‘हिमालयन रैजीमैंट’ की स्थापना की आवश्यकता

Edited By ,Updated: 01 Jul, 2020 05:30 AM

need to establish  himalayan regiment

समय, परिस्थिति और आवश्यकता मनुष्य, समाज और देश को महत्वपूर्ण निर्णय करने की प्रेरणा और उत्साह देती है। व्यक्ति, समाज और सरकार यदि उचित समय पर उचित निर्णय लेते हैं तो उसके दूरगामी परिणाम सबके लिए लाभदायक और उपकारी रहते हैं। जब-जब पहाड़ों और देश की...

समय, परिस्थिति और आवश्यकता मनुष्य, समाज और देश को महत्वपूर्ण निर्णय करने की प्रेरणा और उत्साह देती है। व्यक्ति, समाज और सरकार यदि उचित समय पर उचित निर्णय लेते हैं तो उसके दूरगामी परिणाम सबके लिए लाभदायक और उपकारी रहते हैं। जब-जब पहाड़ों और देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा अनुभव हुआ तब-तब हिमाचल रैजीमैंट को स्थापित करने के लिए आवाज उठती रही है, किन्हीं कारणों से विभिन्न सरकारें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय नहीं ले पाईं। 

वर्तमान में जो परिस्थितियां भारत-चीन सीमा एल.ए.सी. पर पैदा हुई हैं  उन्हें देखते हुए फिर इस  रैजीमैंट के महत्व का एहसास, हर व्यक्ति जो पूरे देश को सुरक्षित, अखंडित रखना चाहता है वह इसकी आवश्यकता महसूस करता है। समय और परिस्थितियों की विडम्बना देखिए, कहा जाता था और पढ़ाया भी जाता था कि जब तक उत्तर में हिमालय पर्वत और दक्षिण में ङ्क्षहद महासागर है तब तक उत्तर और दक्षिण की हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं। आज सबसे बड़ा खतरा देश की सीमाओं और सुरक्षा को उत्तर में हिमालय पर्वत पर चीन की तरफ से है तो दक्षिण में भी ङ्क्षहद महासागर की ओर से चीन से ही सबसे बड़ा खतरा नजर आ रहा है। 

हिमालय पर्वत पर लेह-लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के साथ लगती सीमा पर जब-जब चीन घुसपैठ  करने की कोशिश करता है तब-तब देश को आभास होता है कि इन क्षेत्रों में इतनी ऊंचाई पर बर्फ में, ढालानों पर और नदियों पर खतरनाक भौगोलिक परिस्थितियों में ऐसे क्षेत्रों में युद्ध लडऩा कितना कठिन है। इसके लिए ऐसी रैजीमैंट की स्थापना अत्यंत आवश्यक लगती है जो ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान लोगों पर आधारित हो जो ऐसी ही कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में पैदा हुए और रहते हैं।

ऐसे जवानों पर आधारित सेना की रैजीमैंट इन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में अधिक सहजता के साथ देश की सीमाओं की सुरक्षा कर सकती है। हमने अलग-अलग समय में इस मांग को उठाया है। हमने कहा कहीं मराठा रैजीमैंट, कहीं पंजाब रैजीमैंट, सिख रैजीमैंट, बिहार रैजीमैंट, महार रैजीमैंट, कुमायूं रैजीमैंट, गढ़वाल रैजीमैंट, डोगरा रैजीमैंट, मद्रास रैजीमैंट अर्थात विभिन्न राज्यों और वर्गों के नाम पर रैजीमैंट्स स्थापित की गई हैं। 

एक समय पर कहा गया है कि प्रदेशों के नाम पर रैजीमैंट न बनाने  का नीतिगत निर्णय सरकार ने लिया है। हमारा उत्तर है कि प्रदेश के नाम पर रैजीमैंट मत बनाओ, इसका नाम हिमालय पर्वत के नाम पर हिमालयन रैजीमैंट रख दो और इसमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक के सभी हिमालयी राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों के नौजवानों को भर्ती किया जाए तो एक ऐसी रैजीमैंट तैयार होगी जिसके जवानों को पहाड़ पर तैनाती से पहले महीना भर लेह आदि में ले जाकर नई जलवायु का अभ्यस्त बनाने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि वे ऐसी ही भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम में रहने के अभ्यस्त होते हैं। 

एक और मांग बार-बार उठाई जाती रही है कि डोगरा रैजीमैंट का जो सैंटर रामगढ़ में रखा गया है वह बहुत दूर है। इस कारण से पूर्व सैनिक और युद्ध विधवाएं (वीरांगनाएं) जिन्हें लाभ इस रैजीमैंट सैंटर से मिलता है  वह लेने में भी असमर्थ रहते हैं। सैंटर दूर होने के कारण हिमालय की तरफ सीमा पर पोस्टिंग के समय भी सैनिकों को बहुत दूर से जाना पड़ता है।  मेरा सुझाव है कि इस सैंटर को रामगढ़ से बदल कर हिमाचल प्रदेश में उचित स्थान पर स्थापित करना ठीक रहेगा। 

भाजपा सरकार नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए आवश्यक पग उठा  रही है चाहे युद्ध सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, बुनियादी ढांचा, सड़कों, पुलों आदि का निर्माण, रेल लाइनें, हैलीपैड और हवाई अड्डे बनाने की बात हो, यह सरकार पूरी तरह गंभीर है। इसलिए हिमालय के साथ लगती सीमा की सुरक्षा में  देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हिमालयन रैजीमैंट की स्थापना के ऊपर भी गंभीरता से विचार  करके इसकी स्थापना करके देश की उत्तरी सीमा की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेंगे। आओ आत्मनिर्भर भारत के लिए इस कदम की भी प्रतीक्षा करें।- प्रो. प्रेम कुमार धूमल(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र.)
 

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