राजनीति पर अनुचित कॉर्पोरेट प्रभाव को खत्म करना आवश्यक

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2024 05:35 AM

it is necessary to eliminate undue corporate influence on politics

भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखते हुए, महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा के बावजूद, भारत को अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली में कमजोरियों का सामना करना पड़ता है। इसके...

भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखते हुए, महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा के बावजूद, भारत को अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली में कमजोरियों का सामना करना पड़ता है। इसके संस्थान अनसुलझे मुद्दों से जूझ रहे हैं, और धार्मिक सहिष्णुता और अल्पसंख्यक अधिकारों से संबंधित घटनाओं की संख्या में वृद्धि जारी है। जहां तक अर्थव्यवस्था का सवाल है, नवीनतम जी.डी.पी. आंकड़े खुश होने के लिए बहुत कुछ सुझाते हैं। हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। बेरोजगारी का व्यापक मुद्दा है और लाखों नौकरी चाहने वाले मुट्ठी भर सरकारी पदों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। 

भारत इन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से कैसे निपटता है, यह उसका भविष्य निर्धारित करेगा। वास्तव में, यदि हम लोकतंत्र की गुणवत्ता के बारे में गंभीर हैं, तो व्यवसायों और राजनेताओं के बीच सांठ-गांठ का सामना करना और राजनीति पर अनुचित कॉर्पोरेट प्रभाव को खत्म करना आवश्यक है। निॢववाद रूप से दुर्जेय होते हुए भी, एक पारदर्शी और बेदाग राजनीतिक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए यह प्रयास शुरू होना चाहिए। जैसा कि नौकरशाह और दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पी.एन.हक्सर ने एक बार कहा था, ‘‘हमें एक ऐसे समाज का दृष्टिकोण रखना होगा जो भूखे आदमी के पेट में भोजन डालने के साथ-साथ उसे आशा भी दे ताकि वह सोच सके।’’ 

यह दृष्टिकोण बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान करने और आशा और अवसर को बढ़ावा देने, व्यक्तियों को एक उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करने में सक्षम बनाने के महत्व पर प्रकाश डालता है। इसे प्राप्त करने के लिए न केवल विधायी सुधारों की आवश्यकता है बल्कि अखंडता और जवाबदेही की ओर सांस्कृतिक बदलाव की भी जरूरत है। साहसी व्यक्तियों को भ्रष्टाचार और गलत कार्यों के खिलाफ बोलना चाहिए, क्योंकि केवल ऐसे कार्यों के माध्यम से ही हम खुद को और अपने लोकतंत्र को कॉर्पोरेट प्रभाव की पकड़ से मुक्त करा सकते हैं। 

आर्थिक परिदृश्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जमीनी हकीकत अक्तूबर-दिसंबर 2023 तिमाही के दौरान रिपोर्ट की गई 8.4 प्रतिशत जी.डी.पी. वृद्धि से अलग कहानी बताती है। आॢथक संकेतकों और रोजगार के अवसरों के बीच असमानता आर्थिक विकास को चलाने वाले कारकों और रोजगार सृजन पर उनके प्रभाव की बारीकी से जांच करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। अर्थशास्त्री और पूर्व आर.बी.आई. गवर्नर रघुराम राजन के अनुसार, पिछली तिमाही में दर्ज की गई शानदार जी.डी.पी. वृद्धि एक भ्रामक कहानी पेश करती है। उनका कहना है कि इस मजबूत वृद्धि के बावजूद, भारत की जी.डी.पी. अभी भी हमारी क्षमता की 6 प्रतिशत ट्रैंड लाइन से काफी नीचे है। उन्होंने कहा कि 8 प्रतिशत जी.डी.पी. वृद्धि के निरंतर युग को नए मानक के रूप में स्वीकार करने से पहले हालिया वृद्धि को गंभीरता से देखने की जरूरत है। 

इस मजबूत वृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बुनियादी ढांचे पर सरकारी व्यय को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, विशेष रूप से वित्तीय वर्ष 2023 की शुरूआती छमाही के दौरान यह बात सामने आई। हालांकि, यह खर्च पहले से ही कम होना शुरू हो गया है, और केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सी.एस.ओ.) को जी.डी.पी. वृद्धि में जनवरी-मार्च 2024 तिमाही में 6 प्रतिशत से नीचे गिरावट का अनुमान है। राजनीति और अर्थव्यवस्था से परे, भारत भलाई और खुशहाली को प्रभावित करने वाले गंभीर सामाजिक मुद्दों से जूझ रहा है। 20 मार्च को, संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय ‘खुशी दिवस’ को चिह्नित करने के लिए 2024 विश्व खुशी रिपोर्ट जारी की गई थी। जैसा कि नाम से पता चलता है, रिपोर्ट वैश्विक खुशी के स्तर पर अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करती है। फिनलैंड ने अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा, जबकि सॢबया और बुल्गारिया में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया। जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में युवा लोगों की चिंताओं के कारण संयुक्त राज्य अमरीका और जर्मनी रैंकिंग में फिसल गए। 

उत्तरी अफ्रीका की रिपोर्टिंग में गिरावट आई है। यह सच है कि अध्ययन की पद्धति संदिग्ध हो सकती है क्योंकि यह व्यक्तिगत मूल्यांकन, पश्चिमी पूर्वाग्रह और विकासशील देशों में आकांक्षाओं की व्याख्या से भरपूर है, लेकिन यह मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है। रिपोर्ट में भारत में चिंताजनक रुझानों का खुलासा किया गया है, जिसमें युवाओं में खुशी के स्तर में गिरावट और लगातार लैंगिक असमानताएं शामिल हैं। हाल की घटनाएं गंभीर सामाजिक मुद्दों के साथ हमारे चल रहे संघर्ष की कहानी बताती हैं। उदाहरण के लिए, 1 मार्च को झारखंड के दुमका में स्पैनिश महिला पर हमला, भारत में लिंग आधारित हिंसा के व्यापक सामाजिक मुद्दे को उजागर करता है, जहां महिलाओं को अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर अवांछित ध्यान और उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। 

कानूनी सुधारों और जागरूकता अभियानों सहित इन मुद्दों को संबोधित करने के प्रयासों के बावजूद, ऐसे हमलों की व्यापकता हमें हानिकारक लिंग मानदंडों को चुनौती देने और लिंग या जातीयता की परवाह किए बिना सभी व्यक्तियों की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए गहरे सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता बताती है। जैसा कि भारत एक नई सरकार के लिए खुद को तैयार कर रहा है, उसे कई राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसे आने वाले प्रशासन को देश को अधिक सामंजस्यपूर्ण भविष्य की ओर ले जाने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए। प्रभावी शासन, बेरोजगारी और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, सामाजिक समावेशन को प्राथमिकता देकर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाकर, भारत इन चुनौतियों पर काबू पा सकता है और मजबूत बनकर उभर सकता है।-हरि जयसिंह

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