इस्लाम की ही ‘छवि’ बिगाड़ रहा इमरान खान

Edited By ,Updated: 02 Oct, 2019 01:06 AM

imran khan is spoiling the image of islam

इस्लामिक शासकों द्वारा इस्लाम का डर-भय दिखाना और उसको  हथकंडे के तौर पर प्रस्तुत करना कोई नई बात नहीं है। खासकर गैर-इस्लामिक देशों और गैर-इस्लामिक जनता को डराने-धमकाने के लिए इस्लाम के आधार पर मुस्लिम समुदाय की गोलबंदी की बात होती रहती है। कभी...

इस्लामिक शासकों द्वारा इस्लाम का डर-भय दिखाना और उसको  हथकंडे के तौर पर प्रस्तुत करना कोई नई बात नहीं है। खासकर गैर-इस्लामिक देशों और गैर-इस्लामिक जनता को डराने-धमकाने के लिए इस्लाम के आधार पर मुस्लिम समुदाय की गोलबंदी की बात होती रहती है। कभी इस्लामिक देशों के शासक तो कभी इस्लामिक आतंकवादी संगठन ऐसी बात करते रहते हैं। 

कभी मिस्र, सीरिया जैसे मुस्लिम देशों ने इसराईल के खिलाफ मुसलमानों की गोलबंदी की बात की थी पर ये देश खुद इसराईल से युद्ध में हार कर समझौते के लिए बाध्य हुए। कभी ईरान और मलेशिया जैसे मुस्लिम देश भी इसराईल सहित अन्य काफिर देशों के खिलाफ मुसलमानों की एकता और गोलबंदी की बात करते थे पर उनकी बात भी अनसुनी हो गई। इन सबकी अपील पर कोई खतरनाक प्रक्रिया सामने नहीं आई, बल्कि दुनिया में जगहंसाई ही हुई। गैर-मुस्लिम आबादी के बीच इनकी यह सोच एक कट्टरवाद और घृणा की कसौटी पर देखी गई। निश्चित तौर पर ऐसी अपील और ऐसी मजहबी प्रक्रिया से इस्लाम के प्रति कोई सहानुभूति सामने नहीं आती है, बल्कि यह कहना जरूरी हो जाता है कि इससे इस्लाम की ही छवि खराब होती है। 

जेहाद व परमाणु युद्ध की धमकियां
अभी-अभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुस्लिम शासकों की उपर्युक्त हथकंडे और घृणात्मक मजहबी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। इसके संकेत और निष्कर्ष बहुत ही खतरनाक हैं। जाहिर तौर पर इमरान ने भारत को डराने-धमकाने के लिए हथकंडे के तौर पर इस्लाम को प्रस्तुत किया था, परमाणु युद्ध का खतरा दिखाया था, जेहाद को सही ठहराया था, पूरी दुनिया के मुस्लिम समुदाय को संगठित होकर खड़ा होने के लिए उकसाया था। 

अब यहां यह प्रश्र उठता है कि इमरान खान के ऐसे हथकंडों से डर कौन रहा है, क्या इनसे भारत डरने वाला है, क्या ऐसे हथकंडों से कश्मीर में जेहाद और आतंकवाद का नया दौर शुरू हो सकता है? क्या ऐसे हथकंडों का प्रभाव दुनिया के अन्य मुस्लिम देशों पर पड़ेगा, क्या दुनिया के अन्य मुस्लिम देश अपने हित छोड़ कर पाकिस्तान के हित रक्षक होने के लिए तैयार होंगे, क्या ऐसे हथकंडों से दुनिया के अन्य समुदायों के बीच कोई सकारात्मक सहानुभूति उत्पन्न होगी? 

इन सभी प्रश्रों पर इमरान खान या फिर उनके देश की कूटनीति ने पहले या बाद में आत्म विश्लेषण नहीं किए होंगे। यदि किए होते तो उन्होंने कभी भी इस्लाम का भय नहीं दिखाया होता, कश्मीर को इस्लाम से न जोड़कर मानवता और मानवाधिकार से जोड़ा होता। निश्चित तौर पर कश्मीर के वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम को मानवता और मानवाधिकार के साथ जोड़ा हुआ होता तो दुनिया के नियामकों और जनमत के बीच इस प्रश्न पर सहानुभूति प्रकट होती पर यह कहना सही होगा कि इमरान खान ने यह अवसर खो दिया। वह कोई दक्ष राजनीतिज्ञ नहीं हैं, दक्ष कूटनीतिकार नहीं हैं, वह मूलत: क्रिकेटर हैं। पाकिस्तान के लिए दुर्भाग्य यह है कि उसकी सत्ता पर विराजमान शख्स पक्के राजनीतिज्ञ और कूटनीतिकार नहीं हैं। 

इस्लामिक राष्ट्रीयता 
इमरान खान ने जिस पूरी मुस्लिम आबादी की जेहाद की बात की है वह भी एक प्रहसन है। पाकिस्तान के पक्ष में पूरी मुस्लिम आबादी उतर जाएगी, क्या यह संभव है? क्या पाकिस्तान को पूरी दुनिया का मुस्लिम समुदाय अपना खलीफा मानता है? मजहबी इस्लामिक देश में रहने वाली मुस्लिम आबादी एकजुट हो सकती है पर गैर-मुस्लिम देश में रहने वाली मुस्लिम आबादी भी साथ जुड़ कर जेहाद क्यों और कैसे कर सकती है? राष्ट्रीयता का प्रश्न उठेगा? खासकर अमरीका और यूरोप में मुसलमानों की राष्ट्रीयता पर प्रश्न खड़ा होता है, इस्लामिक राष्ट्रीयता पर राजनीति की लक्ष्मण रेखा भी खींची जाती है। 

कहा यह जाता है कि अमरीकी, यूरोपीय या फिर जापानी जैसी राष्ट्रीयता से इन्हें दिक्कत है या फिर अस्वीकार है तो इन्हें इस्लामिक राष्ट्रीयता वाले देश में ही चले जाना चाहिए। इसी प्रश्न पर अमरीका में मुस्लिम और ईसाइयों के बीच लक्ष्मण रेखा खींची गई है। खुद डोनाल्ड ट्रम्प कई बार कह चुके हैं कि इस्लामिक राष्ट्रीयता की बात करने वाले मुसलमानों को अमरीकी कानून का पाठ पढ़ाया और उन्हें उनके मूल देश में भेज दिया जाएगा। ट्रम्प के शासन के दौरान इस प्रश्न पर बड़ी-बड़ी राजनीति, प्रशासनिक और सुरक्षात्मक कार्रवाइयां भी हुई हैं। ट्रम्प इसी दृष्टिकोण से कई देशों की मुस्लिम आबादी के अमरीका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। ये सब इमरान खान जैसी सोच के दुष्परिणाम हैं। 

अमरीका की एक कूटनीतिज्ञ ने इमरान खान को आईना दिखाया है। उसने कहा है कि यह सब इमरान खान का एक स्वार्थ है। कश्मीर में मुसलमानों की ङ्क्षचता तो उसे है पर चीन में मुसलमानों के उत्पीडऩ और संहार के विरुद्ध इमरान खान की जुबान क्यों नहीं खुलती है। चीन में कई लाख मुसलमान जेलों या फिर यातना गृहों में कैद हैं। चीन का शिनजियांग प्रदेश मुस्लिम बहुल है। चीन के शिनजियांग प्रदेश में अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग को लेकर जेहाद और आतंकवाद जारी है। इसे कुचलने के लिए चीन ने हिंसक और खौफनाक सैनिक नीति अपना रखी है। मजहबी कार्यों की मनाही है। पर पाकिस्तान कभी भी चीनी शिनजियांग प्रदेश में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के मानवाधिकार की बात नहीं करता है। इमरान खान भी चीन के खिलाफ नहीं बोलता है। इमरान खान की मुस्लिम कसौटी पर दोहरी नीति है और उसकी इस दोहरी नीति से दुनिया कैसे अनभिज्ञ होगी? 

मुस्लिम जगत भी साथ नहीं
दुनिया का समर्थन पाकिस्तान को क्यों नहीं मिल रहा है? मुस्लिम जगत का भी पूर्ण समर्थन पाकिस्तान के साथ नहीं है। सिर्फ मलेशिया और तुर्की जैसे इक्के-दुक्के देश ही पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। शेष मुस्लिम देश अपने-अपने हितों के साथ खड़े हैं। दुनिया के सामने पाकिस्तान की कैसी छवि है, यह कौन नहीं जानता? दुनिया के सामने पाकिस्तान की छवि एक आतंकवादी देश, एक बर्बर इस्लामिक देश, शांति के दुश्मन के रूप में है। सच यही है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद और जेहाद की आऊटसोॄसग कर दुनिया की शांति को हिंसा में तबदील किया है, दुनिया की शांति में विष घोला है। पाकिस्तान के पोषित और प्रायोजित आतंकवाद और जेहाद से दुनिया में लाखों लोग मारे गए हैं।

नए दौर के नए भारत में पाकिस्तान का मुस्लिम हथकंडा कारगर नहीं होगा। कश्मीर भारत का आंतरिक प्रश्र है। इमरान खान की मुस्लिम हथकंडे की चुनौती का प्रबंधन करने की शक्ति भारत के पास है। भारत ने कश्मीर के प्रश्न का इस्लामीकरण नहीं होने दिया, यह भारत का पराक्रम है। अब इमरान खान ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी जमात को भारत के पराक्रम को स्वीकार कर लेना चाहिए। इमरान खान ने दुनिया के मुसलमानों को एकता और जेहाद के लिए उकसा कर इस्लाम की ही छवि खराब की है।-विष्णु गुप्त
 

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