राजनीति में अपराधी कैसे बन जाते हैं आम लोगों के ‘मसीहा’

Edited By ,Updated: 25 Feb, 2017 12:46 AM

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तो क्या हुआ यदि मंत्री जी जेल में हैं, हम उन्हीं की वजह से सुरक्षित हैं और इस

‘‘तो क्या हुआ यदि मंत्री जी जेल में हैं, हम उन्हीं की वजह से सुरक्षित हैं और इस क्षेत्र का विकास सिर्फ वो ही कर सकते हैं,’’ हत्या के अपराध में उम्रकैद काट रहे उत्तर प्रदेश के नौतनवा विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुके पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बारे में बातें करते हुए भड़वा कलां गांव के रहने वाले ठेकेदार सुनील यादव ने कहा। 

यादव और उन जैसे सैंकड़ों अन्य लोगों ने अमरमणि की बेटी तनुश्री मणि त्रिपाठी का स्वागत किया जो अपने भाई अमनमणि के पक्ष में चुनावी अभियान चला रही थीं। उल्लेखनीय है कि अमनमणि भी अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में है और वहीं से चुनाव लड़ रहा है। बदमाश गिरोहों के टकरावों को बेशक किस्से-कहानियों की बात समझा जा सकताहै और यू.पी.के उन इलाकों में बंदूकों की आवाज बंद हो गई है जहां कभी बदमाशगिरोहों का बोलबाला था लेकिन अभी भी मतदाता आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के पक्ष मेंमतदान करना पसंद करते हैं। पिछली बार यू.पी. विधानसभा के लिए चुने गए 403 विधायकों में से 189 आपराधिक पृष्ठभूमि वाले  थे। 

गत दो दशकों दौरान पूर्व यू.पी. के महाराजगंज जिले के नौतनवा क्षेत्र के मतदाताओं ने अमरमणि गुट और अखिलेश सिंह गुट में से ही किसी न किसी का चयन किया है। दोनों ही आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं। वर्तमान विधायक कुंवर कौशल सिंह उर्फ मुन्ना सिंह महाराजगंज से पूर्व सांसद रह चुके अखिलेश सिंह के भाई हैं। गोरखपुुर से 100 किलोमीटर दूर स्थित मऊ(सदर) के मतदाताओं ने भी भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की  हत्या की साजिश रचने के लिए जेल में बंद मुख्तार अंसारी को चार बार जिताकर एक तरह से कीर्तिमान स्थापित किया है। अब की बार अंसारी बसपा टिकटपर चुनाव लड़ रहा है और सदा की तरह इस बार भी उसके निर्वाचित होने की पूरी सम्भावना है। 

राजनीति में मौजूद अन्य किसी भी अपराधी की तरह स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मुख्तार अहमद अंसारी का पौत्र मुख्तार अंसारी इस इलाके का सबसे पसंदीदा ‘रॉबिन हुड’ है। मऊ के रहने वाले मोहम्मद अयूब का कहना है: ‘‘वह हमारी बेटियोंकीशादी की ङ्क्षचता करते हैं और हमारे बेटों को नौकरी दिलाने में सहायता करते हैं। वह हमारे लिए मसीहा हैं।’’ ऐसा क्यों होता है? कानपुर स्थित ‘सैंटर फार स्टडी आफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स’ के निदेशक डा.ए.के. वर्मा के अनुसार मतदाताओं द्वारा अपराधियों को मुख्य रूप में प्राथमिकता इसलिए दी जाती है कि वे व्यावहारिक रूप में न्याय की समानांतर व्यवस्था स्थापित करते हैं। वर्मा का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इन क्षेत्रों में धराशायी हो चुके प्रशासकीय/पुलिस तंत्र का आम आदमी के साथ कोई तारतम्य ही नहीं था। 

उन्होंने बताया, ‘‘कोई ग्रामीण जब भी मौजूदा व्यवस्था से तंग आ जाता है तो वह स्थानीय विधायक से राहत हासिल करता है बेशक वह कोई हत्यारा ही क्यों न हो। पहले से मौजूद कमजोर शासन तंत्र की बजाय मतदाता इन बाहुबलियों के अंतर्गत अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं।’’ राजनीति के अपराधीकरण का रुझान 1980 के दशक में तब शुरू हुआ था जब पंचायतों और विधानसभा के चुनाव बदमाशों की छत्रछाया में होतेे थे। 

1985 में जेल में रहते हुए सबसे पहले चुनाव हरि शंकर तिवारी ने गोरखपुर जिले की चिल्लुुपुर सीट से जीता था। वह कई बार पार्टी बदलता रहा लेकिन इसके बावजूद लगातार दो दशकों तक विधायक बना रहा। 2007 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 142 विधायकों ने यह खुलासा किया था कि उनके विरुद्ध आपराधिक मामले  चल रहे हैं। कई वर्ष बीत जाने के बाद भी स्थिति में बदलाव नहीं हुआ है।                                                                                                                                                                              

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