निजता की आड़ में राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jul, 2017 11:05 PM

national security can not be falsified under the guise of privacy

निजता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की वृहद पीठ इस मामले .....

निजता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की वृहद पीठ इस मामले में निर्णय देगी कि किसी व्यक्ति की निजी जानकारी साझा करने का किसी को अधिकार है या नहीं। मामला आधार कार्ड में दी गई व्यक्तिगत जानकारी के साझा करने से जुड़ा हुआ है। याचिका दायर करने वालों ने आधार की जानकारी से निजता भंग होने के खतरे का अंदेशा जताया है। 

सवाल यह है कि आखिर आधार में ऐसा क्या है जिसे सरकार इस्तेमाल नहीं कर सकती। याचिका में सवाल यह भी उठाया गया है कि इससे डाटा लीक होने से व्यक्ति का नुक्सान हो सकता है। यह सवाल भी प्रासंगिक नहीं है। विश्व में जिस तरह हैकिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं, उस लिहाज से इंटरनैट आधारित कम्प्यूटर प्रणाली सुरक्षित नहीं रह गई है। हैकिंग से बचाने के लिए नए-नए सुरक्षा एप विकसित किए जा रहे हैं। इस मामले में हैकरों की हालत तू डाल-डाल, मैं पात-पात जैसी है। हैकिंग से बचने के लिए बड़ी सॉफ्टवेयर कम्पनियों ने सुरक्षा तंत्र विकसित किए हैं। हैकर उससे भी दो कदम आगे हैं, इनका भी तोड़ निकाल लेते हैं। 

यह एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। यह ठीक उसी तरह है जैसे कि पुलिस किसी एक अपराधी या गैंग को पकड़ लेती है, पर इससे अपराधों पर लगाम नहीं लगती। अपराध घटित होना और उस पर पुलिस कार्रवाई होना, निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। इसी तरह हैकर और कम्प्यूटर सुरक्षा का मामला है। हैकिंग और वायरस से बचने के लिए नए तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ दिनों बाद पता चलता है कि फिर कोई नया वायरस दुनिया भर के कम्प्यूटरों को हैंग करने आ गया है। या फिर किसी हैकर ने हैकिंग से तंत्र ठप्प करने का प्रयास किया है। 

क्या महज इस डर से कि हैकिंग के जरिए डाटा लीक या चोरी हो जाएगा, एक राष्ट्रीय नैटवर्क प्रणाली को रोका जा सकता है, जिसके डाटा के आधार पर विश्लेषण करके सरकार भावी नीतियां या योजना बना सकती है। निजता भंग होने के खतरे का हवाला देकर जिस तरह आधार कार्ड को रोके जाने का प्रयास किया जा रहा है, उसमें आखिर ऐसा है क्या कि निजता खत्म हो जाएगी। आधार कार्ड में उम्र, नाम-पता के अलावा कुछ नहीं होता। दिक्कत आधार को बैंक खातों और सरकारी योजनाओं से जोडऩे पर हो रही है। आधार को बैंक से ङ्क्षलक करते ही केन्द्रीय सर्वर पर खातों से संबंधित सारी जानकारी एकत्रित हो जाएगी, जिसके लीक होने को निजता से जोड़ा जा रहा है। 

इसमें खतरा यह बताया  जा  रहा  है कि हैकर  इससे खातों में हेराफेरी कर सकते हैं। रिलायंस के करोड़ों यूजर्स की जानकारी  लीक होने का मामला ताजा है। मुम्बई पुलिस इसकी जांच कर रही है। आधार को छोड़ भी दें तो चालाक हैकर तो वैसे भी किसी के वश में आने वाले नहीं हैं। हैकरों ने अमरीका और यूरोपीय देशों की गोपनीय जानकारी तक को नहीं बख्शा। विकीलिक्स से उजागर हुए दस्तावेज इसी का उदाहरण हैं। ऐसे में बैंकों को भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं माना जा सकता। क्या इस भय से कम्प्यूटर प्रणाली को खत्म किया जा सकता है कि डाटा लीक या चोरी हो जाएगा। क्या फिर से बही-खातों के दौर में लौटा जा सकता है, जहां जानकारी के लिए बैंकों में घंटों लगते थे। 

जो जानकारी बैंकों में मौजूद है, उसे केन्द्रीय सर्वर पर लेने से क्या समस्या हो सकती है। इससे सरकार को कई तरह की सूचनाओं के संग्रहण में आसानी होगी। विशेषकर टैक्स चोरी जैसे मामलों में बचना किसी के लिए आसान नहीं रहेगा। एक क्लिक पर ही सारी जानकारी सरकारी निगाहों में होगी। सरकारी योजनाओं में आधार को अनिवार्य किए जाने से योजनाओं की असलियत सामने आ जाएगी। इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। सरकारी धन की बंदरबांट काफी हद तक बंद हो जाएगी। अभी तक तो यही पता नहीं चलता कि लाभार्थी असली है भी या नहीं। आधार को अनिवार्य करने के बाद ऐसी हरकतों पर लगाम लगाना आसान हो जाएगा। देश के प्रत्येक नागरिक का सम्पूर्ण ब्यौरा सरकार के पास होना ही चाहिए। वैसे भी पूरी दुनिया आतंकवाद की गिरफ्त में है। 

कम्प्यूटर पर नागरिकों का सम्पूर्ण ब्यौरा नहीं होने से किसी भी देश के सुरक्षा तंत्र को खतरा रहता है। आधार को अनिवार्य करने से शरणार्थी जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। देश में लाखों अवैध बंगलादेशीयों की पहचान आसान हो जाती। राशन कार्ड और वोटर कार्ड की आड़ में लाखों अवैध  बंगलादेशी वैध भारतीय नागरिक बन गए। यदि उस दौर में आधार जैसी प्रणाली होती तो ऐसा मुमकिन नहीं होता। इस पर राजनीति करने की संभावनाएं कम हो जातीं। अभी तक एन.जी.ओ. सरकारी योजनाओं की आड़ में खूब हेराफेरी करते रहे हैं। आधार को अनिवार्य करने के साथ ही ऐसा करना मुश्किल हो जाएगा। सब कुछ पारदर्शी रहेगा। लगता यही है कि आधार को अनिवार्य करने का विरोध इसी पारदर्शिता को खत्म करने के लिए किया जा रहा है। यह ठीक उसी तरह है कि चूंकि सड़कों पर हर रोज दुर्घटनाएं होती हैं, इसलिए सड़क ही नहीं बनाई जाए, जबकि दुर्घटनाएं रोकने के लिए और बेहतर प्रयास किए जा सकते हैं, सड़क ही नहीं बनाना समझदारी नहीं कहलाएगा।

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