करतारपुर साहिब गलियारे का प्रस्ताव पाकिस्तान की ‘चाल’ तो नहीं

Edited By Pardeep,Updated: 29 Nov, 2018 04:27 AM

kartarpur sahib corridor proposes pakistan s  move

1980 के दशक के मध्य से ही पाकिस्तान की खालिस्तानी आंदोलन के साथ मिलीभगत है। यदि इसने कुछ सीमाएं नहीं पार की हैं तो इसका कारण भारत द्वारा बलूचिस्तान में बदले की कार्रवाई की सम्भावना है। पाकिस्तान भारत को भीतर से कमजोर करने के लिए इसकी बहुत सी...

1980 के दशक के मध्य से ही पाकिस्तान की खालिस्तानी आंदोलन के साथ मिलीभगत है। यदि इसने कुछ सीमाएं नहीं पार की हैं तो इसका कारण भारत द्वारा बलूचिस्तान में बदले की कार्रवाई की सम्भावना है। 

पाकिस्तान भारत को भीतर से कमजोर करने के लिए इसकी बहुत सी राजनीतिक तथा धार्मिक खामियों का दोहन करने में विश्वास रखता है। मगर पाकिस्तान में भी ऐसी ही खामियां हैं-प्रांतीय, जातीय तथा धार्मिक, जो बदले में भारत को लाभ पहुंचा सकती हैं। एक सीमांत राज्य होने के नाते पंजाब के साथ राजनीतिक तौर पर अत्यंत संवेदनशीलता से निपटना होगा। अकाली राजनीति, जो सिख धार्मिक समूहों से अत्यंत प्रभावित है, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से सिख राजनीति के प्रबंधन को विशेष तौर पर पेचीदा बना देती है।

पाकिस्तान की चाल
पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन की अपनी नीति, जो एक ऐसा विकल्प है जिसे वह बनाए रखना चाहता है, को एक सुनियोजित चाल के तहत अलग रख कर अन्य मोर्चों पर भारत के साथ सकारात्मक रूप से संलग्न होना चाहता है। करतारपुर गलियारे का प्रस्ताव एक चाल है ताकि वह वार्ता शुरू करने को लेकर भारत की कड़ी स्थिति को असंतुलित कर सके और इसके लिए वह सिखों की धार्मिक भावनाओं का दोहन करना चाहता है। 

यदि पाकिस्तान भारत के साथ बातचीत शुरू करना चाहता है तो उसे विश्वासपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। मुम्बई आतंकवादी हमलों की 10वीं बरसी पर वह हाफिज सईद तथा मसूद अजहर के खिलाफ विश्वसनीय कार्रवाई कर सकता था ताकि मुम्बई तथा पठानकोट आतंकवादी हमलों में कुछ प्रायश्चित हो सकता। इसकी बजाय उसने करतारपुर के लिए गलियारे का प्रस्ताव करके धर्म आधारित सिख राजनीति को लुभाने का खेल खेलना शुरू कर दिया, जिसे सिख समुदाय की ओर से व्यापक स्वागत मिलना सुनिश्चित है और इसके साथ ही यह केन्द्र सरकार के लिए एक राजनीतिक समस्या पैदा करने वाला है, जिसका सिखों की धार्मिक भावनाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य होना लाजिमी है। 

एक ऐसे समय में, जब विशेष तौर पर कनाडा तथा ब्रिटेन में बैठे खालिस्तानी आंदोलनकारी राज्य में अलगाववादी भावनाएं उकसाने के लिए सक्रिय हैं, पंजाब में साम्प्रदायिक स्थिरता बनाए रखना केन्द्र सरकार के लिए प्राथमिकता है। इसके अतिरिक्त पंजाब में कांग्रेस पार्टी तथा अकाली-भाजपा गठजोड़ के बीच एक प्रतिस्पर्धी चुनावी राजनीति है, जो स्पष्ट करती है कि क्यों मोदी सरकार ने करतारपुर गलियारा खोलने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी, जिसके लिए 26 नवम्बर को उपराष्ट्रपति तथा पंजाब के मुख्यमंत्री ने आधारशिला रखने की रस्म अदा की। पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव से और अधिक राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया जिसके तहत इसके विदेश मंत्री ने छलपूर्ण कदम उठाते हुए 28 नवम्बर को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को करतारपुर आमंत्रित किया ताकि अपनी शर्तों पर भारत को वार्ता प्रक्रिया में शामिल किया जा सके। 

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने समझदारीपूर्ण कदम उठाते हुए निमंत्रण स्वीकार नहीं करने का निर्णय किया और इसकी बजाय दो सिख राजनीतिक प्रतिनिधियों को भेज कर गलियारे को इसकी धार्मिक सीमाओं तथा सिख राजनीति के भीतर ही रखा न कि विदेश नीति में इसे दखल देने योग्य बनाया। हालांकि इस सारे मामले का एक दुर्भाग्यशाली पहलू इसकी आधारशिला रखने के लिए चुनी गई तिथि थी। यदि पाकिस्तान का प्रस्ताव भारत- पाक संबंधों में आए गतिरोध को तोडऩे के लिए उठाया गया एक वास्तविक कदम था तो इसे भारत के खिलाफ सक्रिय जेहादी आतंकवादियों के विरुद्ध अपने दृष्टिकोण में ठोस बदलाव का संकेत देते हुए स्पष्ट कदम उठाना चाहिए था। 

आधारशिला की तिथि
उस मामले में 26/11 को गलियारा की आधारशिला रखने के समारोह को कुछ न्यायोचित ठहराया जा सकता था। अन्यथा इसका अर्थ उस तिथि को हुए मुम्बई आतंकवादी हमलों से ध्यान हटाना तथा पाकिस्तान को सांकेतिक तौर पर यह संदेश देना है कि 26/11 अब केन्द्रीय मुद्दा नहीं है जिस पर पाकिस्तान को आवश्यक तौर पर कदम उठाना चाहिए, यदि वह सामान्य द्विपक्षीय संबंधों की बहाली की ओर गम्भीरतापूर्वक कदम उठाना चाहता है। इस तिथि का चयन इसलिए भी अनुपयुक्त है क्योंकि ननकाना साहिब तथा सच्चा सौदा साहिब गुरुद्वारों के दर्शनों को 22 नवम्बर को गए सिख जत्थों पर खालिस्तानी आतंकवाद का साया पड़ा, जब भारतीय कूटनीतिज्ञों, जो अपनी दूतावासीय जिम्मेदारियां निभाने गए थे, को एक जाने-माने खालिस्तानी आंदोलनकारी ने पाकिस्तानी अधिकारियों की शह पर गुरुद्वारों में प्रवेश नहीं करने दिया।

पाकिस्तान का दोगलापन
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने यह घोषणा करके कि सिख धार्मिक स्थलों का प्रशासनिक नियंत्रण सिख समुदाय के हाथ में है और पाकिस्तान उनके आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता, ननकाना साहिब गुरुद्वारा के भीतर प्रदर्शित खालिस्तान समर्थक पोस्टरों के मामले से अपने हाथ साफ कर लिए। स्वाभाविक तौर पर पाकिस्तान का यह भी मानना है कि मुरीदके स्थित हाफिज सईद के अड्डे से भारत के खिलाफ आतंकवादी षड्यंत्रों की उसकी जिम्मेदारी नहीं है क्योंकि वह संगठनों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता। अपने दोगलेपन का एक और सबूत देते हुए पाकिस्तान ने खालिस्तान समर्थक ‘खालिस्तान सिख्स फार जस्टिस’ के कार्यकत्र्ताओं को वीजा दिया, जिन्होंने घोषणा की थी कि उत्तरी अमरीका, यूरोप तथा ब्रिटेन से सैंकड़ों की संख्या में आतंकवादी पाकिस्तान पहुंच चुके हैं ताकि भारत से पाकिस्तान की स्वतंत्रता के लिए रैफरैंडम हेतु अभियान में समन्वय कर सकें। 

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा करतारपुर गलियारा के संदर्भ में बर्लिन की दीवार का उल्लेख किए जाने के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। उन्होंने केवल इतना कहा था कि किसी को अनुमान नहीं था कि बर्लिन की दीवार गिर सकती है और सम्भवत: गुरु नानक देव जी के आशीर्वाद से करतारपुर गलियारा के कारण ही लोग एक-दूसरे के करीब आ सकें। ये शब्द उस अवसर के संबंध में थे, उससे अधिक कुछ नहीं। गलियारे को समर्थन देने की पाकिस्तान की चतुराईपूर्ण गणनाओं के पीछे की राजनीतिक बाध्यताओं से संभवत: नीति निर्माता वाकिफ हैं। बर्लिन की दीवार का हवाला देना सम्भवत: इस कारण हो सकता है, जैसे कि कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर राजनीतिक सुधार तथा ग्लासनोस्त के तार्किक परिणामस्वरूप सोवियत संघ का विघटन हो गया और एक नए रूस का उदय हुआ, पाकिस्तान के भीतर भी कुछ ऐसे ही परिवर्तन की प्रक्रिया की आशा की जा रही हो।-कंवल सिब्बल

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