्यान कोरोना वायरस के बढ़ रहे मामलों से पलट कर एक बार फिर से चुनावों की ओर हो गया। हालांकि इससे पहले गत दो-अढ़ाई महीनों के बीच अक्सर देश के लोगों की चर्चा का केन्द्र पश्चिम बंगाल के चुनाव थे जिनको जीतने के लिए भाजपा पिछले दो-अढ़ाई सालों से लगी हुई थी। उधर राज्य की मु यमंत्री ममता बनर्जी भी हैट्रिक करने की कोशिश में थीं। 

चुनाव तो चाहे दूसरे राज्यों में भी हो रहे थे मगर 8 चरणों में होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव भाजपा नेतृत्व के लिए इज्जत का सवाल बने हुए थे। यही वजह है कि एक अनुमान के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21 जनसभाओं को स बोधित करते हुए भाजपा के लिए वोट मांगे। 

वहीं अप्रैल महीने में जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने भारत के विभिन्न राज्यों में अपना जोर पकड़ा तो देश के ज्यादातर लोगों का ध्यान चुनावों की बजाय बीमारी की ओर हो गया। इस सबके बावजूद चुनावी सभाओं का सिलसिला चलता रहा।

यहां तक कि पहले कलकत्ता हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई और फिर मद्रास हाईकोर्ट ने अपनी स त टिप्पणियां करते हुए यहां तक कह डाला कि देश के अंदर कोरोना की दूसरी लहर के प्रसार के लिए चुनाव आयोग जि मेदार है इसलिए क्यों न इनके अधिकारियों पर केस दर्ज किए जाए। इसके बाद ऐसा प्रतीत होने लगा कि शायद चुनावों की इस प्रक्रिया को यहीं रोक दिया जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ। वैसे जहां पर चुनाव हुए हैं उन सब में से लोगों की अधिक दिलचस्पी पश्चिम बंगाल के नतीजों को जानने के लिए थी। 

चुनावी मुहिम के दौरान जो नेता ममता बनर्जी को ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर व्यंग्य करते थे उन सबके खिलाफ बंगाल की जनता ने अपना फतवा देते हुए एक तरह से साफ टके का जवाब दे दिया। वहीं तमिलनाडु जहां पर इस बार दो राजनीतिक दिग्गजों जयललिता और करुणानिधि की अनुपस्थिति में चुनाव हो रहे थे और जिसमें अभिनेता से नेता बने कमल हासन की पार्टी भी किस्मत आजमा रही थी वहां पर 10 सालों से सत्ता पर विराजमान अन्नाद्रमुक को द्रमुक ने बेदखल कर दिया। 

केरल में एक बार फिर लोगों ने एल.डी.एफ. में अपना विश्वास जताया जबकि असम के मतदाताओं ने 2016 से सत्ता पर काबिज भाजपा के कमल को एक बार फिर से खिला दिया। अब यदि उपरोक्त नतीजों पर एक बार नजर डालें तो हम कह सकते हैं कि इन चुनावों के दौरान भाजपा के हिस्से में एक बड़ी नाकामी आई है। इसके अलावा भाजपा की हार का एक बड़ा फैक्टर किसान नेताओं द्वारा भाजपा को वोट नहीं डालने की अपील भी थी। इस अपील ने पार्टी के विरुद्ध एक सांकेतिक विरोधी हवा को और हल्लाशेरी दी। यद्यपि भाजपा असम में जीत हासिल कर पाई है मगर बंगाल, केरल और तमिलनाडु में उसकी स्थिति ठीक नहीं रही। 

यकीनी तौर पर भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल के लिए ङ्क्षचतन, मंथन करने की जरूरत है। जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है वह भी किसी एक राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने में असफल रही है। जहां तक कमल हासन, असदुद्दीन ओवैसी जैसे क्षेत्रीय दलों वाले नेताओं का सवाल है तो ये नतीजे उनको यह संदेश देते हैं कि ऐसे क्षेत्रीय दलों को जमीनी स्तर पर और बेहद अच्छी कारगुजारी करने की जरूरत है।-मोहम्मद अब्बास धालीवाल
 

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