अंतर्विरोधों में घिरी हिमाचल प्रदेश की सरकार

Edited By Pardeep,Updated: 31 May, 2018 04:54 AM

government of himachal pradesh surrounded by contradictions

हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार को सत्तासीन हुए 5 माह हो गए हैं। हालांकि यह अवधि किसी भी सरकार के कामकाज को आंकने के लिए बहुत छोटी है लेकिन कहावत भी है कि ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।’ इन 5 महीनों में प्रदेश की भाजपा सरकार अपने ही...

हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार को सत्तासीन हुए 5 माह हो गए हैं। हालांकि यह अवधि किसी भी सरकार के कामकाज को आंकने के लिए बहुत छोटी है लेकिन कहावत भी है कि ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।’ इन 5 महीनों में प्रदेश की भाजपा सरकार अपने ही अंतर्विरोधों में तो घिरी नजर आ ही रही है, साथ ही कानून व्यवस्था व जनता को मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने जैसे मोर्चे पर भी पूरी तरह विफल होती दिखाई दे रही है। 

एक मजबूत जनादेश के साथ सत्ता में आई सरकार से प्रदेश की जनता ने जो उम्मीदें लगा रखी थीं, वे अभी तक कसौटी पर खरी नहीं उतर पाई हैं। हत्या व रेप की दर्जनों घटनाओं ने तो सरकार को हलकान किया ही है, राजधानी शिमला सहित पूरे प्रदेश में पानी के लिए जनता में मची हाहाकार ने सरकार की नींद उड़ा रखी है। लोग खाली बाल्टियां लेकर मुख्यमंत्री के आवास के बाहर सुरक्षाकर्मियों से उलझने को मजबूर दिख रहे हैं। इतना भयावह पेयजल संकट प्रदेश ने पहले कभी नहीं देखा और इसका असर पर्यटन सीजन में होटल इंडस्ट्री पर भी पड़ रहा है। 

मैदानी इलाकों में पड़ रही भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए राजधानी शिमला सहित हिमाचल के अन्य पर्यटन स्थलों पर आए सैलानी पानी की समस्या से दो-चार हो रहे हैं। कई सैलानियों द्वारा अपनी बुकिंग कैंसिल करवा लिए जाने से पर्यटन व्यवसाय पर भी बुरा असर होता दिख रहा है। ऐसे में प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के सरकारी दावे भी हवा-हवाई होते दिख रहे हैं। एक तरफ  पेयजल संकट गंभीर रूप धारण करता जा रहा है और ऊपर से प्रदेश की अकूत वन संपदा के धू- धू कर जलने से प्रदेश के पर्यावरण के लिए भी गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई हैं। आग के दावानल ने वन्य जीवों की अनेक प्रजातियों को या तो लील लिया है या फिर उनके अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। प्रदेश में पहली बार जंगलों में इतने बड़े पैमाने पर लगी आग के आगे पूरा तंत्र बेबस दिखाई दे रहा है। 

सरकार के बारे में यह संदेश जा रहा है कि सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की कवायद शुरू होती है। पहले स्थिति नियंत्रण में होने के बयान आते हैं। फिर सरकार के मंत्रियों की ओर से स्पष्टीकरण का दौर शुरू होता है। इसके बाद ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ दिया जाता है। सोशल मीडिया पर जब सरकार की आलोचना होती है तो चंद अफसरों पर तबादले की गाज गिरा दी जाती है। समस्याओं से निपटने या उनका निवारण करने की जो इच्छा शक्ति सरकार को दिखानी चाहिए थी वह अभी तक कहीं दिखाई नहीं दी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को एक साथ दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। एक तरफ मजबूत व चौकस विपक्ष सरकार की विफलताओं को लेकर लगातार अपने हमलों की धार तीखी कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा की भीतरी राजनीति के अंतर्विरोध भी मुख्यमंत्री को परेशानी में डाले हुए हैं। 

प्रदेश में भाजपा के भीतर एक ऐसा वर्ग भी है जो कतई यह नहीं चाहता कि जयराम ठाकुर प्रदेश की भाजपा राजनीति के साथ-साथ सरकार में भी मजबूत पकड़ बनाएं। प्रदेश की राजनीति में जयराम ठाकुर के उभार को भाजपा के ही कुछ अति महत्वाकांक्षी रहे नेता अपने राजनीतिक भविष्य के लिए खतरा मान रहे हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री की बढ़ती मुश्किलों के बीच ऐसे लोगों के चेहरे पर छलकती मुस्कान कुछ अलग ही कहानी बयां करती है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एक कुशल प्रशासक व कड़क नेता की अपनी छवि भले ही अभी तक प्रदेश के जनमानस के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाए हों लेकिन उनके बारे में एक धारणा तो मजबूत हुई ही है कि वह प्रतिशोध की राजनीति में विश्वास नहीं रखते। उनके 5 माह के मुख्यमंत्री काल में अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं गया है कि अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ झूठे मामले बनाने की राजनीति में जयराम ठाकुर ने दिलचस्पी दिखाई हो। 

सरकार की जांच एजैंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए किया जाता रहा है लेकिन पिछले 5 महीनों के दौरान मुख्यमंत्री ने अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ भी शालीनता का ही परिचय दिया है और इसे प्रदेश की राजनीति में एक नए दौर के रूप में भी देखा जा सकता है। हालांकि यह भविष्य ही बताएगा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ कितना संयम रख पाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि अंतॢवरोध सिर्फ प्रदेश की भाजपा राजनीति में ही है। प्रदेश की कांग्रेस राजनीति भी इससे अछूती नहीं रही है। 

कांग्रेस संगठन में बैठे कुछ लोगों की रुचि पार्टी को मजबूत करने की बजाय प्रदेश में पार्टी के सबसे कद्दावर नेता वीरभद्र सिंह की राहों में कांटे बिछाने में ही अधिक रही है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल दौरान जहां वीरभद्र सिंह को भाजपा नेताओं द्वारा प्रायोजित झूठे मुकद्दमों और केन्द्र की जांच एजैंसियों से जूझने में ही अपनी ऊर्जा लगानी पड़ी, वहीं उनके समर्थन में मजबूती से खड़े होने की बजाय अपने निजी स्वार्थ के लिए उनकी राजनीतिक मुश्किलों को बढ़ावा देने में कांग्रेस संगठन में बैठे प्रदेश के चन्द नेताओं ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी। 

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस आलाकमान को ऐसे लोगों की शिनाख्त करके धरातल से जुड़े नेताओं व कार्यकत्र्ताओं की पीठ थपथपानी होगी और वीरभद्र सिंह सरीखे प्रदेश के सबसे कद्दावर नेता के राजनीतिक अनुभव का पूरा लाभ उठाना होगा, तभी प्रदेश में कांग्रेस पार्टी व कार्यकत्र्ताओं में नए रक्त का संचार हो सकेगा। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव कांग्रेस व भाजपा दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होंगे। जयराम ठाकुर सरकार के लिए जहां यह एसिड टैस्ट होगा, वहीं कांग्रेस के लिए बदलाव की पटकथा लिखने का सुनहरी अवसर भी। कौन अंतर्विरोधों से कितना बाहर आ पाता है, यह आने वाला वक्त ही तय करेगा।-राजेंद्र राणा(विधायक हि.प्र.)

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