Edited By ,Updated: 05 Mar, 2023 05:06 AM
खुली, प्रतिस्पर्धी, उदार अर्थव्यवस्था ने राष्ट्रीय चैम्पियन तैयार किए हैं।
खुली, प्रतिस्पर्धी, उदार अर्थव्यवस्था ने राष्ट्रीय चैम्पियन तैयार किए हैं। शुरूआती दौर में चैम्पियन छोटे थे लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने की ताकत उन्होंने हासिल कर ली। इन्फोसिस, टी.सी.एस., रिलायंस, एच.डी. एफ.सी., आई.सी.आई., एल.एंड.टी., टाटा, सीरम इंस्टीच्यूट, बायोकॉन, मारुति, बजाज, हीरो, टी.वी.एस., जैसे नाम जहन में आते हैं। इन नैशनल चैम्पियनों ने धन संपदा को सृजित किया।
इसके अलावा उन्होंने कर्मचारियों और शेयर धारकों से बने एक बड़े मध्यम वर्ग को भी जन्म दिया। बड़े व्यवसायों को धन्यवाद। इसके साथ-साथ मध्यम और छोटे व्यवसाय भी फले-फूले। जोखिम लेने की संस्कृति का जन्म हुआ। भारतीय उद्योग ने निर्यात निराशावाद को बहाया। आदित्य बिड़ला ने विदेश में एक भारतीय विनिर्माण कम्पनी ली और विदेशी निवेश की एक नई प्रवृत्ति का नेतृत्व किया।
1991-92 में भारत की जी.डी.पी. स्थिर कीमतों में 25.4 लाख करोड़ रुपए थी। 2003-04 में यह दोगुनी होकर 50.8 लाख करोड़ रुपए हो गई। कैलेंडर वर्ष 2014 में यह फिर से दोगुनी होकर 100 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गई। यह बहुत अधिक सम्पत्ति है। प्रति व्यक्ति आय मौजूदा कीमतों में जोकि 1991-92 में 6835 रुपए थी वह 2021-22 में बढ़कर 1,71,498 रुपए हो गई।
हमने गरीबों को विफल किया : भारत के मध्यम आय वाला देश बनने की बात चल रही थी। हालांकि मेरे विचार से यह कुछ दूर है। एक शेखी बघारी जाती है कि भारत दुनिया की पांचवीं (नहीं, एक मंत्री ने कहा चौथी) सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन याद रखें कि भारत अभी तक एक मध्यम आय वाला देश नहीं है। अमीर देश होने की तो बात ही छोड़ दें।
भारत के 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने की बात हो रही है।
लेकिन मेरे विचार से यह एक अर्थहीन लक्ष्य है। भारतीय अर्थव्यवस्था भले ही रेंगती रहे वह किसी दिन उस मुकाम तक पहुंचेगी (एक रॉल्स रॉयस की तरह एक साइकिल सवार को भी दिल्ली से आगरा ले जाएगी) यह आॢथक दृष्टि से अप्रासंगिक है। आय और सम्पत्ति का वितरण, विकास माडल की स्थिरता और पर्यावरण पर प्रभाव क्या प्रासंगिक और सार्थक है। उन उपायों से भारतीय विकास की कहानी नीचे की 50 प्रतिशत आबादी को विफल कर चुकी है।
नीचे के 50 प्रतिशत को राष्ट्रीय आय का केवल 13 प्रतिशत (चांसल, पिकेटी और अन्य) मिलता है और देश की सम्पत्ति का सिर्फ 3 प्रतिशत (ओ.एक्स.एफ.ए.एम.) रखता है। व्यावहारिक रूप से कोई सम्पत्ति कर नहीं है। कोई विरासत कर नहीं है। कृषि आय कर के दायरे से बाहर है। रिश्तेदारों को उपहार कर योग्य नहीं है। नतीजतन, अमीर व्यक्तियों को अपने परिवार के करीबी सदस्यों के बीच अपनी सम्पत्ति और आय का पुन: वितरण करना आसान लगता है।
नीचे का 50 प्रतिशत गरीब है क्योंकि उसके पास कम सम्पत्ति, कम आय और आगे बढऩे का कोई मौका नहीं है। लाखों गरीब लोग हैं लेकिन हम उन्हें नोटिस नहीं करने का नाटक करते हैं। आंख उन गरीब परिवारों को नजरअंदाज कर देती है जो पुल के नीचे मंडराते हैं। सड़कों पर पैंसिल या तौलिए या किताबों की पायरेटिड कापी बेचने वाले बच्चे हैं, वे गरीब हैं। 30 करोड़ दिहाड़ीदार मजदूर हैं, वे गरीब हैं। जिन वर्गों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता उनमें कुपोषण और भुखमरी है, वे लोग गरीब हैं। गरीब और निम्र मध्यमवर्ग की आबादी का 50 प्रतिशत हिस्सा नीचे है।
न्यू कोर निर्वाचन क्षेत्र : प्रचलित नीतियों के तहत देश की सम्पत्ति में वृद्धि काफी हद तक शीर्ष के 50 प्रतिशत लोगों तक जाती है। किसी भी राजनीतिक दल ने अपनी नीतियों को फिर से निर्धारित नहीं किया है ताकि नीचे के 50 प्रतिशत लोगों को लाभ हो। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के रायपुर अधिवेशन में, जो पिछले सप्ताह सम्पन्न हुआ, मेरी वकालत एक खुली, प्रतिस्पर्धी और उदार अर्थव्यवस्था (धन बनाने के लिए) के लिए पार्टी की प्रतिबद्धता जताना था।
शीर्ष 50 प्रतिशत विरोध करेंगे क्योंकि वे अब एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लाभ का बड़ा हिस्सा हासिल करने में सक्षम नहीं होंगे। राजनेताओं से प्रतिरोध होगा। जो कांग्रेस पार्टी को दिए गए मामूली धन को वापस ले लेंगे। उन राजनीतिक दलों के साथ स्थान के लिए धक्का-मुक्की होगी जिनके मुख्य निर्वाचन क्षेत्र जाति या धर्म या फिर संकीर्ण पहचान पर आधारित हैं।
साहसपूर्वक गले लगाओ : फिर भी मैं निवेदन करूंगा कि कांग्रेस पार्टी को अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र के रूप में सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी को साहसपूर्वक गले लगाना चाहिए। ऐसा करने के कई कारण हैं। सबसे पहले यह करना नैतिक रूप से सही काम है। दूसरा यह नीचे की 50 प्रतिशत की ऊर्जा को उजागर करेगा जो वर्तमान स्थिति में कम प्रदर्शन करते हैं। तीसरा यह अधिक लोगों को काम करने या काम की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा और नियोजित व्यक्तियों (और एल.एफ.पी.आर.) की संख्या में वृद्धि करेगा। चौथा, यह अधिक प्रतिस्पर्धा और दक्षता को बढ़ावा देगा।
पांचवां, न्यूनतम 50 प्रतिशत का पैमाना धर्मों, जातियों, भाषाओं, लिंग, क्षेत्रों और राज्यों को काट देगा और अंत में यह ङ्क्षहदुत्व के जहरीले ध्रुवीकरण (हिंदू धर्म के साथ भ्रमित नहीं होना) के लिए एक मार्क साबित हो सकता है। नीचे की 50 प्रतिशत आबादी उप-निवेशक शासक के तहत स्थितियों से बहुत ही भिन्न स्थितियों में नहीं रहती यह राजनीतिक दलों या विधानसभाओं और संसद में प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं करता है। नीचे की 50 प्रतिशत आबादी मान्यता प्राप्त होने और गले लगाने की प्रतीक्षा कर रही है और इसमें विजेता चुनने की क्षमता है। -पी. चिदम्बरम