आम चुनाव के लिए बिछने लगी सियासी बिसात

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2024 04:50 AM

political chessboard started being laid for general elections

भारतीय राजनीति में अंतरात्मा की आवाज भले ही यदा-कदा सुनाई देती हो लेकिन यह सच है कि इसने कई चुनावों को उलट-पलट कर रख दिया।

भारतीय राजनीति में अंतरात्मा की आवाज भले ही यदा-कदा सुनाई देती हो लेकिन यह सच है कि इसने कई चुनावों को उलट-पलट कर रख दिया। हाल में उच्च सदन के लिए हिमाचल और उत्तर प्रदेश की घटनाएं चौंकाने वाली जरूर रहीं लेकिन सन् 1969 की याद फिर ताजा कर गईं। जब तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की अचानक हुई मृत्यु के बाद नए राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नीलम संजीवा रैड्डी को बनाया था। लेकिन चुनाव से एक दिन पहले इंदिरा गांधी ने कांग्रेस सांसदों को अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने को कहा।

ऐसा ही हुआ और अंतरात्मा की आवाज पर निर्दलीय वी.वी. गिरि जीत गए। तब यह अपने आप में एक ऐतिहासिक राजनीतिक घटना थी। अब इसकी पुनरावृत्ति कर यही इतिहास बार-बार दोहराया जाता है। दलबदल की बहुत बड़ी घटना 21 जनवरी 1980 की रात हरियाणा में घटी। जब भजनलाल की जनता पार्टी की बहुमत वाली पूरी की पूरी सरकार कांग्रेस में बदल गई। सत्ता की ऐसी भूख अब एकदम आम है। अब अचरज इसलिए भी नहीं होता कि यह भूख राजनीतिक चलन सी हो गई है।

हां, मतदाता ठगा महसूस करता है जिसके वोट से चुना प्रतिनिधि हासिल जनादेश से इतर निजी स्वार्थ के लिए मतों के बहुमत से अलग चल पड़ता है। हालिया राज्यसभा चुनाव में ऐसा ही हुआ। भले 56 सीटों में हुए चुनाव में 41 पर तो निर्विरोध निर्वाचन हुआ लेकिन 15 उम्मीदवारों के चुनाव उसमें खासकर हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में अंतरात्मा की आवाज पर हुआ खेला खूब रहा। यकीनन यह नया नहीं था। फर्क बस इतना कि कभी कांग्रेस का था आज भाजपा के पूरे दमखम का।

यकीनन हिन्दी पट्टी व उससे सटे राज्यों में भाजपा के वर्चस्व को चुनौती दे पाना कठिन है। उत्तरी भारत के कई क्षेत्रों में वो अच्छा कर पाएगी लेकिन पूरे भारत में अकेले 370 सीटें जीतना और एन.डी.ए. का 400 पार का  नारा जो प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हर भाषण में याद कराया जाता है, सार्थक हो पाएगा? यह भविष्य के गर्त में है। चूंकि विपक्षी एकता की कड़ी में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने दरियादिली दिखा कर कांग्रेस को जितनी सीटें दीं और मध्य प्रदेश में केवल एक सीट लेकर जो बड़ा दिल दिखाया उससे इंडिया गठबंधन को संजीवनी जरूर मिली है।

कमोबेश पंजाब, हिमाचल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, बिहार, छत्तीसगढ़ समेत और भी कई उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में सीटों के समझौते को लेकर इंडिया गठबंधन में देर-सवेर एकता होना ही है। भले ही दूसरे क्षेत्रीय दलों की खातिर सीटें छोडऩे या लेने पर अपनों की ही नाराजगी झेलनी पड़े। प.बंगाल को लेकर अनिश्चितता छंटती दिख रही है। प्रधानमंत्री ने हालिया दौरे में वहां की सरकार पर जिस तरह हमला बोला उसके बाद विपक्षी गठबंधन की एकता की संभावनाएं बढ़ी हैं जो वामदल-कांग्रेस पर काफी कुछ निर्भर होगा।

2019 में दक्षिण में सिवाय कर्नाटक जहां 28 में 25 और तेलंगाना में 13 में 4 सीटें भाजपा ने जीतीं लेकिन शेष नहीं। आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में 84 सीटों में एक भी नहीं जीत सकी। अब भी भाजपा को बड़ी चुनौती यहीं दिख रही है। जिस तरह से पूरे देश में भाजपा ने 2024 आम चुनाव के लिए नरम हिन्दुत्व के साथ एन.डी.ए. गठबंधन को फोकस किया है उससे लगता है कि पार्टी किसी भी तरह के जोखिम से परहेज कर रही है। शनिवार को 195 प्रत्याशियों की लिस्ट आई जिसमें महाराष्ट्र से नाम नहीं है। 16 प्रदेशों की इस सूची पर कई सीटें होल्ड होने से देशव्यापी बहस भी शुरू हो गई है।

इसमें महिलाओं को 28, एस.सी. को 27 और एस.टी. को 16 सीटें दी गई हैं। जबकि दिग्गजों में रमेश बिधूड़ी, प्रवेश वर्मा, हर्षवर्धन, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित कुल 34 मौजूदा दिग्गज सांसदों का टिकट काटा गया। सबसे ज्यादा चर्चा मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा की है जो होल्ड पर है तथा विदिशा जहां से शिवराज सिंह को केन्द्र में भेजने के संकेत हैं, हो रही है। कहते हैं कि जंग और मोहब्बत में सब जायज है। कमलनाथ को लेकर चला सियासी ड्रामा भले थम गया हो किन्तु नई चर्चाएं होने लगी हैं।

अब देखना होगा कि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन उच्च सदन की खातिर मिले हिमाचल के जख्म और उत्तर प्रदेश की टीस की कैसे भरपाई करेगा? वहीं भाजपा-एन.डी.ए. का सत्ताधारी गठबंधन बिहार में दल-बदल का खेला और झारखंड, महाराष्ट्र की सियासी बिसातों सहित दक्षिण में कैसे किला फतह करेगा तो समूचे उत्तर में फिर वैसा परचम लहरा पाएगा? यकीनन भाजपा के अनुशासन का तोड़ नहीं है। 2024 आम चुनाव की खातिर वह जरा सी कमी नहीं छोड़ रही है।

इंडिया गठबंधन कैसे बढ़ेगा? उसकी रणनीति क्या होगी? अभी समझ नहीं आ रहा। फिलहाल आरोप-प्रत्यारोप और आयाराम-गयाराम की तमाम तस्वीरों के बीच झूलते आम मतदाता में चुनावी उत्साह नहीं दिख रहा है। हो सकता है कि कुछ समय पश्चात बढ़ती तपन और होली की खुमारी के बाद गर्म और नरम ङ्क्षहदुत्व के संग रंग में रंगी चुनावी गर्मी का पारा भी चढ़े और तब पता चले कि 2024 का चुनावी फीवर किस के फेवर में है। -ऋतुपर्ण दवे

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