अब जनता तक पहुंचे सरकार

Edited By ,Updated: 29 Apr, 2021 04:27 AM

now the government reaches the public

भारत वर्तमान में राष्ट्रीय आपातकाल और सदी का सबसे खराब चिकित्सा संकट झेल रहा है। हम अभी भी समस्या के सटीक परिणाम के बारे में नहीं जानते या फिर यूं कहें कि यह कब खत्म होगा वह भी नहीं जानते। निश्चित तौर पर यह सबसे कठिन

भारत वर्तमान में राष्ट्रीय आपातकाल और सदी का सबसे खराब चिकित्सा संकट झेल रहा है। हम अभी भी समस्या के सटीक परिणाम के बारे में नहीं जानते या फिर यूं कहें कि यह कब खत्म होगा वह भी नहीं जानते। निश्चित तौर पर यह सबसे कठिन समय है जिसमें से हम गुजर रहे हैं। 

हम पहले से ही 2 लाख से अधिक नागरिकों को खो चुके हैं जो उन सभी सैनिकों से 10 गुणा अधिक हैं जिन्होंने आजादी के बाद से लड़़े गए सभी युद्धों के दौरान अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। अमरीका में 2001 में 9/11 हमले में जान गंवाने वाले व्यक्तियों की संख्या की तुलना में दैनिक मृत्यु दर बदतर है। एक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में कोविड के 30 लाख सक्रिय मामले हैं। हालांकि वास्तविक आंकड़े बहुत अधिक हैं। 

अतीत में देश कुछ अन्य कठिन समय से भी गुजरा है जिसमें प्राकृतिक आपदाएं भी शामिल हैं। मगर पूर्व में ऐसी कोई मिसाल नहीं जब देश ने सरकार को कार्रवाई से गायब देखा हो। ऐसा लगता है कि लोगों को उनके खुद के भरोसे पर छोड़ दिया गया है। न तो यहां कोई कंट्रोल रूम और न ही केंद्रीयकृत सूचना सैंटर है जो लोगों को जरूरी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे अस्पताल बैडों, ऑक्सीजन या फिर दवाइयों के बारे लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए निर्देश या सूचना दे सके। 

अस्पताल के बिस्तरों, ऑक्सीजन के सिलैंडरों और यहां तक कि बुनियादी दवाओं की तलाश में मारामारी कर रहे कोविड रोगियों के परिवारों की तस्वीरें और वीडियो दिखना एक आम बात हो गई है। श्मशानघाटों और कब्रिस्तानों पर अपने निकट और प्रिय लोगों के अंतिम संस्कार करने के लिए इंतजार करने वाले लोगों के दृश्य को देख कर दिल दहल जाता है। ऐसे परिवारों का मार्गदर्शन करने और किसी भी प्रकार की राहत प्रदान करने के लिए शायद ही कोई सरकारी एजैंसी उपलब्ध हो। किसी भी अधिकारी को उन लोगों से निपटने और यह देखने के लिए कि उन्हें क्या सहायता प्रदान की जाए, नामित नहीं किया गया है। 

अस्पताल बैडों, दवाओं या ऑक्सीजन सिलैंडर की उपलब्धता से निपटने के लिए नोडल अधिकारी को कम से कम सबसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में नियुक्त किया जाना चाहिए था। मीडिया अंधेरे में लोगों को टटोलते हुए, अपने मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक ले जाने या दूर-दूर के स्थानों से ऑक्सीजन सिलंैडर की व्यवस्था करने की कोशिश करने के बारे में रिपोर्ट करता रहा है। जाहिर तौर पर देश में ऐसे लोग भी हैं जो लाभ कमाने के लिए संकट का सबसे अधिक उपयोग कर रहे हैं। ऐसे लोग गंभीर निंदा के लायक हैं। ऐसी भी रिपोर्टें हैं जबकि एम्बुलैंस ड्राइवर मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए लोगों से कई गुणा ज्यादा चार्ज कर रहे हैं। दवाओं की जमाखोरी कर भी लोग मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं। ऐसे समाज विरोधी तत्वों के खिलाफ सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। 

बेशक देश में ऐसे कई दयालु व्यक्ति और एन.जी.ओ. भी हैं जो ऐसे कठिन समय में लोगों की सहायता में जुटे हुए हैं। उनके प्रयासों की कद्र करनी चाहिए। हम सबका यह कत्र्तव्य बनता है कि इस संकट की घड़ी में अपने से जो कुछ भी बन पड़े वह करना चाहिए। पेशेवरों की ऐसी श्रेणी भी है जो हमारे सभी समर्थन और आभार के योग्य है। यह डाक्टर और पैरामैडीकल स्टाफ है जो मांग की वार्ड को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा सक्रिय हैं। दिल्ली में एक हालिया घटना के दौरान एक मरीज के पारिवारिक सदस्यों द्वारा डाक्टरों और पैरामैडीकल स्टाफ की पिटाई करते हुए देखा गया। ऐसे दोषियों के खिलाफ अधिकारियों को त्वरित और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। 

सरकारों को जनता तक पहुंचने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महामारी की पहली लहर के दौरान आधा दर्जन से ज्यादा बार राष्ट्र को संबोधित किया। मगर इस समय उन्होंने एक बार राष्ट्रीय उपस्थिति बनाई।  केवल उन्हें ही नहीं मुख्यमंत्रियों सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी इस महत्वपूर्ण मोड़  पर लोगों तक पहुंचना चाहिए। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हाल ही में किए गए झूठे दावों पर जोर नहीं देना चाहिए जिसके तहत उन्होंने दावा किया कि उनके राज्य में बैड या ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। प्रभावित व्यक्तियों के वीडियो ने उनके दावों को खारिज कर दिया और सरकार की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया।-विपिन पब्बी
 

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