तीनों पार्टियां गद्गद् : तीनों को सबक

Edited By ,Updated: 09 Dec, 2022 06:21 AM

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गुजरात, दिल्ली और हिमाचल के चुनाव परिणामों का सबक क्या है? दिल्ली और हिमाचल में भाजपा हार गई है जबकि गुजरात में उसकी ऐतिहासिक विजय हुई है। हमारी इस चुनाव-चर्चा के केंद्र में तीन पाॢटयां हैं-भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’! इन तीनों पार्टियों के हाथ एक-एक...

गुजरात, दिल्ली और हिमाचल के चुनाव परिणामों का सबक क्या है? दिल्ली और हिमाचल में भाजपा हार गई है जबकि गुजरात में उसकी ऐतिहासिक विजय हुई है। हमारी इस चुनाव-चर्चा के केंद्र में तीन पार्टियां हैं-भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’! इन तीनों पार्टियों के हाथ एक-एक प्रांत लग गया है। दिल्ली का चुनाव तो स्थानीय था लेकिन इसका महत्व प्रांतीय ही है। दिल्ली का यह स्थानीय चुनाव प्रांतीय आईने से कम नहीं है।

दिल्ली में ‘आप’ पार्टी को भाजपा के मुकाबले ज्यादा सीटें जरूर मिली हैं लेकिन उसकी विजय को चमत्कारी नहीं कहा जा सकता है। भाजपा के वोट पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़े हैं लेकिन ‘आप’ के घटे हैं। ‘आप’ के मंत्रियों पर लगे आरोपों ने उसके आकाशीय इरादों पर पानी फेर दिया है। भाजपा ने यदि सकारात्मक प्रचार किया होता और वैकल्पिक सपने पेश किए होते तो उसे शायद ज्यादा सीटें मिल जातीं। 

भाजपा ने तीनों स्थानीय निगमों को मिलाकर सारी दिल्ली का एक स्थानीय प्रशासन लाने की कोशिश इसीलिए की थी कि अरविंद केजरीवाल के टक्कर में वह अपने एक मजबूत महापौर को खड़ा कर दे। भाजपा की यह रणनीति असफल हो गई है। कांग्रेस का सूपड़ा दिल्ली और गुजरात, दोनों में ही साफ हो गया है। गुजरात में कांग्रेस दूसरी पार्टी बनकर उभरेगी, यह तो लग रहा था, लेकिन वह इतनी दुर्दशा को प्राप्त होगी, इसकी भाजपा को भी कल्पना नहीं थी। 

भाजपा के पास गुजरात में न तो कोई बड़ा चेहरा था और न ही राहुल गांधी वगैरह ने चुनाव-प्रचार में कोई सक्रियता दिखाईं। सबसे ज्यादा धक्का लगा आम आदमी पार्टी को! गुजरात में आम आदमी पार्टी ने बढ़-चढ़कर क्या-क्या दावे नहीं किए थे लेकिन मोदी और शाह ने गुजरात को अपनी इज्जत का सवाल बना लिया था। मुझे याद नहीं पड़ता कि भारत के किसी प्रधानमंत्री ने अपने प्रांतीय चुनाव में इतना पसीना बहाया हो, जितना मोदी ने बहाया है। ‘आप’ पार्टी का प्रचारतंत्र इतना जबरदस्त रहा कि उसने भाजपा के पसीने छुड़ा दिए थे। 

अरविंद केजरीवाल का यह पैंतरा भी बड़ा मजेदार है कि दिल्ली का स्थानीय प्रशासन चलाने में उन्होंने मोदी का आशीर्वाद मांगा है। इस चुनाव में ‘आप’  को अपेक्षित सफलता नहीं मिली लेकिन उसकी अखिल भारतीय छवि को मजबूती जरूर मिली है। ऐसा लगता है कि 2024 के आम चुनाव में मोदी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल का नाम सशक्त विकल्प के तौर पर उभर सकता है। फिर भी इन तीनों चुनावों में ऐसा संकेत नहीं मिल रहा है कि 2024 में मोदी को अपदस्थ किया जा सकता है। दिल्ली और हिमाचल में भाजपा की हार के असली कारण स्थानीय ही हैं। 

मोदी को कांग्रेस जरूर चुनौती देना चाहती है लेकिन उसके पास न तो कोई नेता है और न ही नीति है। हिमाचल में उसकी सफलता का असली कारण तो भाजपा के आंतरिक विवाद और शिथिल शासन है। जब तक सारे प्रमुख विरोधी दल एक नहीं होते, 2024 में मोदी को कोई चुनौती दिखाई नहीं पड़ती। इन तीनों चुनावों ने तीनों पार्टियों को गद्गद् भी किया है और तीनों को सबक भी दिया है।-डा. वेदप्रताप वैदिक    

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