मोदी को एकतरफा ‘संवाद’ में महारत हासिल

Edited By ,Updated: 16 Jan, 2020 12:27 AM

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दक्षिण भारत की एक तुगलक मैगजीन की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उनका मानना है कि यहां पर दो कारण हैं जिससे कि हमारी महान सभ्यता प्रफुल्लित हुई है। पहला यह कि भारत एकता, विविधता तथा भाईचारे का सम्मान...

दक्षिण भारत की एक तुगलक मैगजीन की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उनका मानना है कि यहां पर दो कारण हैं जिससे कि हमारी महान सभ्यता प्रफुल्लित हुई है। पहला यह कि भारत एकता, विविधता तथा भाईचारे का सम्मान करता है। दूसरा कारण यह है कि भारत के लोगों में इच्छा शक्ति तथा उत्साह बहुत है। जब कभी भारत के लोग कुछ करने की ठान लेते हैं तब उन्हें दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं सकती। मोदी ने आगे कहा कि क्योंकि भारत अगले दशक में प्रवेश कर रहा है, यह भारत के लोग ही हैं जो भारत के विकास का मार्गदर्शन करेंगे तथा इसे नई बुलंदियों पर ले जाएंगे। मोदी ने आगे कहा कि वह भारत के लोगों के समक्ष अपना शीश झुकाते हैं जिन्होंने संविधान की भावना को कायम रखा है।

ये प्रधानमंत्री मोदी के शब्द हैं जिन्होंने एकतरफा संवाद में महारत हासिल कर रखी है, चाहे यह चुनावों के दौरान दिया जाने वाला भाषण हो, सार्वजनिक रैलियां हों, संसदीय भाषण हो या फिर उनकी ‘मन की बात’ हो। इन सब बातों का स्वागत किया जाता है मगर प्रधान सेवक को बैठकों तथा संवाद के माध्यम से देश के लोगों तक अपनी पहुंच बनानी चाहिए।

लोग चाहते हैं कि उनकी आवाज सुनी जाए
यहां पर यह भी वर्णनीय बात है कि मोदी तथा उनकी सरकार अंतर्राष्ट्रीय हित के मामले पर विभिन्न राष्ट्रों से बातचीत करती है तथा उन तक अपनी पहुंच बनाती है। विदेशी विशिष्ट लोगों के साथ संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से वह दूरदराज की यात्राएं करते हैं तथा उनकी सरकार ने हाल ही में अमरीका तथा ईरान में बढ़ते तनाव को कम करने के लिए संवाद की पेशकश की। जब भारत के अंदर ही विवादास्पद मुद्दे उठते हैं तब मोदी तथा उनकी सरकार लम्बे समय से प्रदर्शन कर रहे लोगों से बात करने तथा उन तक पहुंचने की इच्छा नहीं जताते। ये लोग चाहते हैं कि उनकी आवाज सुनी जाए।

ऐसे ही एक दिन एक न्यूज चैनल एक महिला का इंटरव्यू प्रसारित कर रहा था, जिसने राजधानी दिल्ली की एक विशेष सड़क को रोक रखा था। वह पिछले कई हफ्तों से दिन-रात धरने पर बैठी थी तथा नागरिकता संशोधन कानून तथा नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स को वापस लेने की मांग कर रही थी। ऐसी सैंकड़ों महिलाएं, बच्चे तथा 80 वर्ष से अधिक की आयु वर्ग के लोग हैं, जिनका कोई भी राजनीतिक संबंध नहीं था। वे यह कह रहे थे कि सरकार या फिर सत्ताधारी पार्टी का कोई भी व्यक्ति उनकी आवाज सुनने के लिए नहीं पहुंचा तथा वे अपना धरना तभी समाप्त करेंगे यदि कोई वरिष्ठ नेता उनकी बात सुनने को तैयार हो।

टी.वी. चैनलों पर बहसबाजी तमाशा बनी
इसी तरह देश में ऐसे सैंकड़ों प्रदर्शन जारी हैं जिन पर मीडिया ने ध्यान ही नहीं दिया न ही उनके बारे में रिपोर्टिंग की। सरकार ने भी उनके साथ संवाद स्थापित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। नए टी.वी. चैनलों पर बहसबाजी तमाशा बन कर रह गई है। दूसरे व्यक्ति के विचार पर ध्यान देने की कोई जरूरत ही नहीं समझता। उनकी प्रतिक्रियाएं तो बस भविष्य की बातें हैं, जोकि पार्टी की नीतियों पर आधारित होती हैं। दिलचस्प बात यह है कि कुछ पैनेलिस्ट जोकि किसी विशेष पार्टी से संबंधित होते हैं, ने राजनीतिक विश्लेषकों का मुखौटा धारण कर रखा है मगर यह जनता है जो सब जानती है। दूसरे की बात को सुनना या फिर संवाद स्थापित करने के बारे में सोचा ही नहीं जाता। दूसरे को तो एक इंच भी जगह देने की दूर की बात होती है।

ऐसी बहसें तीखी तथा व्यर्थ होती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बहुत से लोग टी.वी. चैनलों पर ऐसी बहसों को देखना बंद कर चुके हैं। जिनके पास इनको देखने की सहनशीलता है वे यह देखते हैं कि वाद-विवाद में उलझे तथा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे मेहमानों को एंकर किस तरह शर्मसार करते हैं। गम्भीर मुद्दों के समाचार तो देखने को नहीं मिलते। लोग डिजीटल मीडिया की ओर अपना ध्यान लगाते हैं कि आखिर देश दुनिया में क्या-क्या घट रहा है। 100 से अधिक वरिष्ठ अधिकारी जिन्होंने राष्ट्र को अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दी हैं, ने ‘कांस्टीच्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ नामक ग्रुप का गठन कर रखा है, जोकि लोगों के मुद्दों पर ही बात करता है। 

हाल ही में प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र द्वारा इस ग्रुप ने कहा कि पिछले कुछ समय में लिए गए निर्णय के संदर्भ में देश के नागरिक डरे हुए हैं क्योंकि सरकार ने इन मुद्दों पर बातचीत करना गंवारा नहीं समझा। नागरिकता कानून को लेकर एक माह से प्रदर्शन जारी हैं, श्रीनगर में पिछले 5 महीनों से मीडिया के मुंह पर ताला लगा रखा है। सरकार ने फिर भी लोगों की आवाज सुनने का प्रयास नहीं किया। घाटी के उच्च राजनीतिक नेता अभी भी हिरासत में हैं। ऐसे मामलों को लेकर सरकार ने न तो कोई बैठक का आयोजन किया और न ही प्रमुख पार्टियों से बातचीत की।

मोदी सरकार ने राज्य सरकारों तक भी अपनी पहुंच नहीं बनाई तथा ऐसी सरकारों ने हाल ही में संशोधित कानूनों को अपने राज्य में लागू करने की कोई इच्छाशक्ति नहीं जताई। इस बात से संवैधानिक संकट पैदा होगा और इसका असर केन्द्र राज्य संबंधों पर भी पड़ेगा। इन मुद्दों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हल किया जाएगा मगर उचित यह होगा कि यदि केन्द्र इन राज्यों तथा विभिन्न राजनीतिक पाॢटयों से संवाद बनाए। मोदी सरकार को सत्ता का नशा छोड़ अपनी हेंकड़ी छोडऩी होगी तथा देश के प्रदर्शनकारियों, बुद्धिजीवियों, सहयोगी पार्टियों तथा राजनीतिक दलों से बातचीत का द्वार खोलना होगा।
- विपिन पब्बी vipinpubby@gmail.com
 

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