भारत-टी.बी. से लड़ ही नहीं रहा, इसे हरा भी रहा है

Edited By Updated: 25 Mar, 2025 05:44 AM

india is not only fighting tb it is also defeating it

इस विश्व टी.बी. दिवस पर, मैं इस बात पर बहुत गर्व के साथ विचार करता हूं कि भारत टी.बी. के खिलाफ लड़ाई में किस तरह से अपनी रणनीति को फिर से लिख रहा है। हाल ही में सम्पन्न 100 दिवसीय सघन टी.बी.मुक्त भारत अभियान ने न केवल नवाचार की शक्ति का प्रदर्शन...

इस विश्व टी.बी. दिवस पर, मैं इस बात पर बहुत गर्व के साथ विचार करता हूं कि भारत टी.बी. के खिलाफ लड़ाई में किस तरह से अपनी रणनीति को फिर से लिख रहा है। हाल ही में सम्पन्न 100 दिवसीय सघन टी.बी.मुक्त भारत अभियान ने न केवल नवाचार की शक्ति का प्रदर्शन किया है बल्कि यह भी दिखाया है कि समुदायों को संगठित करना कार्यक्रम संबंधी दृष्टिकोण को बदलने जितना ही महत्वपूर्ण है। यह अभियान 7 दिसंबर, 2024 को टी.बी. के मामलों का पता लगाने में तेजी लाने, मृत्यु दर को कम करने और नए मामलों को रोकने के उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया था।

100 दिवसीय सघन टी.बी. मुक्त भारत अभियान ने टी.बी. का जल्द पता लगाने के लिए अत्याधुनिक रणनीतियां पेश कीं, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि बिना लक्षण वाले लोगों की भी पहचान हो, जिनका अन्यथा निदान नहीं हो पाता। पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों को सीधे उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के पास ले जाया गया, जिनमें मधुमेह, धूम्रपान करने वाले, शराब पीने वाले, एच.आई.वी. से पीड़ित लोग, बुजुर्ग और टी.बी. रोगियों के घरेलू संपर्क में रहने वाले शामिल थे। आर्टीफिशियल इंटैलिजैंस से संचालित एक्स-रे ने संदिग्ध टी.बी. मामलों को तुरंत चिह्नित किया और स्वर्ण-मानक न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टैस्ट का उपयोग करके पुष्टि की गई।

इन प्रयासों ने सुनिश्चित किया कि संक्रामक मामलों की पहचान की गई और उनका जल्दी से इलाज किया गया, जिससे संक्रमण पर लगाम लगी और लोगों की जान बचाई गई। यह अभियान देश के कोने-कोने तक पहुंचा, जिसमें वे लोग जिनमें टी.बी. का खतरा अधिक है, के 2.97 करोड़ लोगों की जांच की गई। इस गहन प्रयास के कारण 7.19 लाख टी.बी. रोगियों की पहचान की गई, जिनमें से 2.85 लाख मामले बिना लक्षण वाले थे और इस अभिनव दृष्टिकोण के बिना अन्यथा ये रोगी छूट जाते। इससे टी.बी. संक्रमण की शृंखला टूट गई। यह सिर्फ एक मील का पत्थर नहीं है, यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

टी.बी. मुक्त भारत अभियान : एक जन आंदोलन : लेकिन असली गेम-चेंजर सिर्फ तकनीक नहीं थी, यह समुदायों की अभूतपूर्व  लामबंदी थी। टी.बी. उन्मूलन अब जनभागीदारी द्वारा संचालित एक जन आंदोलन है। पूरे भारत में 13.46 लाख से ज्यादा निरूक्षय शिविर आयोजित किए गए, जहां माननीय सांसदों, विधायकों, पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों सहित 30,000 से ज्यादा निर्वाचित प्रतिनिधियों ने 100 दिवसीय टी.बी. मुक्त भारत अभियान का समर्थन किया। कार्पोरेट पार्टनर और आम नागरिक इस अभियान में शामिल हुए, जिससे यह विचार मजबूत हुआ कि टी.बी. उन्मूलन सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं बल्कि एक सामूहिक मिशन है  और इस मिशन में जनभागीदारी का उदाहरण राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में देखा गया  जहां 22 संबंधित मंत्रालयों में टी.बी. जागरूकता, पोषण किट वितरण, टी.बी. मुक्त भारत के लिए शपथ लेने जैसी 35,000 से ज्यादा गतिविधियां की गईं।

इसी तरह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, व्यापार संघों, व्यावसायिक संघों, स्वैच्छिक संगठनों के साथ 21,000 से अधिक गतिविधियां आयोजित की गईं और 78,000 शैक्षणिक संस्थानों में 7.7 लाख से अधिक छात्रों ने टी.बी. जागरूकता और संवेदीकरण गतिविधियों में भाग लिया। जेलों, खदानों, चाय बागानों, निर्माण स्थलों और कार्य स्थलों जैसे सामूहिक स्थानों पर 4.17 लाख से अधिक संवेदनशील आबादी की स्क्रीनिंग और परीक्षण किया गया।

अभियान अवधि के दौरान त्यौहारों पर 21,000 से अधिक टी.बी. जागरूकता गतिविधियां आयोजित की गईं, जिनमें धर्म आधारित नेताओं और सामुदायिक प्रभावशाली लोगों को शामिल किया गया। हमारे माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण, जिसने जन-भागीदारी की आधारशिला रखी, ने न केवल पोषण के लिए बल्कि मनोसामाजिक और व्यावसायिक समर्थन के लिए रोगियों को गोद लेने के लिए व्यापक सामाजिक समर्थन जुटाया। टी.बी. रोगियों के लिए सहायता अब अस्पतालों तक सीमित नहीं है। यह घरों, गांवों और कार्यस्थलों पर भी हो रही है। निरूक्षय मित्र पहल के माध्यम से व्यक्ति और संगठन टी.बी. से पीड़ित परिवारों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान कर रहे हैं, जिनमें हजारों पोषण किटें पहले ही वितरित की जा चुकी हैं। 

सिर्फ 100 दिनों में, 1,05,181 नए निरूक्षय मित्रों को नामांकित किया गया। पोषण और टी.बी. से उबरने के बीच महत्वपूर्ण संबंध को पहचानते हुए, सरकार ने निरूक्षय पोषण योजना के तहत वित्तीय सहायता को  500 रुपए से बढ़ाकर 1,000 रुपए प्रति माह कर दिया है  ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी टी.बी. रोगी इस लड़ाई को अकेले न लड़े। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भी टी.बी. रोगियों के लिए विभेदित टी.बी. देखभाल कार्यक्रम के तहत अनुकूलित और व्यक्तिगत उपचार प्रदान कर रहा है। इस अभियान की गति ने यह भी दर्शाया है कि कैसे समाज और सरकार का समग्र दृष्टिकोण परिवर्तनकारी बदलाव ला सकता है। टी.बी. जागरूकता और सेवाओं को रोजमर्रा की जिंदगी में एकीकृत करने के लिए 22 मंत्रालयों ने मिलकर काम किया। 

100 दिवसीय अभियान अभी शुरूआत है। भारत इन प्रयासों को पूरे देश में बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर नागरिक, चाहे वे कहीं भी रहते हों , को आधुनिक निदान, गुणवत्तापूर्ण उपचार और अटूट सामुदायिक समर्थन तक पहुंच प्राप्त हो। जिस तरह भारत ने कोविड-19 की जांच को तेजी से बढ़ाया उसी तरह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अगली पीढ़ी के टी.बी. निदान में निवेश कर रहा है ताकि अंतिम छोर तक तेज और अधिक सटीक जांच हो सके। भारत सिर्फ टी.बी. से नहीं लड़ रहा है, हम इसे हरा भी रहे हैं।-जगत प्रकाश नड्डा(केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री)

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