लो चली (2019 चुनाव) जीतने बिन दूल्हे की बारात

Edited By Pardeep,Updated: 02 Jul, 2018 04:30 AM

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चर्चा जोरों पर है कि 2019 के संसदीय चुनावों में विजय श्री की दुल्हन किस विजेता को वरमाला पहना अपना वर चुनेगी? क्या वह 60 वर्ष तक वोट बैंक को खोने के डर से परम्परागत ढर्रे पर, बिना मूलभूत (परिवर्तन) की इच्छा पाले केवल मात्र सत्ता हथियाने को आतुर...

चर्चा जोरों पर है कि 2019 के संसदीय चुनावों में विजय श्री की दुल्हन किस विजेता को वरमाला पहना अपना वर चुनेगी? क्या वह 60 वर्ष तक वोट बैंक को खोने के डर से परम्परागत ढर्रे पर, बिना मूलभूत (परिवर्तन) की इच्छा पाले केवल मात्र सत्ता हथियाने को आतुर विपक्षी दल होगा या पिछले 4 वर्ष के अपने शासनकाल में विरासत में मिली विषम परिस्थितियों को चुनौती देकर मूलभूत व्यवस्था परिवर्तन को आधारभूत ढांचे पर खड़ा करने की जिद पाले मजबूती की सीढिय़ों को अग्रसर देश का प्रधान सेवक नरेंद्र भाई मोदी होगा? 

2019 की विजयश्री को विपक्ष की आती बारात तो दिखती है लेकिन बारात के आगे घोड़ी भी है, पर उस पर कोई दूल्हा नहीं दिखता। बाराती यानी विपक्षी दल दावा करते हैं कि एकजुट होकर चुनाव में जाएंगे, उसके बाद व्यक्तिगत ताकत आकलन के बल पर दूल्हे को घोड़ी पर बिठाएंगे। जब न दुल्हन को (विजयश्री) न घरवालों को (देशवासियों) न बाहर वालों को (विश्व भाईचारे) पता है कि दूल्हा कौन होगा तो दुल्हन किसको दूल्हा मानकर वरमाला डालेगी, बहुत भ्रामक स्थिति पैदा हो जाएगी? दूसरी तरफ घोड़ी भी है, बाराती भी हैं तथा वह दूल्हे को घोड़ी पर बिठाने को तैयार खड़े हैं। 

मोदी जी को उनके घटक दल, सम्पूर्ण भाजपा व संघ कार्यकत्र्ता एक स्वर में दोबारा प्रधानमंत्री पद पर बैठा कर देश सेवा देने को आतुर हैं। अब दुल्हन एक दूल्हे में अपना भविष्य तलाशेगी या घोड़ी पर चढऩे को आतुर अनेक दूल्हों में? कांग्रेस गुजरात चुनाव से ले सांस उधार, अन्य विपक्षी दल उप-चुनावों से ले रक्त संचार, बिखरे वोटों को संचित कर 2019 में देखने लगे मोदी की हार। फूलपुर, गोरखपुर में जमानत गंवा कैराना से किनारा कर उत्तर प्रदेश में अपने अस्तित्व बचाने कांग्रेस रायबरेली व अमेठी तक सिमटने को है तैयार लेकिन महागठबंधन कर मोदी को हराकर क्षेत्रीय दल तक सिमटने को है तत्पर। 

आलम यह है कि वह अपने जनाजे के सामने ढोल-ताशे के साथ नाचने को आमादा है। सबूत कर्नाटक है, जहां 75 सीटें जीतकर भी भाजपा विरोध के कारण 44 सीटें जीतने वाले कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री सुशोभित कर कांग्रेस इतराती है। विपक्षी दल भी राष्ट्रीय दल कांग्रेस को उसकी इसी कमजोरी के कारण हाशिए पर लाने को लालायित हैं। सीताराम येचुरी, ममता, अखिलेश, राहुल, सोनिया, मायावती, एच.डी. देवेगौड़ा, शरद पवार, तेजस्वी यादव एक मंच पर हाथों में हाथ डाल एकजुटता को अहद तो करते हैं लेकिन विपक्ष का नेता कौन होगा, बताने से कतराते हैं। किसी को मुलायम सिंह में यादव तथा किसी को मायावती में दलित प्रधानमंत्री नजर आता है। 

सभी पार्टियां जो कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाना चाहती हैं न उनकी विचारधारा एक, न एक सोच, न एक सिद्धांत। विडम्बना देखिए सभी पार्टियां मोदी को तो हराने को तैयार लेकिन एक विपक्षी नेता चुनने को नहीं। दूसरे दिन कांग्रेस का कोई न कोई प्रवक्ता ताल ठोक कर कहता है कि क्योंकि कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल है इसलिए उसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा गठबंधन। लेकिन विपक्ष की है यह पुकार, बिन दूल्हे के लड़ो चुनाव, मोदी को हरा मिल-जुल के बनाएंगे सरकार। लेकिन दूल्हे को घोड़ी पर बिठाएंगे जीतने के बाद। यह तो वैसा ही होगा, बाराती तो होंगे लेकिन दूल्हा नहीं। 

कांग्रेस को राष्ट्रीय दल का वर्चस्व दिखाने हेतु गठबंधन एकता के लिए दो वर्षों बाद दिल्ली में इफ्तार पार्टी की याद आती है लेकिन साथ ही हिंदू वोट छिनने के डर से मुस्लिम भाई द्वारा पहनाई टोपी 4 सैकेंड में ही उतार दी जाती है। कुछ दल तो इफ्तार में साथ आते हैं लेकिन ममता, अखिलेश, मायावती, केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव व नवीन पटनायक इफ्तार पार्टी से दूरी बनाते हैं। विरोधाभास देखिए, कांग्रेस विरोध के नाम पर उभरी पार्टियां यह तो चाहती हैं कि गठबंधन बने लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में नहीं। 

सीटें अभी बंटी नहीं लेकिन अखिलेश व मायावती कांग्रेस को रायबरेली व अमेठी छोड़ अन्य सीटों में आपसी बंटवारे की याद दिलाते हैं। यह गठबंधन कम लेकिन गांठबंधन ज्यादा नजर आता है लेकिन कांग्रेस चाहती है कि दिल मिलें न मिलें लेकिन कुनबा जुडऩा चाहिए। यह आलम तो तब है जब अभी सीटें नहीं बंटीं लेकिन क्या होगा जब सीटें बांटने बैठेंगे। संयुक्त एन.डी.ए. घटकों का एक छत्र नेता प्रधानमंत्री के रूप में केवल नरेंद्र भाई मोदी है कोई और नहीं। 20 राज्यों में एन.डी.ए. का ध्वजारोहण कर संयुक्त व निरोल भाजपा सरकारें बनाने वाले मोदी में सभी घटक दलों को भारत का भविष्य नजर आता है। 

राजग को अब मोदी के साथ चट्टान की तरह ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, पुड्डुचेरि, केरल, दिल्ली, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल में खड़े होकर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा। अब की बार कम से कम 15 राज्यों पर ध्यान केंद्रित कर संयुक्त रूप से घटक दलों को पसीना बहाना पड़ेगा। 4 वर्ष के शासन के बाद भी मोदी की लोकप्रियता यथावत है। घटक दलों को भी अभास है कि मोदी की नेतृत्व क्षमता, कर्मठता, विवेक व साफ-सुथरी छवि 2019 जीतने का सबसे बड़ा हथियार है। मजबूत आधारभूत ढांचा खड़ा कर बिना तुष्टीकरण किए सबका साथ सबका विकास करने की जिद मोदी को 2019 का संघर्ष भी जीतने में बहुत बड़ा मुद्दा बनेगी। 

मोदी मजबूत नींव बना रहे हैं। चाहे अभी वह प्रत्यक्ष रूप से नजर नहीं आ रही लेकिन अगर देश की जनता उनको 2019 से दोबारा मौका देगी तो भविष्य में एक शानदार इमारत बनती जरूर नजर आएगी। लेकिन अगर कहीं गलती हो गई तो कांग्रेस व सहयोगी दल मोदी विरोधी होने के कारण शासन में आते ही इस मजबूत नींव को खोद डालेंगे। फिर देश पुराने ढर्रे पर चलने को मजबूर होगा। अत: यही प्रतीत होता है कि 2019 के संसदीय चुनावों में विजयश्री सजे-संवरे प्रत्यक्ष नजर आ रहे राजग के दूल्हे मोदी जी के गले में वरमाला डालेगी व बिन दूल्हे की बारात वाले विपक्षी दलों को दूल्हा चुनने की नसीहत देते हुए कहेगी-मिल-जुल कर दूल्हा बनाओ फिर दुल्हन का देखो ख्वाब, तब तक करते रहो इंतजार।-डी.पी. चंदन

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