पाकिस्तान की नई सरकार एक ‘सद्भावना’ के साथ शुरूआत करेगी

Edited By Pardeep,Updated: 05 Aug, 2018 03:57 AM

pakistan s new government will start with a  goodwill

पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर ‘गार्ड’ लेंगे। उनकी विजय की पहले भविष्यवाणी नहीं की गई थी, हालांकि इस बारे काफी मजबूत तथा निरंतर अफवाहें फैल रही थीं कि वह सेना के पसंदीदा उम्मीदवार हैं और इसलिए...

पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर ‘गार्ड’ लेंगे। उनकी विजय की पहले भविष्यवाणी नहीं की गई थी, हालांकि इस बारे काफी मजबूत तथा निरंतर अफवाहें फैल रही थीं कि वह सेना के पसंदीदा उम्मीदवार हैं और इसलिए उनकी विजय सुनिश्चित है। 

इमरान खान की पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पी.टी.आई.) ने स्पष्ट विजय प्राप्त नहीं की, बल्कि वह उसके करीब (137 सीटों के सामान्य बहुमत की बजाय 116 सीटें प्राप्त करके)पहुंच गए। चुनावों की पूर्व संध्या पर यह भविष्यवाणी की गई थी कि नवाज शरीफ की पार्टी, पी.एम.एल. (एन) सत्ता में वापसी करेगी। दिवंगत बेनजीर भुट्टो की पार्टी पी.पी.पी. की सफलता पर भी दाव लगाए गए थे क्योंकि उनके बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी ने कुछ जोरदार रैलियां की थीं। अंतत: पी.टी.आई. सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उबरी। 

अतिवादी विचार गलत हैं
भारत में कुछ पक्ष ऐसे हैं जिन्हें नई सरकार से बहुत अधिक आशाएं  हैं। कुछ अन्य ने चुनाव को निराशाजनक बताया और सरकार को सतर्क रहने की चेतावनी दी। दोनों ही गलत हैं। हमें अवश्य पाकिस्तान की संघीय सरकार की प्रकृति को समझना चाहिए। स्वतंत्रता के बाद से 71 वर्षों में से 31 में पाकिस्तान पर सेना का शासन रहा है। असैन्य सरकारें थोड़े समय के लिए रहीं और सैन्य अधिष्ठान की दया पर निर्भर थीं। सेना, असैन्य सरकार (जब भी थी) तथा गैर सरकारी लोगों ने पाकिस्तान की सत्ता में हिस्सेदारी की। भारत से संबंधित मुद्दों, विशेषकर जम्मू तथा कश्मीर के मामले में इन तीनों में से किसी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। फिर भी सत्ता के लिए संघर्ष के दौरान आश्चर्य उत्पन्न हो सकते हैं तथा इमरान खान सम्भवत: खुद के लिए और अधिक जगह बनाने में सक्षम होंगे।

नई सरकार एक निश्चित सद्भावना के साथ शुरूआत करेगी। इमरान खान की सरकार बात करेगी और उसने बात करनी शुरू भी कर दी है-शांति, विकास, वृद्धि, अपने पड़ोसियों तक पहुंच बनाने, अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता तथा कश्मीर बारे कोई समाधान ढूंढने, जो इमरान खान के शब्दों में एक ‘केन्द्रीय मुद्दा’ है, बारे में। भारत को अवश्य उस सीमित अवसर का लाभ उठाना चाहिए जो सम्भवत: पहले 6 से 12 महीनों में उपलब्ध होगा। भारत को अवश्य पाकिस्तान पर उन मुद्दों के लिए दबाव बनाना चाहिए जो दोनों देश कश्मीर के मुद्दे की परवाह किए बिना सुलझा सकते हैं। 

स्वाभाविक तौर पर ये हैं-व्यापार, बस तथा रेल सेवाएं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, तीर्थ यात्रियों तक पहुंच, पर्यटन वीजे, चिकित्सा वीजे तथा खेल स्पर्धाओं को बहाल करना। इनसे जम्मू-कश्मीर को लेकर चिरलम्बित विवाद के लिए कोई समाधान तो नहीं मिलेगा मगर इससे भारत तथा पाकिस्तान के लोगों को एक-दूसरे को ‘विवाद के साथ पड़ोसियों’ न कि ‘सनातन विरोधियों’ के तौर पर देखने में मदद मिलेगी। दोनों देश कई मुद्दों, जिन्हें वे नियमित मानते हैं, के मामले में संबंध सामान्य बनाने की ओर कदम बढ़ाकर छोटे-छोटे लाभ उठा सकते हैं। 

शांति की परिभाषा 
इस सब के अतिरिक्त भारत के सीमा पर घुसपैठ रोकने, आतंकवादियों को समाप्त करने तथा कश्मीर घाटी को लेकर विवाद का एक सम्मानीय समाधान खोजने के महत्वपूर्ण हित हैं। सियाचिन तथा सर क्रीक से संबंधित अन्य विवादास्पद मुद्दे भी हैं। यदि ‘शांति’ को इन सभी मुद्दों की समाप्ति प्राप्त करने के तौर पर परिभाषित किया जाता है तो मुझे कोई भ्रम नहीं कि इमरान खान तथा उनकी सरकार गेंद खेलेगी इसलिए न प्राप्त किए जा सकने वाले  लक्ष्यों को एक तरफ रख दिया जाना चाहिए। यदि हम ‘शांति’ को सीमा पर संघर्ष विराम के तौर पर परिभाषित करते हैं तो यह हासिल किया जा सकता हैं, जैसा कि हम कई वर्षों से करते आ रहे हैं। यदि हम ‘शांति’ को घुसपैठ की समाप्ति के तौर पर परिभाषित करते हैं तो यह अधिकांश एक समझौते के माध्यम से

हासिल की जा सकती है, जो दोनों पक्षों की ओर से संयुक्त गश्त तथा सीमा सुरक्षा से संबंधित अन्य उपाय उपलब्ध करवाएगा। यदि हम ‘शांति’ को पाकिस्तानी अधिष्ठान को आतंकवादी समूहों को सक्रिय समर्थन देने के खिलाफ मना लेने के तौर पर परिभाषित करते हैं तो यह आंशिक हद तक एक सहनशील कूटनीति के माध्यम से हासिल किया जा सकता है। मुम्बई आतंकवादी हमलों की याद आज भी हमें परेशान करती है। जब तक दोषियों, जिनकी पहचान कर ली गई है और जो पाकिस्तान में रहते हैं, को सजा नहीं दी जाती तब तक मुम्बई की विभीत्सता समाप्त नहीं होगी, जिसने 166 जिंदगियां लील ली थीं। 

इमरान खान सम्भवत: (मैं यहां ‘सम्भवत:’ शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं) एक लोकतंत्रवादी तथा आतंकवाद विरोधी के तौर पर अपनी पहचान बनाने में  रुचि रखते हों। यदि हम उनकी सरकार को हाफिज सईद का मुकद्दमा पुन: शुरू करने तथा अन्य पहचाने गए दोषियों को न्याय के सामने लाने की सम्भावनाओं का दोहन करते हैं तो कुछ भी नहीं गंवाया। इमरान खान ने कहा है कि यदि भारत एक कदम आगे बढ़ाता है तो वह दो कदम आगे बढ़ाने को तैयार होंगे। यह सम्भवत: प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने से पहले उनका एक तेवर हो सकता है, मगर कुछ भी नहीं खोएगा यदि हम मिस्टर खान के शब्दों पर विश्वास करें और उनसे अपने शब्दों पर परिणाम दिखाने की अपील करें। 

साधारण लाभों के लिए लक्ष्य 
विवेकशील कार्रवाइयां नीतियों का निर्माण नहीं करतीं। ढिलमुल रवैया नीति नहीं होती। मुम्बई आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर युद्ध घोषित नहीं किया, न ही भारत ने पाकिस्तान के साथ ‘वार्ता नहीं’ की घोषणा की। ये स्थितियां, जो शुरू में अच्छी नहीं लगतीं, मगर उनके छोटे लाभ हुए। 2008 से 2014 के बीच भारत में किसी भी आतंकवादी घटना का मूल पाकिस्तान में नहीं पाया गया, जिसने सम्भवत: कुछ संयम बरता। 2010 तथा 2014 के बीच जम्मू-कश्मीर में मौतों की घटनाओं में भी नाटकीय रूप से कमी आई। 

इमरान खान एक कठिन विकेट पर गार्ड लेने के लिए जाने जाते हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कमजोर है और इसे विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें बढ़ता जा रहा विदेशी ऋण शामिल है। इमरान खान को सरकार का कोई अनुभव नहीं है। वह भी सम्भवत: मामूली सुधार चाहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण शब्द है-मामूली। मामूली कदम, मामूली आकांक्षाएं तथा मामूली परिणाम-वे सम्भवत: इमरान खान तथा उनकी सरकार को व्यस्त रखने का परिणाम हो सकते हैं।-पी. चिदम्बरम

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