‘जूते को पहनने वाला ही समझ सकता है कि आखिर कील कहां है’

Edited By ,Updated: 07 Jan, 2021 04:36 AM

only the wearer of the shoe can understand where the nail is

पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी यू.पी. के किसान जोकि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लम्बे अर्से से प्रदर्शन कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि वे अंतिम दिन तक लड़ाई लडऩे के लिए प्रतिबद्ध हैं। टैंटों में रहने वाले किसानों ने सर्दी, बारिश तथा सभी प्रकार

पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी यू.पी. के किसान जोकि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लम्बे अर्से से प्रदर्शन कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि वे अंतिम दिन तक लड़ाई लडऩे के लिए प्रतिबद्ध हैं। टैंटों में रहने वाले किसानों ने सर्दी, बारिश तथा सभी प्रकार की तकलीफों के अलावा हरियाणा पुलिस के आंसू गैस के गोलों तथा पानी की तेज बौछारों को भी झेला है। उन्हें कुछ भी रोक नहीं सकता है। 

ऐसे किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी समर्थक, राष्ट्रविरोधी, माओवादियों के मित्र और बहुत कुछ कहा गया है। राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विपक्षी दलों ने उन पर इल्जाम लगाए हैं। आंदोलन के नेताओं ने ऐसी बातों के खिलाफ त्वरित उत्तर को प्रेरित किया है कि यह भाजपा ने गलत मतलब निकाला है कि विपक्ष ने किसानों का नेतृत्व किया है बल्कि दूसरी तरफ विपक्ष ने किसानों की गाड़ी में सवार होने के लिए उसमें छलांग लगाई है। ऐसा उन्होंने तब किया जब उन्होंने महसूस किया कि सरकार अपने बैकफुट पर है। 

किसी भी लोकतंत्र में सरकार की पराजय का लाभ विपक्ष उठाना चाहता है। यदि भाजपा विपक्ष में होती तो वह भी इसी बात का फायदा उठाना चाहती। कांग्रेस ने इन्हीं सुधारों की वकालत की थी जब वह चुनावी मैदान में थी लेकिन जब भाजपा ने सुधारों की शुरूआत की तो कांग्रेस अपने स्टैंड पर वापस लौटी है। लोकतंत्र में ऐसी बातों की आशा की जाती है। ऐसी धोखाधड़ी के लिए लोगों का इस्तेमाल किया जाता है। लोग इन बातों पर ध्यान नहीं देते। शुरू में कांग्रेस द्वारा जी.एस.टी. प्रस्तावित की गई थी मगर जब भाजपा ने सुधारों को जारी किया तो कांग्रेस इसके लिए बोल पड़ी। लोग इस तरह के घटनाक्रमों को कार्यप्रणाली के तौर पर देखते हैं। 

यहां पर एक खतरा है कि  किसान आंदोलन के कारण जनपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह बाधित हो सकता है। यहां पर कुछ ऐसे पवित्र दिन भी हैं जिसके लिए प्रत्येक देशभक्त भारतीय किसी भी कीमत पर बदनाम नहीं होना चाहता। स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस के साथ-साथ महात्मा गांधी का जन्मदिन भी पवित्र दिन है। यदि ऐसे दिवस बाधित होते हैं तो किसान एक विशालकाय गलती कर रहे हैं। आम जनता की सहानुभूति जो किसान अभी तक प्राप्त कर रहे हैं वह कम होगी यदि उस पवित्र दिन पर किसी प्रकार का प्रदर्शन किया जाता है। 

भारतीय समाज का किसान एक बहुमूल्य अंग है। सरकार जानती है कि वह किसानों से उस तरह से निपट नहीं सकती जैसा सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनकारियों से निपटी थी। यहां तक कि शाहीन बाग, जे.एन.यू. तथा जामिया मिलिया छात्रों में ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं शामिल थीं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने सर्दी से बचने के लिए सी.ए.ए. कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के लिए लाए गए कंबलों को जब्त कर लिया था। यह बेहद घटिया किस्म की बात है। मैं ऐसी पुलिस कार्रवाई की भत्र्सना करता हूं और इस तरह की पुलिस कार्रवाई किसानों के खिलाफ सोची भी नहीं जा सकती। 

सरकार का मानना है कि तीन कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद साबित होंगे और ऐसा हो सकता है। कई अर्थशास्त्री तथा कृषि विशेषज्ञों  ने ऐसा कहा है। किसान सरकार तथा विशेषज्ञों की बात से सहमत नहीं हैं। नागरिकों के लिए इसे समझ पाना मुश्किल है। सरकार कहती है कि किसान देश में कहीं पर भी फसल बेचने के लिए स्वतंत्र हैं और मंडी जाने के लिए कोई आवश्यकता नहीं। सैद्धांतिक रूप से यह सत्य है मगर लम्बी दूरी तक फसल को ले जाने की पडऩे वाली कीमतों को झेलने के लिए कुछ प्रैक्टिकल मुश्किलें हैं। इसके लिए तथ्य यही है कि किसान को निरंतर ही अगली फसल की बुवाई या फिर अपने घरेलू खर्चों के लिए नकदी की जरूरत पड़़ती है। जूते को पहनने वाला ही समझ सकता है कि आखिर कील कहां है? 

सरकार को अपनी बताई गई नीति के विचारों को फिर से सोचना चाहिए। नोटबंदी तथा पिछले वर्ष की जम्मू-कश्मीर में कार्रवाई जैसे कुछ मुद्दों में यहां पर कुछ भेद रखना चाहिए मगर किसानों के जीवन को सुधारने की कोशिश तथा बंगलादेशी हिंदुओं के लिए त्वरित नागरिकता के पक्ष को लेकर सरकार के लिए बिना किसी बहस के संसद के माध्यम से विधेयक लाने में कोई भी ऐसी जल्दबाजी या फिर आश्चर्य देने की जरूरत नहीं थी। 

मैंने कहा कि नोटबंदी की घोषणा तथा आधी रात को जम्मू-कश्मीर के नेताओं की हिरासत में गोपनीयता रखने की बात न्यायोचित हो सकती है मगर फिर भी तथ्य यह है कि सरकार गोपनीय पैंतरेबाजी में निपुण है। जबकि ऐसे कानून जिसके बारे में सरकार का कहना है कि इन्हें लोगों के एक हिस्से की बेहतरी के लिए जारी किया गया है।

किसानों का आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक दोनों पक्षों में से एक झुक नहीं जाता। सरकार तीनों कानूनों को रद्द नहीं कर सकती, जैसा कि किसान यूनियनों की मांग में है। प्रत्येक कोण से सरकार के लिए यह तबाही होगी। मोदी जी की छवि पर इसका प्रभाव होगा। यह गरीबों के लिए समस्या नहीं हो सकती जिन्होंने मोदी का पक्ष लिया क्योंकि उनके बैंक खातों में सरकारी उदारता का सीधा हस्तांतरण हुआ, घरों में शौचालय तथा बिजली और सड़कें बनाई गईं। उनका कहना है कि मोदी ने यह सब उपलब्ध करवाया मगर उनका पारम्परिक वोट बैंक तो मध्यश्रेणी के बीच में है जो निश्चित तौर पर महत्ता रखता है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 

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