मानसून सत्र इस बार भी यूं ही धुलने की आशंका

Edited By Pardeep,Updated: 11 Jul, 2018 03:50 AM

monsoon session this time too likely to be washed away

वर्तमान संसद का अंतिम मानसून सत्र 18 जुलाई से 10 अगस्त तक होना निर्धारित है। पहले ही इस बात को लेकर आशंकाएं हैं कि यह भी पहले के सत्रों की तरह धुल जाएगा क्योंकि संसद कार्य नहीं कर रही, जैसा कि इसे गत 2 दशकों या अधिक समय से करना चाहिए था। उदाहरण के...

वर्तमान संसद का अंतिम मानसून सत्र 18 जुलाई से 10 अगस्त तक होना निर्धारित है। पहले ही इस बात को लेकर आशंकाएं हैं कि यह भी पहले के सत्रों की तरह धुल जाएगा क्योंकि संसद कार्य नहीं कर रही, जैसा कि इसे गत 2 दशकों या अधिक समय से करना चाहिए था। 

उदाहरण के लिए, दिल्ली आधारित थिंक टैंक पी.आर.एस. लैजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक वर्ष 2000 के बाद से इस वर्ष का बजट सत्र सर्वाधिक कम उत्पादक रहा। 24 लाख करोड़ से अधिक का पूरा वार्षिक बजट जल्दबाजी में पारित कर दिया गया और यहां तक कि वित्त विधेयक 2018 भी बिना चर्चा के पारित कर दिया गया। स्पीकर ने यह कहते हुए मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष प्रायोजित अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करने की आज्ञा नहीं दी कि इससे सदन में व्यवधान पड़ता है। उल्लेखनीय है कि संसद सत्र की कार्रवाई चलाने पर प्रति मिनट 2.5 लाख रुपए की लागत आती है जिससे बेकार किए गए प्रति घंटे पर 1.5 करोड़ रुपए का नुक्सान होता है। 

सांसदों की भूमिका क्या है? वे कानून बनाते हैं तथा भारत सरकार की कार्यप्रणाली पर नजर रखते हैं, समीक्षा करके बजट को पारित करते हैं तथा संसद में अपने निर्वाचन क्षेत्रों के मुद्दों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके साथ ही वे राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति का चुनाव भी करते हैं। एक विपक्ष का मतलब सरकार की किसी भी कार्रवाई का महज विरोध करना नहीं होता बल्कि मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना, उस समय की सरकार से प्रश्र पूछना तथा उसे जवाबदेह बनाना होता है। अपने तौर पर सरकार लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। दुर्भाग्य से जहां विपक्षी दल प्रदर्शनों, धरनों, नारेबाजी तथा धक्का-मुक्की में लगे हुए हैं, वहीं सत्ताधारी विपक्ष तक पहुंच नहीं बना पा रहे। तेलुगु देशम पार्टी पहले ही आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जे के मुद्दे पर व्यवधान डालने की योजना बना रही है। 

क्या सांसद अपना कत्र्तव्य निभा रहे हैं? आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार लोकसभा में 2018 में 77,000 करोड़ रुपए के बजट आबंटन की समीक्षा पर मात्र 8 घंटे लगाए गए, जबकि इसके मुकाबले 2017 में 8.3 घंटे तथा 2016 में 6.4 घंटे लगाए गए थे। यह अफसोस की बात है कि संसद की वार्षिक बैठकों की संख्या 50 तथा 60 के दशकों में 125-140 दिनों से कम होकर गत दो दशकों में लगभग आधी रह गई है। ऐसे परिदृश्य में कोई हैरानी नहीं कि आने वाला मानसून सत्र भी धुलने की आशंका है। सबसे पहले संसद की कार्रवाई धीरे-धीरे विधानसभा चुनावों पर निर्भर हो रही है जो सत्र के पहले या बाद में होने होते हैं। वर्ष के अंत में 3 भाजपा शासित राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ तथा कांग्रेस शासित मिजोरम में चुनाव होने हैं और भाजपा तथा कांग्रेस चुनावों के लिए तैयार हो रही हैं। भाजपा के लिए अपने राज्यों को बचाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है जबकि कांग्रेस के लिए इन्हें भाजपा से छीनना क्योंकि इससे उसे 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले नैतिक बल मिलेगा। इसलिए न तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और न ही सत्ताधारी भाजपा से संसद में किसी प्रकार के सहयोग की सम्भावना है। 

दूसरे, ऐसा दिखाई देता है कि राजनीतिक दल बेरोजगारी, कृषि संकट, भीड़ द्वारा मारे जाने की बढ़ती घटनाओं तथा जम्मू-कश्मीर की समस्या जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करने की बजाय अपने हितों के प्रति ज्यादा चिंतित नजर आते हैं। तीसरे, विपक्ष तथा सत्ताधारी संसद की कार्रवाई सुचारू बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे। आखिरकार यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सरकारी कामकाज को सुचारू तरीके से चलाए तथा विपक्ष उसे रचनात्मक सहयोग दे। फिलहाल किसी की भी इसमें रुचि नहीं है। चौथे, विपक्षी एकता का प्रयास केवल मोदी का सामना करने के लिए किया जा रहा है। हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में जोरदार शक्ति प्रदर्शन इसका एक संकेत है। तब से इसे आगे बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। मानसून सत्र में पता चलेगा कि क्या विपक्ष सदन में एकजुट है या नहीं। 

पांचवें, राज्यसभा के उपसभापति के लिए होने वाले चुनावों में कड़ा संघर्ष होगा। भाजपा सम्भवत: यह पद अपने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को सौंपना चाहेगी जबकि विपक्ष एक सर्वसम्मत विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में है। तृणमूल कांग्रेस इस पद के लिए अपना उम्मीदवार सुखेन्दु शेखर राय चाहती है। यदि वह चुने जाते हैं तो यह तृणमूल कांग्रेस के लिए संसद में पहला संवैधानिक पद होगा। कांग्रेस पार्टी एक वृहद विपक्षी उम्मीदवार को समर्थन देने की इच्छुक है। गत वर्ष राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति चुनावों के समय सोनिया गांधी ने एक बैठक बुलाई थी जिसमें 20 विपक्षी दलों ने हिस्सा लिया था। इस बार भी इस मुद्दे पर 16 तथा 17 जुलाई को होने वाली बैठक में निर्णय लिया जाएगा। यह स्पष्ट नहीं है कि बीजद (9), वाई.आर.एस. कांग्रेस पार्टी (2) तथा टी.आर.एस. (6) किसके पक्ष में हैं। 

इसी बीच संसद की कार्रवाई के साथ क्या हुआ? संसदीय मामलों के राज्य मंत्री विजय गोयल के अनुसार लोकसभा में 68 तथा राज्यसभा में 40 विधेयक लम्बित हैं जिनमें मुस्लिम विवाह (विवाह अधिकारों की सुरक्षा)विधेयक 2017, मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2017, संवैधानिक संशोधन (123वां) विधेयक 2017 तथा भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 शामिल हैं। इसके साथ ही 6 महत्वपूर्ण अध्यादेश भी संसदीय स्वीकृति की प्रतीक्षा में हैं जिनमें भगौड़े आॢथक अपराधी अध्यादेश 2018, आपराधिक अधिनियम (संशोधन) अध्यादेश 2018, दिवाला तथा दिवालियापन कोड (संशोधन) अध्यादेश 2018 तथा राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय अध्यादेश 2018 शामिल हैं। 

जहां गोयल विपक्षी नेताओं से मिलने का प्रस्ताव करते हैं और उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से इसकी शुरूआत की है, वहीं यह स्पष्ट नहीं है कि वह इसमें कितने सफल होंगे। ये सब राजनीतिक दलों के नेताओं पर निर्भर करता है। यदि वे यह निर्णय कर लेते हैं कि संसद की कार्रवाई उनके खुद के राजनीतिक हितों से अधिक महत्वपूर्ण है तो वे अभी भी कर सकते हैं मगर क्या वे करेंगे? संक्षेप में, संसद को अपनी आवाज की तलाश है।-कल्याणी शंकर

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