पाकिस्तान का ‘कटोरा’ खाली, चीन से हमेशा ‘मांगता’ रहेगा

Edited By ,Updated: 29 Aug, 2020 03:31 AM

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पाकिस्तान के विदेश मंत्री के सऊदी अरब के खिलाफ गैर-कूटनीतिक तथा अपरिपक्व व्यवहार के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों का स्तर गिर गया है। इन बातों से पैसे की कमी झेल रहे पाकिस्तान में वित्तीय संकट गहरा गया है। पाकिस्तान जोकि आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक...

पाकिस्तान के विदेश मंत्री के सऊदी अरब के खिलाफ गैर-कूटनीतिक तथा अपरिपक्व व्यवहार के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों का स्तर गिर गया है। इन बातों से पैसे की कमी झेल रहे पाकिस्तान में वित्तीय संकट गहरा गया है। पाकिस्तान जोकि आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-आप्रेशन (ओ.आई.सी.) का चेयरमैन बनना चाहता है, वह एक तर्कहीन अभिलाषा है। 

ओ.आई.सी. का गठन 1969 में हुआ था जिसमें इसके 57 सदस्य हैं, जिनमें 4 महाद्वीपों से 24 सदस्य देश भी शामिल थे। इसके पास 1.8 बिलियन की सामूहिक जनसंख्या है जो तेल की कीमतों का निर्धारण भी करती है। संयुक्त राष्ट्र के बाद यह एक बड़ा संगठन है तथा यह सऊदी अरब के जेद्दा में स्थित है। 

ओ.आई.सी. के चार्टर के अनुसार इसका मुख्य उद्देश्य इस्लामिक सिद्धांतों, राष्ट्रीय सम्प्रभुता तथा सदस्य देशों की स्वतंत्रता का संरक्षण करना है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा में अपना योगदान देना है। हालांकि संगठन अपनी संस्कृति तथा सामाजिक परियोजनाओं के लिए भी जाना जाता है। जहां तक राजनीतिक प्रभाव का सवाल है वह लगभग सीमित है। ओ.आई.सी. की अर्थव्यवस्था से 57 सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था जुड़ी हुई है। 

कश्मीर मसले पर सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान का आमना-सामना
लगता है पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी देश की विदेश नीति के स्तम्भों में से एक को गिराने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दिए हैं जब उन्होंने खुले तौर पर सऊदी अरब को या तो मुस्लिम राष्ट्रों का नेतृत्व करने या फिर ओ.आई.सी. को भारत में जम्मू-कश्मीर में आॢटकल 370 के निरस्तीकरण के खिलाफ खड़े होने को कहा। उन्होंने धमकी दे दी कि उनके पास कोई विकल्प नहीं कि वह ओ.आई.सी. को छोड़ देंगे बल्कि अपने प्रधानमंत्री इमरान खान जोकि अपने आपको ‘कश्मीर का दूत’ मानते हैं, को परामर्श दिया कि पाकिस्तान को आगे बढऩा होगा तथा उन सभी इस्लामिक देशों का एक सत्र बुलाएं जो कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब के ‘बिना या साथ’ पाकिस्तान के साथ खड़ा होने के लिए तैयार हों। 

पाकिस्तानी इन बातों को लेकर छटपटा रहे हैं। सऊदी अरब ने उस समय भारत के साथ एकजुटता दिखाई जब ओ.आई.सी. ने भारत की दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को गैस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर यू.ए.ई. में आमंत्रित किया। पाकिस्तान ने बालाकोट हमले के बाद 2019 के शुरू में उस सत्र का बॉयकाट किया। इस जले पर नमक छिड़कते हुए सऊदी, बहरीन तथा यू.ए.ई. ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मान के साथ उन्हें नवाजा। बहरीन तथा यू.ए.ई. ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक सुधारों के बाद मोदी को सम्मानित किया। 

नई रणनीति के तहत ईरान, तुर्की तथा मलेशिया एक नया ब्लाक बनाने में लगे हुए हैं। एक बात स्पष्ट है कि ईरान तथा तुर्की के सऊदी अरब के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं जोकि ऐतिहासिक साम्प्रदायिक, सांस्कृतिक तथा जातीय कारणों के कारण है और इसके साथ-साथ आंशिक रूप से भू-राजनीतिक कारण भी शामिल हैं। विदेशी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के बावजूद यहां पर कुछ अन्य परेशानियां भी हैं जो पाक-सऊदी संबंधों को लेकर उभरी हैं। 2015 में यमन आप्रेशन में पाकिस्तान ने सऊदी-यू.ए.ई. सुरक्षाबलों के साथ शामिल होने से मना कर दिया था। दो दशक लम्बे दोस्ताना संबंधों को सऊदी अरब द्वारा कर्ज तथा तेल आपूर्ति को समाप्त करने से भी झटका लग सकता है। यह सऊदी अरब का बहुत बड़ा निर्णय है। 

कुरैशी ने कहा कि यदि आप हमसे सहयोग नहीं करेंगे तब मैं प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्लामिक देशों की बैठक बुलाने के लिए बाध्य हो जाऊंगा जोकि कश्मीर मुद्दे पर हमारे साथ खड़े होने को तैयार हैं तथा प्रताडि़त कश्मीरियों का समर्थन करते हैं। कुरैशी ने कहा कि, ‘‘मैं फिर ओ.आई.सी. से सत्कार से यह कहता हूं कि विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक को बुलाना ही हमारी उम्मीद है। उन्होंने आगे कहा था कि कुआलालम्पुर सम्मेलन में से पाकिस्तान को सऊदी अरब के निवेदन के बाद ही बाहर रखा गया।’’ 

सऊदी अरब गुस्से में है
पाकिस्तान ओ.आई.सी. के  विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए अपनी बात आगे बढ़ा रहा है जब से भारत ने आॢटकल 370 को निरस्त किया है, 22 मई को कश्मीर मामले पर ओ.आई.सी. सदस्यों से समर्थन जुटाने में नाकाम रहने के बाद पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा, ‘‘कारण यह है कि हमारी कोई आवाज नहीं सुनी जाती। हम लोग पूरी तरह बंटे हुए हैं। हम कश्मीर मसले पर एक सुर में इकट्ठे नहीं बोलते।’’ 

पाकिस्तान खुले तौर पर चीनी कैंप में शामिल हुआ और अमरीका को नकारा
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का पूरा झुकाव इस समय चीन की तरफ है जिसने अमरीका को और भड़का दिया है। अमरीका ने भारत के साथ नजदीकियां बढ़ाई हैं। उसने 2008 में भारत के साथ परमाणु संधि पर हस्ताक्षर किए। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यू.ए.ई. तथा इसराईल समझौते में भूमिका अदा की, जो एक बार फिर पाकिस्तान को झटका दे गया। पाकिस्तान ने अमरीका से दूरी बनाकर रखी। इस समय वह चीन के कर्ज के शिकंजे में फंस चुका है जिससे बाहर आने में उसे दशकों का समय लग जाएगा या फिर वह कभी भी बाहर नहीं निकल पाएगा। 

अंतिम तौर पर पाकिस्तान ने अपने आपको सऊदी अरब की बेइज्जती कर कमजोर किया है जोकि पूर्व में पाकिस्तान का एक प्रोजैक्टर रहा है मगर चीन के आगे पाकिस्तान पूरी तरह नंगा हो चुका है। भविष्य में वह बेहद ङ्क्षचताजनक मुश्किलों में फंस जाएगा। पाकिस्तान का कटोरा खाली है तथा वह हमेशा ही चीन से मांगता रहेगा जिसके नतीजे में वह चीन के ऋण के शिकंजे में फंस जाएगा जो इसकी वित्तीय कयामत का नेतृत्व करेगा।-के.एस. तोमर

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