ननकाना साहिब : पाकिस्तान का ‘दोहरा चेहरा’ हुआ बेनकाब

Edited By ,Updated: 11 Jan, 2020 01:07 AM

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सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है। सिखों के साथ-साथ ङ्क्षहदुओं के लिए यह आस्था का प्रतीक है। श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर देश ही नहीं, विदेशों से भी इस ऐतिहासिक मौके पर श्रद्धालु...

सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है। सिखों के साथ-साथ हिंदुओं के लिए यह आस्था का प्रतीक है। श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर देश ही नहीं, विदेशों से भी इस ऐतिहासिक मौके पर श्रद्धालु नतमस्तक हुए। भारत तथा पाकिस्तान के दरमियान उलझे हुए रिश्ते देखने को तब मिले जब 3 जनवरी को उग्र इस्लामी तत्वों के एक समूह, जिसने एक सिख नाबालिगा के साथ जबरन निकाह करवाया था, ने गुरुद्वारा साहिब पर पत्थरबाजी की तथा यह धमकी भी दी कि इसे वे मस्जिद में बदल देंगे तथा इसका नाम गुलाम-ए-मुस्तफा रख दिया जाएगा। 

इस्लामाबाद का विवेकहीन बयान
हालांकि पाकिस्तानी सरकार ने इस घटना को दो गुटों के बीच मात्र तकरार करार दिया तथा कहा कि इस घटना को साम्प्रदायिक जामा पहनाना केवल राजनीति से प्रेरित कार्य है। इस्लामाबाद से यह स्पष्ट तौर पर एक विवेकहीन बयान आया था। मैं केंद्रीय मंत्री तथा शिअद नेता हरसिमरत कौर बादल के बयान से सहमत हूं जिन्होंने कहा था कि इस घटना ने पाकिस्तान, जहां पर अल्पसंख्यकों को प्रताडि़त किया जाता है, के असली चेहरे को बेनकाब किया है। वहीं मैं इसके विपरीत एक अन्य केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के बयान से नाखुश हूं जिन्होंने इस घटना को देश में चल रहे नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध प्रदर्शन से जोड़ा है। यह बड़ी मूर्खतापूर्ण बात है कि पुरी ने दोनों मुद्दों को आपस में जोड़ कर देखा है। ऐसा बयान देना उनकी व्याकुलता को दर्शाता है। 

इस्लामाबाद निर्विवाद रूप से धर्म को राजनीति का एक हथियार मानता है
धर्म पवित्र है। सिख समुदाय पूरी भावना से अपने धार्मिक सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। इस्लामाबाद निर्विवाद रूप से धर्म को राजनीति का एक हथियार मानता है। पाकिस्तान ने भारतीय राजनीति को बांटने के लिए इस्लाम का इस्तेमाल किया है तथा कश्मीर को छद्म युद्ध के जरिए हथियाना चाहा है। उसने पंजाब तथा देश के अन्य भागों में भी अलगाववादी तत्वों को उकसाया तथा उनकी सहायता भी की है। आई.एस.आई. ने वास्तव में देश भर में अपने विनाशक नैटवर्क को फैलाने की कोशिश की है। नई दिल्ली ने इस मुद्दे को पूर्णतया जांचने की कोशिश की तथा पाकिस्तान को उसके शातिर खेल की योजना का सही जवाब दिया है। 

पंजाब में अपनी पूर्व की नीतियों में असफल रहने के बाद पाकिस्तान ने कई बार बेकरार होकर जेहादी तत्वों के माध्यम से देश में अशांति फैलाने की कोशिश की है। ऐसे प्रयास बुरी तरह नाकाम कर दिए गए। पंजाब के लोग पूर्व में बहुत ज्यादा कष्ट झेल चुके हैं। कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्धू की तो बात ही अलग है। लोगों ने सबक सीख लिया है तथा सिद्धू अभी भी अपने दोस्त इमरान खान के साथ पाकिस्तानी बादलों के बीच चक्कर लगा रहे हैं। हिंदू, सिख, ईसाई और यहां तक कि मुसलमान भी पाकिस्तान में किस तरह नीचतापूर्वक देखे जाते हैं, यह जगजाहिर है। यह बेहद खेदजनक बात है कि इस्लामाबाद प्रशासन चुनिंदा तरीके से अल्पसंख्यकों के साथ राजनीति खेलता आया है। आज पाकिस्तान खुद बारूद के ढेर पर बैठा है। 

यह उचित होगा कि हम यह जानें कि जिन्ना ने 1947 में संवैधानिक असैंबली को संबोधित करने के दौरान क्या कहा था। उन्होंने सांसदों को कहा, ‘‘आप स्वतंत्र हैं, आप अपने मंदिर में जाने के लिए स्वतंत्र हैं। आप अपनी मस्जिद में जाने के लिए स्वतंत्र हैं या फिर पाकिस्तान में किसी भी स्थान पर आराधना के लिए जाने को आप स्वतंत्र हैं। आप किसी भी धर्म, जाति या समूह से संबंध रखते हों, इसका पाकिस्तान के साथ कोई मतलब नहीं। हम इस मूल सिद्धांत को जारी रख रहे हैं कि हम एक देश के नागरिक हैं।’’ जिन्ना ने यह माना था कि विभाजन एक सही कदम है। उन्हें इस बारे में शंका थी। उनका मानना था कि यूनाइटिड इंडिया का ऐसा कोई भी विचार कार्य नहीं कर सकता तथा यह एक भयानक ‘आपदा’ होगी। उसी समय उन्होंने अपना एक अन्य विचार भी व्यक्त किया,‘‘मेरा विचार शायद सही हो और न भी हो, यह देखने वाली बात होगी।’’ 

राजनीतिक एकता की कुंजी पंजाबी तथा पठानों के पास है
पाकिस्तान का उत्कृष्ट समाज यह मानता है कि राजनीतिक एकता की कुंजी पंजाबी तथा पठानों के पास है तथा ये लोग पाकिस्तान तथा इस्लाम को नियंत्रित करते हैं। ऐसे समाज में लोकतंत्र की कोई जगह नहीं। जिन्ना ने कभी भी ऐसे रूढि़वादी देश की परिकल्पना नहीं की थी। जिन्ना पाकिस्तान को एक उदारवादी राष्ट्र बनाना चाहते थे। यह दृष्टिकोण तब तक चलता रहा जब तक कि पाकिस्तान के जनरल जिया उल हक ने इसको बदल नहीं दिया। उन्होंने जिन्ना की परम्परा को पलट दिया तथा एक रूढि़वादी इस्लाम की संरचना की। इसके साथ ही साम्प्रदायिक हिंसा की परम्परा पाकिस्तान में चल पड़ी। 

ऐसी विभिन्न चुनौतियों के बीच यह पछतावा करने योग्य बात है कि हम पाकिस्तान की बदल रही रूप-रेखा का आकलन करने में नाकाम रहे। यहां तक कि शिक्षित विश्व भी हमारे पड़ोसी को नहीं जांच पाया। इन गंभीर फासलों को भरने की जरूरत है। नई दिल्ली को इस्लामाबाद के शासकों के दिमाग को सही तरह से पढऩे की आवश्यकता है। भारतीय नेतृत्व को यह महसूस करने की जरूरत है कि हमारा राजनीतिक प्रबंधन सख्त बने।-हरि जयसिंह

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