गलत फैसलों से सरकार दबाव में

Edited By Pardeep,Updated: 23 Oct, 2018 04:29 AM

government under pressure from wrong decisions

चूंकि मोदी सरकार 2019 में आम चुनावों से पहले अपने आखिरी चरण में प्रवेश कर चुकी है, इसलिए कुछ जगहों पर पुराने मुद्दों ने सिर उठाना शुरू कर दिया है। इसके कई विवादास्पद फैसले लोगों की लगातार आलोचना का शिकार हो रहे हैं और लोगों के गुस्से का सबसे पहला...

चूंकि मोदी सरकार 2019 में आम चुनावों से पहले अपने आखिरी चरण में प्रवेश कर चुकी है, इसलिए कुछ जगहों पर पुराने मुद्दों ने सिर उठाना शुरू कर दिया है। इसके कई विवादास्पद फैसले लोगों की लगातार आलोचना का शिकार हो रहे हैं और लोगों के गुस्से का सबसे पहला शिकार बाबू बन रहे हैं। वित्त सचिव हसमुख अधिया पर कथित तौर पर शक्तिशाली अडानी समूह की चर्चित कोयला घोटाले में भूमिका को लेकर राजस्व खुफिया निदेशालय (डी.आर. आई.) की जांच को बाधित करने का आरोप लग रहा है। उन्हें सैलीब्रिटी ज्वैलरी डिजाइनर नीरव मोदी और उनके रिश्तेदार मेहुल चोकसी को भारत से भागने में मदद का दोषी बताया जा रहा है। 

आरोप गंभीर हैं और विशेष रूप से मोदी सरकार और वित्त मंत्रालय के लिए पानी को गंदा करना ही इनका मुख्य लक्ष्य है और एक चुनाव की तरफ बढ़ रहे देश में इस तरह का हर मामला अगर जल्द काबू नहीं किया जाता है तो वह राजनीति की रोटियां सेंकने का अलाव बन सकता है। सेवा नियमों के मुताबिक, अधिया प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं हैं। चूंकि मोदी सरकार के कई कदमों से फैली कड़वाहट ने सार्वजनिक राय बांट दी है, इसलिए उन निर्णयों के पीछे नौकरशाहों की भूमिकाएं जांच के दायरे में आ सकती हैं लेकिन इन सबके चलते सरकार भारी दबाव में आ गई है! 

एक पुलिस कैडर और एम.एच.ए. का नियंत्रण : केन्द्र ने 6 केन्द्र शासित प्रदेशों अर्थात दिल्ली, अंडेमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन और दीव, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली में पुलिस बलों के विलय की घोषणा की है। नए ढांचे के तहत गैर-आई.पी.एस. अधिकारी 6 यू.टी. में तैनात किए जा सकते हैं और ये सभी गृह मंत्रालय (एम.एच.ए.) के नियंत्रण में होंगे। बाबुओं पर नजर रखने वालों का आकलन है कि यह शायद केन्द्रीय पुलिस कैडर के निर्माण की दिशा में पहला कदम है, जो पुलिस कर्मियों को देश भर में तैनात करने की इजाजत देता है, भले ही वे जिस कैडर में शामिल थे, या शामिल हों। 

सूत्रों के मुताबिक नए नियम सहायक आयुक्त और पुलिस उपायुक्त के लगभग 533 पदों को प्रभावित करेंगे। नियम ए.सी.पी. के पद पर पदोन्नति या निरीक्षकों की सीधी भर्ती पर लागू होंगे। ए.सी.पी. रैंक में आधा पद सीधे भर्ती के माध्यम से और बाकी आधे पदोन्नति के माध्यम से भरे जाएंगे। इससे पहले इन पोसिं्टग्स का निर्णय संबंधित यू.टी. प्रशासकों द्वारा किया गया था। केन्द्र के इस कदम के पीछे तर्क यह है कि केन्द्रीय पूल का निर्माण अंतर-हस्तांतरण की अनुमति देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि स्थानीय पुलिसकर्मी अपनी घरेलू सेवाओं में निहित हितों की सेवा करने के शिकार न हों। 

फाइलों की गति थाम कर बाबुओं का अनोखा विरोध : राज्य सरकार द्वारा हाल ही में हरिद्वार-ऊधमसिंह नगर-बरेली राजमार्ग (एन.एच.-74) के मुआवजे घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए 2 वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारियों को निलंबित करने के बाद से उत्तराखंड में बाबू नाखुश हैं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ‘जीरो टॉलरैंस (शून्य सहनशीलता)’ नीति ने नौकरशाहों को परेशान कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारियों पी.के. पांडे और चंद्रेश यादव के निलंबन से मुख्यमंत्री अपने प्रशासन को साफ करने के लिए एक बड़े अभियान की शुरूआत कर रहे हैं। 

लेकिन जाहिर है कि बाबू सरकार की नीति से सहमत नहीं हैं और उन्होंने अपने बाबूगिरी वाले अंदाज में फाइलों की मूवमैंट को रोक दिया है जिससे एक बार तो पूरा प्रशासन ही थम जाएगा! उन्होंने इस कदम को काफी सुरक्षात्मक अंदाज में उठाया है। उनका कहना है कि उनकी आपत्ति सरकार की नीति के लिए नहीं बल्कि तथ्य यह है कि उन्हें भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों में पुलिस अधिकारियों की दया पर रखा जा रहा है। रिपोटर््स के अनुसार, आई.ए.एस. अधिकारी अपने सीनियर्स से अनुमति मांग रहे हैं और उनके सामने रखे गए हर मामले पर कानूनी राय ले रहे हैं जिससे गैर-जरूरी देरी और विलंब हो रहा है। एक अलग तरह का ‘गांधीयन’ प्रतिरोध कुछ बाबुओं को काफी प्रभावी लग सकता है लेकिन लागों का कहना है कि उनके इस कदम से सरकार या जनता में बाबुओं के लिए अधिक सहानुभूति पैदा होने की संभावना बेहद कम है।-दिलीप चेरियन

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