आपातकाल के भूत को 50 वर्ष बाद जगाना उचित नहीं

Edited By Updated: 16 Jul, 2024 05:25 AM

it is not appropriate to awaken the ghost of emergency after 50 years

राज नारायण ने 1971 में रायबरेली से इंदिरा गांधी के हाथों चुनाव हारने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करके उन पर मतदाताओं को रिश्वत देने, सरकारी मशीनरी और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग जैसे आरोप लगाते हुए उनके चुनाव को चुनौती दी थी।

राज नारायण ने 1971 में रायबरेली से इंदिरा गांधी के हाथों चुनाव हारने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करके उन पर मतदाताओं को रिश्वत देने, सरकारी मशीनरी और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग जैसे आरोप लगाते हुए उनके चुनाव को चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई के दौरान 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को दोषी करार देते हुए 6 वर्ष के लिए पद से बेदखल किए जाने का आदेश जारी किया था। 

24 जून, 1975 को सुप्रीमकोर्ट ने इस आदेश को बरकरार रखा लेकिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दे दी। अगले दिन 25 जून, 1975 को जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने तक देश भर में रोष प्रदर्शन करने का आह्वान किया। इस पर 25 जून, 1975 को ही रातों-रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आर्डिनैंस पास करवाने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू करके विरोधी दलों के हजारों नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को जेल में ठूंस दिया। 26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 19 महीनों की अवधि में भारत में आपातकाल लागू रहा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक दौर था जब चुनाव स्थगित कर दिए गए और नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई थी। 

‘पंजाब केसरी पत्र समूह’ के संपादक अमर शहीद लाला जगत नारायण जी को भी इस अवधि में गिरफ्तार कर लिया गया और वह पंजाब की विभिन्न जेलों में बंद रहे।  इस घटना के 50 वर्ष बाद आज भी आपातकाल का भूत रह-रह कर जाग उठता है। 24 जून, 2024 को नई संसद के शुरू हुए पहले अधिवेशन में भी आपातकाल का मुद्दा छाया रहा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 27 जून को अपने भाषण में एमरजैंसी का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘‘25 जून, 1975 को आपातकाल लागू करना संविधान पर सीधे हमले का सबसे बड़ा और काला अध्याय था।’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आदि भी इस पर बोले। गृह मंत्री अमित शाह ने देश में प्रतिवर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने की घोषणा की है। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद पी. चिदम्बरम ने 14 जुलाई को कहा कि ‘‘आज की कुल भारतीय आबादी में से 75 प्रतिशत भारतीय 1975 के बाद पैदा हुए हैं। आपातकाल एक गलती थी और इसे इंदिरा गांधी ने स्वीकार किया था।’’ 

‘‘50 वर्ष बाद आपातकाल के सही और गलत होने पर बहस करने का क्या मतलब है? भाजपा को अतीत को भूल जाना चाहिए। हमने अतीत से सबक सीखा है और संविधान में संशोधन किया है ताकि आपातकाल इतनी आसानी से नहीं लगाया जा सके।’’ यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आपातकाल लगाने की दोषी इंदिरा गांधी को जनता ने 3 वर्ष बाद ही 1980 में भारी बहुमत से विजय दिलाई थी और उन्हें फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया था। पी. चिदम्बरम का कथन विचारणीय है। भारत एक युवा देश है और किसी घटना के 50 वर्ष बाद उसके अच्छे-बुरे होने पर चर्चा करना और गड़े मुर्दे उखाडऩा उचित प्रतीत नहीं होता। अत: सत्ता पक्ष को अब यह मुद्दा छोड़ कर देश को दरपेश अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे और समस्याएं निपटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।—विजय कुमार 

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