नेतागिरी पैसे कमाने का रोजगार बनी

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2024 06:21 AM

leadership became a job to earn money

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि चुनाव आयोग के पास खर्च का जो ब्यौरा दिया जाता है वह झूठ का पुर्लिंदा होता है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि चुनाव आयोग के पास खर्च का जो ब्यौरा दिया जाता है वह झूठ का पुर्लिंदा होता है। फरेब से करियर की शुरूआत करने वाले विधायकों और सांसदों से सुशासन की उम्मीद कैसे की जा सकती है? यू.पी.ए. 2 के दौर में कांग्रेस के एक बड़े सांसद ने कहा था कि राज्यसभा की सीट के लिए 100 करोड़ से ज्यादा की बोली लगती है। यह बात जगजाहिर है कि कई प्रत्याशी लोकसभा चुनावों में 50 करोड़ और विधानसभा में 10 करोड़ से ज्यादा खर्च करते हैं।

पार्षद और प्रधानी के चुनावों में भी प्रत्याशी करोड़ों का खर्च करने लगे हैं। सेवा की बजाय यह खर्च मेवा के लिए हो रहा है। इसीलिए चुनावों में पार्टियों का टिकट हासिल करने के लिए सबसे ज्यादा भीड़ और उपद्रव होते हैं। नेतागिरी पैसे कमाने का रोजगार और व्यापार बन गई है इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले और नए कानून पर किसी भी बात से पहले  काले धन के चार जरूरी पहलुओं पर समझ जरूरी है। पहला- किसी भी जायज आमदनी पर आयकर नहीं देने से काले धन की शुरूआत होती है।

दूसरा-अफसरों और नेताओं की भ्रष्ट आमदनी काले धन के साथ गैर-कानूनी भी है। तीसरा-उद्योगपतियों द्वारा गैर-कानूनी माइनिंग, सरकारी बैंकों के साथ धोखाधड़ी और सरकारी खजाने को चूना लगाकर मनी लांड्रिंग करने वाले सफेदपोश अपराधी देश के साथ गद्दारी करते हैं। चौथा-हथियार और ड्रग्स के माध्यम से अर्जित काला धन समाज और  देश के खिलाफ संगठित हमला है।

काले धन को रोकने के नाम पर बनाया गया चुनावी बांड का कानून, मनी लांङ्क्षड्रग के साथ  अपराध को बढ़ा रहा था। अपारदर्शी और भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाले चुनावी बांडों के कानून को रद्द करने का फैसला सराहनीय और गणतंत्र को मजबूत करने वाला है। आम चुनावों से पहले अध्यादेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का दुस्साहस शायद नहीं होगा, लेकिन बांड की लाभार्थी पाॢटयों का विवरण जारी होने से सियासी हड़कंप मच सकता है। इसलिए कानूनी सुरक्षा की आड़ में रिजर्व बैंक जरूरी विवरण जारी करने में नानूकुर कर सकता है। इसके लिए फैसले में आंशिक बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट में नई अर्जी दायर करने पर विचार हो सकता है। उसके बाद नई सरकार चुनावी फंडिग के बारे में नया कानून लाने पर विचार कर सकती है।

नए कानून से पहले चुनावी बांड से जुड़े दो अहम पहलुओं की समझ जरूरी है। पहला-उम्मीदवारों के चुनावी खर्चों की कानूनी लिमिट तय है। इसका पालन करवाने के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति होती है, लेकिन समर्थकों और पार्टियों के खर्च पर कोई कानूनी बंधन नहीं है। पिछले कई सालों में चुनाव आयोग और आयकर विभाग की कार्रवाई से साफ है कि अनेक छोटी रजिस्टर्ड पार्टियों का मनी लांड्रिंग के लिए इस्तेमाल हो रहा है।

चुनाव जीतने और सरकार बनाने के लिए इन सारे तरीकों से अर्जित काले धन का संगठित तौर पर सभी पार्टियां इस्तेमाल करती हैं। इसलिए जीतने के बाद विधायक और सांसदों की रुचि सुशासन से ज्यादा पैसे कमाने में होती है। आम जनता और व्यापारियों के ऊपर टैक्स का भारी बोझ है लेकिन पार्टियों को मिले चंदे पर कोई टैक्स नहीं लगता। इसके बावजूद पार्टियों की आमदनी और खर्चों में कोई पारर्दशिता नहीं है।

मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पाॢटयों के दावों को सच माना जाए तो उनके साथ 25 करोड़ से  ज्यादा रजिस्टर्ड सदस्य और कार्यकत्र्ता होंगे अगर हर सदस्य पार्टी को एक हजार रुपए का सहयोग दे तो  25 हजार करोड़ का चुनावी फंड आ जाएगा। इन पैसों से देश के कानून का पालन करते हुए सभी चुनाव लड़े जा सकते हैं। इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलने के साथ राजनीति में धनबल का वर्चस्व भी कम होगा।

बांड से जुड़ा दूसरा जरूरी पहलू है, चुनावों में धनबल को खत्म करके जनबल यानी आम जनता और कार्यकत्र्ताओं का सशक्तिकरण करना। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ रामराज्य और सुशासन की चर्चा जोरों पर है। चुनावों में काले धन के इस्तेमाल में कमी से ही रामराज्य की नींव बनेगी।  रामराज्य में धर्म, समानता, स्वतंत्रता और न्याय पर जोर था। उन आदर्शों से प्रेरित होकर भारत के संविधान की प्रस्तावना बनाई गई है। 

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए गरीबी, असमानता और बेरोजगारी जैसे दानवों को परास्त करना जरूरी है। रावण को परास्त करने के लिए श्रीराम ने बंदरों और भालुओं की सेना बनाई थी। रामराज्य में उन सभी को बहुत सम्मान मिला और उनमें से कई का आज भी स्मरण और पूजा होती है, लेकिन आधुनिक युग में सत्ता हासिल करने के बाद कार्यकत्र्ताओं और जनता की अवहेलना से सरकारी तंत्र और चुनावों में धनपतियों का बाहुल्य बढ़ रहा है। इस बारे में महान कवि अज्ञेय की कविता को फिर से दोहराने की जरूरत है- 

‘जो पुल बनाएंगे, वे अनिवार्यत: पीछे रहे जाएंगे।
सेनाएं हो जाएंगी पार, मारे जाएंगे रावण, विजयी होंगे राम, 
जो निर्माता रहे, इतिहास में बंदर कहलाएंगे।’
विधायक, सांसद, अफसर, जज और मंत्रियों सभी को धन-सम्पत्ति का विवरण देना होता है तो सभी पार्टियां पूरी पारदर्शिता से आमदनी और खर्चों का विवरण सार्वजनिक क्यों नहीं करतीं? पार्टियों और चुनावों की व्यवस्था को ठीक करने के लिए कानूनी सुधार करने के बारे में सत्ता पक्ष के साथ विपक्षी पार्टियों की चुप्पी हैरतअंगेज है। चुनावी बांड का फैसला आने में काफी समय लगा। पार्टियों को आर.टी.आई. के दायरे में लाने के लिए कई वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लंबित हैं, जिन पर अब जल्द फैसला होना चाहिए। सरकार को भी यह समझना चाहिए कि राजनीति को मेवा की बजाय सेवा का माध्यम बनाने के लिए चुनावी सुधारों पर सख्त कानून बनाने की जरूरत है। -विराग गुप्ता (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!