दुर्भाग्यपूर्ण विवाद में फंस गया है गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के लिए कारीडोर खोलने का प्रस्ताव

Edited By Pardeep,Updated: 20 Sep, 2018 04:52 AM

proposal to open a carinder for gurudwara kartarpur sahib

गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर पाकिस्तान स्थित ऐतिहासिक एवं सर्वाधिक सम्मानीय गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के लिए कारीडोर खोलने का प्रस्ताव दुर्भाग्य से एक राजनीतिक विवाद में फंस गया है। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण...

गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर पाकिस्तान स्थित ऐतिहासिक एवं सर्वाधिक सम्मानीय गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के लिए कारीडोर खोलने का प्रस्ताव दुर्भाग्य से एक राजनीतिक विवाद में फंस गया है। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा द्वारा भारतीय पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू से अचानक किया गया अत्यंत स्वागतयोग्य खुलासा अब उग्र तथा कटु विवाद में उलझ गया है। 

यह सर्वविदित है कि पंजाबी, विशेषकर सिख पाकिस्तान में मात्र 3 कि.मी. अंदर स्थित गुरुद्वारा के लिए कारीडोर की मांग करते आ रहे हैं, जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 15 से अधिक वर्ष गुजारे थे। आपको यह देखने के लिए भारत की तरफ गुरुद्वारा के करीब सीमा पर जाना होगा कि कैसे गुरुद्वारा की एक झलक पाने के प्रयास में श्रद्धालु वहां एकत्र होते हैं। बहुत से लोग नम आंखों से लौटते हैं और अपने दिल में प्रार्थना करते हैं कि एक न एक दिन वे गुरुद्वारा में नतमस्तक हो सकें। महान गुरु का 550वां प्रकाशोत्सव श्रद्धालुओं के लिए गुरुद्वारा में प्रार्थना करने का एक शानदार अवसर था और पाकिस्तान द्वारा किए गए प्रस्ताव का सभी को स्वागत करना चाहिए था।

पाकिस्तान पहले ही गुरुपर्व के दौरान ननकाना साहिब गुरुद्वारा के लिए रास्ता खोल देता है और भारत भी दरियादिली दिखाते हुए अजमेर शरीफ दरगाह तथा मुसलमानों के लिए अन्य महत्वपूर्ण स्थानों हेतु पाकिस्तान से श्रद्धालुओं को आने देता है। पाकिस्तान द्वारा इस तरह का भाव प्रदर्शन न तो पाकिस्तानी सेना और न ही इसके शासकों को भारतीय जमीन पर बार-बार तथा लगातार हमलों के दोष से मुक्त नहीं करता। इस एक सुहृदयता की दोनों देशों के बीच अन्य मुद्दों से तुलना नहीं की जा सकती। भारत तथा पाकिस्तान के बीच सीमा जल्दबाजी में दो महीनों के समय में ब्रिटिश इंजीनियर मैकमोहन ने निर्धारित की थी, जो पहले कभी भी भारत नहीं आया था और न ही उसे सिखों, हिन्दुओं तथा मुसलमानों की भावनाओं बारे कोई अनुमान था। उसने महज रावी नदी पर एक रेखा खींच दी। कोई भी अनुमान लगा सकता है कि यदि उसे गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के महत्व बारे जानकारी होती तो वह उसे भारतीय क्षेत्र में शामिल कर लेता। 

खैर, जब से कृत्रिम रेखा खींची गई, तब से सीमा कभी भी स्थायी नहीं रही है। युद्धों के बाद इसमें कई बदलाव आते रहे हैं। जमीनों के एक शुरूआती शांतिपूर्ण अदल-बदल में शहीद भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव की समाधियां पाकिस्तान को भूमि के एक टुकड़े के बदले भारत को स्थानांतरित कर दी गईं। यहां तक कि हाल के समय में 1947 के बाद से विवादित जमीनों का समाधान करने के लिए भारत तथा बंगलादेश के बीच कई क्षेत्रों की अदला-बदली की गई। भारत को वास्तव में पाकिस्तान के साथ जमीन के संभावित अदल-बदल के लिए बातचीत करनी चाहिए ताकि गुरुद्वारा करतारपुर साहिब को भारत में शामिल किया जा सके। 

ऐसे प्रयास करने की बजाय शिरोमणि अकाली दल सिद्धू की आलोचना करने में सबसे आगे है। जहां सिद्धू तथा अकाली नेतृत्व के बीच दुश्मनी सर्वविदित है, वहीं उन्हें राष्ट्र विरोधी और यहां तक कि आई.एस.आई. का एजैंट कहना मूर्खतापूर्ण है। यहां तक कि अकाली दल की गठबंधन सांझीदार भाजपा ने भी कोई सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया। कुछ लीक हुई कहानियों, जो स्पष्ट तौर पर अकालियों की शह पर की गईं, के अनुसार सिद्धू की कथित तौर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा ‘खिंचाई’ की गई। ‘ङ्क्षखचाई’ किसलिए, यह स्पष्ट नहीं किया गया। 

अकाली, जो अपवित्रीकरण की घटनाओं और जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट के मद्देनजर वर्तमान में कठिन परिस्थिति में हैं, पूरे जोर से लड़ाई लड़ रहे हैं। वे सिखों के असली प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं। हालांकि उन्हें यह अवश्य एहसास होना चाहिए कि गुरुद्वारा करतारपुर साहिब उन लोगों की भावनाओं के भावनात्मक रूप से अत्यंत करीब है जिनका प्रतिनिधित्व करने का वे दावा करते हैं। यह उनके खुद के राजनीतिक भविष्य के हित में होगा कि वे पाकिस्तान के साथ यह मुद्दा उठाने के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाएं।-विपिन पब्बी

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