क्या यही है ‘अर्थव्यवस्था’ के मर्ज का इलाज

Edited By ,Updated: 22 Sep, 2019 03:36 AM

is this the treatment of  economy  merge

पिछले एक महीने में दी गई पांच बूस्टर डोजों से जाहिर है कि सरकार ने भी आर्थिक मंदी के संकट को मान लिया है। बड़ी कम्पनियों और विदेशी निवेशकों को दी गई भारी छूट को अप्रैल 2019 से लागू करने के लिए, वित्त विधेयक और आयकर कानून में अध्यादेश के माध्यम से...

 पिछले एक महीने में दी गई पांच बूस्टर डोजों से जाहिर है कि सरकार ने भी आर्थिक मंदी के संकट को मान लिया है। बड़ी कम्पनियों और विदेशी निवेशकों को दी गई भारी छूट को अप्रैल 2019 से लागू करने के लिए, वित्त विधेयक और आयकर कानून में अध्यादेश के माध्यम से बदलाव किए जाएंगे। अमरीका यात्रा से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए कैबिनेट की मंजूरी के बगैर इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। सार्वजनिक घोषणा और वाहवाही के बाद अब कैबिनेट से भी इसका औपचारिक अनुमोदन ले लिया जाएगा। 

कैबिनेट के अनुमोदन के बगैर आनन-फानन में इतनी बड़ी घोषणाओं को लागू करने की क्या जरूरत थी? इसे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प को प्रभावित करने के कदम से जोड़ा जा रहा है, जो हाउडी मोदी में शामिल हो रहे हैं। कुछ विश्लेषक इसे हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनावों से जोड़ रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना जारी होने के बाद आचार संहिता लागू हो गई है, जिसके बाद ऐसी नीतिगत घोषणाएं करना मुश्किल हो जाता। इन  रियासतों से शेयर मार्कीट, बड़ी कम्पनियों और विदेशी निवेशकों में हर्ष की लहर है, पर क्या इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की भी दीवाली मनेगी? 

संकट और गहरा सकता है 
आर्थिक संकट के कारणों का सही विश्लेषण करते हुए यदि दीर्घकालिक समाधान नहीं किए गए तो आनन-फानन में की जा रही इन ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से अर्थव्यवस्था का संकट और गहरा सकता है। हमारा संकट विश्वव्यापी मंदी का हिस्सा है या अमरीका-चीन व्यापार युद्ध की उपज या फिर नोटबंदी और जी.एस.टी. के दुष्परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं? 

रिजर्व बैंक के गवर्नर के अनुसार, इस संकट की आहट पिछले 18 महीनों से महसूस की जा रही है। यदि यह सच है तो फिर इन पैकेजों को  जुलाई में पेश किए गए आम बजट के साथ समग्रता में क्यों नहीं लागू किया गया? वित्त मंत्री के इस वित्तीय  पैकेज से अनेक गंभीर विरोधाभास भी उभर कर सामने आ रहे हैं। पूर्व वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेतली ने अपने एक बजट भाषण में कहा था कि भारत की 7 लाख कम्पनियों में से सिर्फ 7 हजार कम्पनियां ही 30 फीसदी से ज्यादा का टैक्स देती हैं और बकाया 99 फीसदी कम्पनियां 25 फीसदी टैक्स के दायरे में हैं। इन 99 फीसदी कम्पनियों में से कई एम.एस.एम.ई. सैक्टर की हैं, जिन्हें उस समय टैक्स में छूट देने से सरकार को लगभग 7 हजार करोड़ का घाटा हुआ था। 

वित्त मंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि नए पैकेज से सरकार को लगभग 1.45 लाख करोड़ का घाटा होगा। सरकार के बड़े नीति निर्धारकों ने अनेक बार यह कहा है कि बड़ी कम्पनियां सरकारी पैसे और छूट के दम पर व्यापार करती हैं। मुनाफे को प्रोमोटर अपनी जेब में रख लेते हैं और घाटा सरकार के हवाले हो जाता है। आम्रपाली जैसी बड़ी कम्पनियों की जांच से जाहिर है कि ऐसे प्रोमोटर ग्रुप कम्पनियों के मकडज़ाल से बैंकों के पैसे में हेराफेरी के साथ मनी लांड्रिंग करते हैं। बैंकों के एन.पी.ए.  संकट के लिए पिछली सरकार की खुली लोन नीति को दोष दिया जाता है। सवाल यह है कि एन.पी.ए. वसूली के लिए इन बड़ी कम्पनियों के फोरैंसिक ऑडिट की बजाय, खरबों रुपए की टैक्स छूट से अर्थव्यवस्था को कैसे लाभ मिलेगा? 2008 के दौर की मंदी से निपटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कम्पनी और उद्योग जगत को ऐसे अनेक पैकेजों से नवाजा था। अब ऐसे सभी पैकेजों के मूल्यांकन की जरूरत है, जिससे यह पता चल सके कि सरकारी छूट से रोजगार और विकास के धरातल पर कितना लाभ हुआ? 

नई व्यवस्था के अनुसार कम्पनियों के लिए टैक्स की अधिकतम प्रभावी दर 25.17 फीसदी है, जबकि आयकर की अधिकतम दर 43 फीसदी है।  मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की शुरूआत में लगभग 3.8 करोड़ लोग आयकर रिटर्न फाइल करते थे।  नोटबंदी की सख्ती के बाद रिटर्न दायर करने वालों की संख्या बढ़ते हुए लगभग 7 करोड़ हो गई है। बड़ी कम्पनियों के प्रोमोटर और डायरैक्टर नाममात्र की सैलरी लेकर बंगले, गाड़ी, स्टाफ, विदेश यात्रा आदि के सारे खर्चों को कम्पनियों के खर्च में शामिल कर लेते हैं। दूसरी ओर आम जनता को अपनी आमदनी पर ड्योढ़ा आयकर देना पड़ेगा। नोटबंदी के बाद सरकारी जांच में दो लाख से ज्यादा कम्पनियां बोगस पाई गईं। वित्त मंत्री ने आयकर की दरों को यदि जल्द कम नहीं किया तो देश में फर्जी कम्पनियों का मकडज़ाल फिर से बढ़ जाएगा। 

भारत में अमरीकी कम्पनियां 
व्यापार युद्ध के बाद अमरीकी कम्पनियों का चीन से बोरिया-बिस्तरा उठ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ह्यूस्टन में 16 कम्पनियों से और उसके बाद न्यूयॉर्क में माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, माॢटन जैसी 45 बड़ी कम्पनियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे।  भारत में आम जनता के लिए सख्त जुर्माने की व्यवस्था है जबकि एफ.डी.आई. और एफ.पी.आई. पर के.वाई.सी. की भी सख्ती नहीं होती। अधिकांश अमरीकी कम्पनियों का भारत में कोई स्थायी कार्यालय ही नहीं है तो फिर उन पर भारतीय कानून लागू करना दूर की कौड़ी है। 

अमरीका- चीन व्यापार युद्ध में लाभ लेने के लिए अमरीकी कम्पनियों को आकॢषत करने के साथ चीनी बाजार पर निर्भरता कम करने की बड़ी जरूरत है। इसके लिए भारत में उत्पादन लागत को सस्ता बनाना होगा। केन्द्रीय मंत्री गंगवार के बयान से साफ है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति से स्किल की बजाय आरामतलब क्लर्क संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है। विदेशी निवेशकों और एफ.डी.आई. जैसी खुली छूट और ईज ऑफ डूइंग बिजनैस यदि भारत के निचले स्तर के समाज को भी मिले तो रोजगार और मौद्रिक तरलता के मोर्चे पर वास्तविक सुधार आ सकता है। 

पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशों में बसने वाले सबसे अधिक भारतीय हैं। विजय माल्या, नीरव मोदी और चोकसी के मामलों से एक और नए ट्रैंड का खुलासा हो रहा है। भारत के अधिकांश बड़े कारोबारी विदेशों की दोहरी नागरिकता लिए हुए हैं।  ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 1 फीसदी लोगों के पास 73 फीसदी संपत्ति है, जिनके लिए बड़ी राहत दी जा रही है। दूसरी ओर सन् 2022 तक कृषि क्षेत्र की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोई ठोस एक्शन प्लान सामने नहीं आ रहा। 

आमदनी का लक्ष्य कैसे पूरा होगा 
1929 की विश्वव्यापी मंदी के दौर में सरकारों ने सार्वजनिक क्षेत्र और इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च बढ़ाने की रणनीति अपनाई थी, जिसे अब भारत में दोहराने की कोशिश हो रही है। ऐसे खर्चों के लिए सरकार के पास अब अतिरिक्त फंड्स कहां हैं? पिछले साल टैक्स से सरकार को 13.16 लाख करोड़ की आमदनी हुई थी, जिसे इस साल 16.49 लाख करोड़ करने का लक्ष्य है। कर संग्रह का लक्ष्य पूरा नहीं हो रहा और नई रियायतें दी जा रही हैं तो फिर आमदनी का लक्ष्य कैसे पूरा होगा? आम बजट में बजट घाटे को 3.3 फीसदी तक रखने की बात थी पर इन रियायतों की वजह से बजट घाटा 4 फीसदी से ऊपर जा सकता है। जी.एस.टी. की छूट से राज्यों का बजट बिगडऩा आने वाले समय में नए संकट को जन्म दे सकता है। 

सरकार ने रिजर्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ की जो रकम ली थी, वह इस पैकेज के सन् 1991 के उदारीकरण के बाद से भारत की आॢथक नीतियों के केन्द्र में विदेशी निवेश और विदेशी कम्पनियों की प्रमुखता, वर्तमान आर्थिक संकट का बड़ा कारण है। बापू की 150वीं जयंती के समारोह मनाने के साथ, उनकी आर्थिक नीतियों के मॉडल के क्रियान्वयन पर भी अगर गौर हो तो आर्थिक संकट से स्थायी निजात मिल सकती है।-विराग गुप्ता

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