अकेले ट्रम्प के लिए नहीं है ग्रेटा का वातावरण बचाने के लिए ‘घूरना’

Edited By ,Updated: 28 Sep, 2019 03:05 AM

it is not for trump alone to stare to save greta s environment

कुछ वर्ष पूर्व पंजाब की विश्व प्रसिद्ध चित्रकार सुरजीत कौर ने प्रकृति को लेकर पेंटिंग्स की एक शृंखला तैयार की। इस शृंखला में जितनी भी पेंटिंग्स थीं उनमें प्रकृति क्रोध में आई लगती थी, हवा का बहाव पहले की तरह सहज नहीं था, शाम को सड़क पर जलती ट्यूब...

कुछ वर्ष पूर्व पंजाब की विश्व प्रसिद्ध चित्रकार सुरजीत कौर ने प्रकृति को लेकर पेंटिंग्स की एक शृंखला तैयार की। इस शृंखला में जितनी भी पेंटिंग्स थीं उनमें प्रकृति क्रोध में आई लगती थी, हवा का बहाव पहले की तरह सहज नहीं था, शाम को सड़क पर जलती ट्यूब लाइटों का रंग भी तीखा/चुभने वाला था, बादलों की गर्जना डराने वाली थी, सूरज की तपिश तथा चांद की चांदनी का स्वाद/स्वभाव भी गुस्सैल था।

इन सभी भावनाओं के माध्यम से मनुष्य द्वारा प्रकृति से की गई छेड़छाड़ के उत्तर के तौर पर प्रकृति की क्रोधी आंख का प्रदर्शन सुरजीत कौर ने रंगों की शक्ति से किया था। आज यू.एन. में ग्लोबल वाॄमग का मुद्दा शीर्ष पर है। वहां भी तथा वैज्ञानिकों द्वारा भारत में भी आने वाली आपदाओं का जिक्र किया जा रहा है, मगर देश इस मामले में अभी भी सोया पड़ा है। 

ग्लेशियर पिघल रहे, समुद्र उफान पर 
भारत सहित विश्व भाईचारे के सामने वातावरण की जो चुनौतियां हैं, उस हवा का रुख भयानक है। जागने के लिए संदेश दिया है इंटर-गवर्नमैंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आई.पी.सी.सी.) ने और चेतावनी देते हुए कहा है कि स्थितियां गम्भीर हैं। जिस तरह 21वीं शताब्दी की शुरूआत में ही ऑक्सीजन का स्तर गिरा है तथा तापमान का स्तर बुरी तरह से ऊपर गया है, वह मनुष्य के लिए घातक है। समुद्रों में जो हलचल हो रही है, दिल कंपा देने वाली है। 

समुद्र की जो चढ़ाई एक शताब्दी में नहीं होती, भारत के पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में वह हर वर्ष हो सकती है तथा उन्होंने इसका समय 2075 तक बताया है। मगर अब भी गत कई वर्षों से समुद्र का किनारों से बाहर हो जाना हम सहन करते आ रहे हैं। सभी देशों में ग्लेशियरों के पिघलने से वातावरण को जो चोट लगनी है, नदी-नालों ने उफान पर आना है, बाढ़ें आनी हैं, विशेषकर हिमालय में जो कुछ होने जा रहा है, उसने जान सुखा दी है। 2030-50 के समयकाल में हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से तबाही का जो मंजर नजर आ रहा है, बाद का समय इससे भी भयानक तबाही वाला दिख रहा है। भारत के जिन क्षेत्रों में समुद्र ने उबाल स्तर दिखाया है, उनमें पुड्डुचेरी, तमिलनाडु, विशाखापट्टïनम के इलाके सहम गए लगते हैं। 

ग्रेटा थनबर्ग की चिंता 
वातावरण सम्भाल के मामले में स्वीडिश पर्यावरण प्रेमी 16 वर्षीय छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा है। जिस वक्त ग्रेटा ने प्रश्र उठाए, न्यूयार्क में लगभग 11 लाख विद्यार्थी वातावरण बचाओ हड़ताल पर चले गए। आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में एक लाख से अधिक विद्यार्थी/बच्चे सड़कों पर उतर आए। लंदन, पैरिस तथा पता नहीं कहां-कहां लोग सड़कों पर इकट्ठे हो गए। फिर ग्रेटा को यू.एन. महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने संयुक्त राष्ट्र वातावरण शिखर सम्मेलन में विशेष वक्ता के तौर पर निमंत्रण भेजा। इस निमंत्रण पर वह चाहती तो विमान पकड़ कर कुछ ही घंटों में न्यूयार्क पहुंच सकती थी लेकिन उसका सोचना था कि हवाई जहाज प्रदूषण फैलाता है और वह उसकी सवारी करके वातावरण बचाओ अभियान के लिए कैसे जा सकती है। उसने नाव के माध्यम से यह सफर 15 दिनों में तय किया जो सौर ऊर्जा से चलती थी और प्रदूषण नहीं फैलाती थी। 

फिर संयुक्त राष्ट्र में ग्रेटा ने जो भाषण दिया, हिलाकर रख दिया। वह जैसे खून के आंसू रोती पूछ रही थी कि आप हमारी पीढ़ी को यह क्या दे रहे हो? आप ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूक क्यों नहीं हो रहे? क्यों पैसे की भूख ने आपको अमानवीय बना दिया है? वह बार-बार कह रही थी कि आपकी हिम्मत कैसे पड़ी ऐसा भविष्य हमारे लिए पैदा करने की? जब उसे समुद्र के उस पार अपने स्कूल में होना चाहिए था, वह आपके बीच क्यों है? भाषण के बाद अपनी सीट की ओर जाते हुए उसने अमरीकी राष्ट्रपति की ओर जो घूरा, वह क्लिप ऐतिहासिक बन गया है। यह घूरना केवल ट्रम्प को नहीं बल्कि उन सभी कार्पोरेट घरानों की ओर है, जिनके कारण आज हम अमेजन, ग्लेशियरों की तबाही देख रहे हैं, समुद्र के गुस्से का सामना कर रहे हैं और भयानक तबाही की ओर बढ़ रहे हैं, तेजी से। 

बूढ़े दरिया पर विलाप  
दूर क्या जाना, वातावरण को लेकर की गई बैठक के बाद आने वाले दिनों को देखते हुए दहली दिल्ली बारे जो ट्वीट दिल्ली के उपराज्यपाल तथा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आया है, उसमें उन्होंने पंजाब तथा हरियाणा को फिर लपेट लिया है। धान की कटाई का सीजन अभी शुरू ही हुआ है कि पराली जलाने के समाचारों ने फिर सिर उठा लिया है। दिल्ली वालों की सांस घुटती दिखाई देने लगी है। हमारी यूनिवर्सिटियां क्या करती हैं? क्यों नहीं नई खोज के साथ ही नए पैदा होने वाले प्रश्रों से पहले ही निपट लिया जाता है? हमने जहर डाल-डाल कर अपने खेत बंजर कर लिए, भूमिगत पानी की सतह 80 प्रतिशत नीचे गिर गई है। बासमती फिर डिस्क्वालिफाई हो गई। फिर किसान को खुदकुशी से कैसे रोक सकते हो? 

बूढ़े दरिया को लेकर हम अब विलाप करने लगे हैं, एक दशक पूर्व जब इसके पानी से लोग मछलियां पकड़ते थे, कौन था जो इसे बचाने नहीं आया। संत सींचेवाल ने एक चिंता जाहिर करते हुए काली बेईं को साफ करने का बीड़ा उठाया। लोग भी जागे लेकिन क्यों नहीं हो रही बेईं साफ? कैसे ब्यास दरिया में एक फैक्टरी का गंदा/जहरीला पानी छोड़ दिया जाता है तो पलों में ही लाखों जल-जीव मर कर पानी पर तैरने लगते हैं। कौन जिम्मेदार है? कौन है जो रोक सकता है और रोक नहीं रहा? हम भविष्य के खतरों के प्रति बिल्कुल निष्क्रिय हैं। समय जागने का है, ग्रेटा का घूरना शायद हम सोए लोगों के लिए अधिक महत्व रखता है।-देसराज काली(हरफ-हकीकी)
 

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