यौन शोषण के आरोपों से ‘घटी’ एम.जे. अकबर की विश्वसनीयता

Edited By Pardeep,Updated: 15 Oct, 2018 02:30 AM

mj defected by allegations of sexual abuse the reliability of akbar

लगभग 25 वर्ष पहले मैं काम की तलाश में सूरत से बॉम्बे (जो तब इसका नाम था) आया था। पॉलिस्टर निर्माण का हमारा पारिवारिक व्यवसाय ठप्प हो गया था। मेरी शैक्षणिक योग्यता यह थी कि मैंने टैक्सटाइल टैक्नोलॉजी में डिप्लोमा किया हुआ था। यह डिप्लोमा मैंने स्कूल...

लगभग 25 वर्ष पहले मैं काम की तलाश में सूरत से बॉम्बे (जो तब इसका नाम था) आया था। पॉलिस्टर निर्माण का हमारा पारिवारिक व्यवसाय ठप्प हो गया था। मेरी शैक्षणिक योग्यता यह थी कि मैंने टैक्सटाइल टैक्नोलॉजी में डिप्लोमा किया हुआ था। यह डिप्लोमा मैंने स्कूल छोडऩे के बाद आप्रेटिंग मशीनरी में 2 साल का कोर्स करने के बाद हासिल किया था। इसका मतलब यह कि दफ्तरी काम के लिए मैं योग्य नहीं था। मैंने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट कारोबार तथा स्टॉक मार्कीट में नौकरी ढूंढने की कोशिश की लेकिन इसमें कुछ नहीं हो सका क्योंकि उस समय हर्षद मेहता घोटाला हुआ था। 

मैं विले-पार्ले में अपने दोस्त की बहन और उसके परिवार के साथ रह रहा था और काम की तलाश में यहां-वहां जाया करता था। एक दिन, लोकल ट्रेन में मेरी नजर अखबार में नौकरी संबंधी विज्ञापन पर पड़ी। मैंने इस नौकरी के लिए आवेदन किया और मैं इस बात को लेकर हैरान था कि मुझे वह नौकरी मिल गई क्योंकि पत्रकारिता में किसी खास कौशल की आवश्यकता नहीं होती है। ठीक 30 दिन बाद वह अखबार बंद हो गया परन्तु मैं किसी अन्य अखबार में नौकरी पाने में कामयाब रहा, यह अखबार थी द एशियन ऐज। इसके सम्पादक थे एम.जे. अकबर जिन्हें मैं उनकी प्रसिद्धि के कारण नहीं जानता था क्योंकि सूरत में उस समय कोई अंग्रेजी समाचार पत्र नहीं था। 

मैंने समाचार पत्र के मुम्बई (उस अवधि के दौरान शहर का नाम बदल चुका था) आफिस में 1995 से 1998 तक काम किया जहां मैंने काफी अनुभव हासिल किया। मैं एक ऐसी पृष्ठभूमि से आया था जहां कार्यालय में महिलाएं नहीं देखी जाती थीं। मेरे परिवार द्वारा जो फैक्टरियां चलाई जाती थीं, जो कि निर्माण यूनिट्स थीं, में बहुत कम महिला कर्मचारी थीं जो सभी मजदूर थीं। उद्योग की भाषा में उन्हें हैल्पर कहा जाता था जिनका काम हल्के कार्टनों को यहां वहां ले जाना तथा सफाई आदि करना होता था। उनकी सहभागिता इतनी ही थी। समाचार पत्र के कार्यालय में जहां मेरी पहली नौकरी थी, महिलाएं बराबर की सहभागी थीं। वास्तव में, मेरी बॉस भी एक महिला थीं। यह एक सीखने वाला अनुभव था जिसे छोटे कस्बों के सभी पुरुषों को सिखाया जाना चाहिए। मैंने यहां महिलाओं के बारे में अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना सीखा जोकि बहुत अच्छी बात थी। 

दूसरी बात, जो बहुत बदलाव लाने वाली थी, वो थी उन लोगों से मिलना जो मुझसे अधिक होशियार तथा पढ़े-लिखे थे। दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद या कोलकाता जैसे शहरों में पले-बढ़े लोगों को यह बात समझानी काफी मुश्किल है कि सूरत जैसे शहरों के लोगों का खुलाव कितना सीमित होता है। उस जमाने में यह और भी विशेष था क्योंकि तब न तो इंटरनैट था और न ही निजी टैलीविजन। सूरत ऐसा शहर नहीं था, न ही अब है, जो पढऩे और ज्ञान हासिल करने में रुचि रखता हो जब तक कि यह पैसे कमाने से न जुड़ा हो। 30 साल पहले वहां केवल एक किताबों की दुकान थी जिसमें अंग्रेजी की किताबें बेची जाती थीं और इस शहर में लगभग 15 लाख लोग रहते थे। इसलिए मेरे लिए अपनी हमउम्र महिलाओं और पुरुषों से मिलना, जो दुनिया को अनुभव की बजाय सीख कर समझते थे, मेरे लिए एक  महत्वपूर्ण बात थी। 

इन लोगों में एम.जे. अकबर सबसे प्रभावशाली व्यक्ति थे। मेरी भूमिका मुम्बई में थी और वह दिल्ली में रहते थे इसलिए मुझे उनसे मिलने का अवसर बहुत कम मिलता था। मैंने उनके बारे में काफी कुछ उनके लेखों से जाना। मैं पारम्परिक, पूरी तरह राष्ट्रवादी, हिन्दू मानसिकता वाला व्यक्ति था। अकबर धर्म से पूरी तरह ऊपर थे। जैसा कि मैंने किसी अन्य भारतीय को नहीं देखा। वह अपने धर्म से नहीं बल्कि अपने दिमाग, दृष्टिकोण तथा लिखने व पढऩे से परिभाषित होते थे। उन्होंने हम में से बहुत से लोगों को बताया कि भारतीय पहचान का क्या महत्व है। उसने इस परिभाषा को बड़ा, अधिक उदारवादी और अधिक लचीला व आकर्षक बनाया। इस तरह से भारतीय होना अच्छा लगता था। अपनी पहचान के लिए किसी को पाकिस्तान या चीन से नफरत करने की जरूरत नहीं थी। 

जिन लोगों को उन्होंने इस तरीके से प्रभावित किया था, अकबर ने उन्हें ठेस पहुंचाई है। राजनीति में वह हमेशा अवसरवादी रहे हैं तथा पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने जिस तरह से यू टर्न लिए तथा चमचागिरी की, वह दिल तोडऩे वाली थी। परन्तु इस बात को कुछ लोग हंसी में उड़ा सकते हैं कि राजनीति में तो ऐसे लोग होते ही हैं। हम खुद से यह कह सकते हैं कि वास्तविक व्यक्ति कुर्सी के पीछे भागने वाले व्यक्ति से भिन्न था। हालांकि, कुछ महिलाओं द्वारा उन पर किए गए हमलों संबंधी खुलासों का अर्थ यह है कि उनकी प्रतिष्ठा हमेशा के लिए बिखर गई है। एक लेखक के रूप में भी उनकी विश्वसनीयता धूमिल हुई है। मैं उम्मीद करता हूं कि उन्हें त्याग पत्र की अनुमति देने की बजाय सरकार से बाहर कर देना चाहिए।-आकार पटेल

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