‘नफरत’ और ‘बदले’ से अधिक बलशाली है दया

Edited By ,Updated: 20 Apr, 2021 04:45 AM

mercy is stronger than  hate  and revenge

‘‘मैं उससे नफरत करता हूं। क्योंकि वह पाकिस्तान है।’’ मैंने अपने कदमों को रोक लिया और अपनी जूम स्क्रीन पर चिंचित होकर देखने लगा कि ये शब्द किसने बोले हैं। मैंने उसका चेहरा देखा, क्रोध से विचलित हुआ और महसूस किया कि मुझे न केवल तनाव की स्थिति को कम ...

‘‘मैं उससे नफरत करता हूं। क्योंकि वह पाकिस्तान है।’’ मैंने अपने कदमों को रोक लिया और अपनी जूम स्क्रीन पर चिंचित होकर देखने लगा कि ये शब्द किसने बोले हैं। मैंने उसका चेहरा देखा, क्रोध से विचलित हुआ और महसूस किया कि मुझे न केवल तनाव की स्थिति को कम करना है बल्कि दिव्य मार्गदर्शन के लिए पूछना है। कल मैं लेखकों द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन क्लास में था। इस क्लास में मेरे पास दुबई, कनाडा, सीरिया, मारीशस और देश भर से आए लेखकों को मुझसे व्यावसायिक रूप से लिखना और सीखना था। 

दुबई की लेकिन मूल रूप से पाकिस्तान से संबंध रखने वाली एक महिला ने बढिय़ा लेखन लिखा मगर एक को छोड़ जिसकी सभी ने सराहना की। वह व्यक्ति मेरी तरफ देखकर उन शब्दों को चिल्लाते हुए कह रहा था। सौभाग्य से विशेषरूप से महिला ने क्लास को छोड़ दिया क्योंकि उसे रमजान की प्रार्थना में भाग लेना था जो शुरू हो चुकी थी। 

मैंने उसके नाराज चेहरे की ओर देखा और उसे बताया कि उसके शब्द सिर्फ उसके नहीं थे बल्कि हमारे लाखों लोगों द्वारा बोले जा रहे थे और ऐसे ही नफरत के शब्द सीमापार लाखों लोगों द्वारा बोले जाते हैं। मैंने दुखी होकर कहा, ‘‘हम एक-दूसरे से नफरत करते हैं लेकिन यह सब बंद होना चाहिए।’’ अन्य छात्रों में से एक को आश्चर्य हुआ और बोला, ‘‘दूसरे पक्ष द्वारा किए गए सभी अत्याचारों के बावजूद हम एक-दूसरे से नफरत करना कैसे रोक सकते हैं?’’  मेरा ध्यान फिलिप येनसी की किताब ‘वर्ड्स सो अमेजिंग अबाऊट ग्रेस’ पर गया। यह एक ऐसी किताब है जिसे मैंने अपनी बुद्धिमत्ता के लिए कीमती बनाया है।

मुझे उसमें से एक लाइन याद है, ‘‘प्रतिशोध भी पाने का जुनून है किसी व्यक्ति ने जितना दर्द दिया है उसे वापस देने के लिए यह एक उबलती हुई इच्छा है। बदला लेने के साथ समस्या यह है कि इसे कभी भी वह नहीं मिलता जो यह चाहता है। यह आंकड़ों को नहीं बढ़ाता। निष्पक्षता कभी नहीं आती। यह घायल और घायल करने वाले दोनों को दर्द की चलती हुई सीढ़ी पर चढ़ा देता है और यह सीढ़ी खत्म नहीं होती और न ही इसे खत्म कर सकता है।’’

मैंने अपनी क्लास के उस व्यक्ति से पूछा जो मुझे शांति से सुन रहा था। ‘‘शृंखला को तोडऩा है और किसी एक को क्षमा करना है।’’ कक्षा समाप्त हो गई लेकिन मैं जानता था कि यह संदेश केवल भारतीयों और पाकिस्तानियों के बीच हुई भूल के लिए नहीं था। बल्कि हम सबके बीच था जो एक असंतोष रखते हैं। 

हम सभी को खुद पर और रिश्तों में दया की आवश्यकता है। येनसी का कहना है कि दया प्रतिशोध से मजबूत और नस्लवाद से सशक्त व नफरत से अधिक बलशाली है और अंत में यदि मेरे जैसे व्यक्ति पर भगवान द्वारा दया बख्शी जा सकती है तो मुझे वैसी ही दया नहीं दिखानी होगी जो दूसरे के लिए क्षमा है। बदले की शृंखला को तोडऩे के लिए हमें दया जैसे उपहार का इस्तेमाल करना चाहिए।-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स

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