आर.बी.आई. विवाद : एक और संस्था की ‘स्वतंत्रता’ दाव पर

Edited By Pardeep,Updated: 25 Nov, 2018 03:40 AM

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पाठक /दर्शक विकल्प चुनने को लेकर दुविधा में हैं। यहां पूर्व निर्धारित भारत बनाम आस्ट्रेलिया क्रिकेट मैचों की सीरीज है। सी.बी.आई. बनाम सी.बी.आई. है और नवीनतम चीज सरकार बनाम रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आर.बी.आई.) है। प्रत्येक क्रिकेट खिलाड़ी को अपने हिस्से...

पाठक /दर्शक विकल्प चुनने को लेकर दुविधा में हैं। यहां पूर्व निर्धारित भारत बनाम आस्ट्रेलिया क्रिकेट मैचों की सीरीज है। सी.बी.आई. बनाम सी.बी.आई. है और नवीनतम चीज सरकार बनाम रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आर.बी.आई.) है। प्रत्येक क्रिकेट खिलाड़ी को अपने हिस्से की चोटें सहनी पड़ी हैं, सी.बी.आई. में टूटन है तथा आर.बी.आई. के मामले में, इसे बुरी तरह से झुका लिया गया है। आर.बी.आई. भारत का केन्द्रीय बैंक है। अधिकतर लोग देश के प्रशासन में केन्द्रीय बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका बारे जानते तथा समझते नहीं हैं। केन्द्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना है। रिजर्व बैंक आफ इंडिया एक्ट 1934 के उद्देश्य ‘बैंक नोट्स जारी करने का नियमन करना तथा वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के मद्देनजर आरक्षित कोष रखना’ हैं। 

आर.बी.आई. की कई भूमिकाएं
आर.बी.आई. के कई कार्य हैं। यह धन पैदा करता है। यह करंसी नोट जारी करता है। यह ब्याज दरें निर्धारित करता है। यह करंसी को बदलता है। यह उन लेन-देन को नियंत्रित करता है जिनमें विदेशी मुद्रा शामिल हो। यह मुद्रा भंडार रखता है। यह सरकार के कर्ज का प्रबंधन करता है। यह वाणिज्यिक बैंकों तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को लाइसैंस जारी करता तथा उनको विनियमित करता है। इसकी बहुत सी जिम्मेदारियां ‘मौद्रिक स्थिरता बनाए रखने’ के परम उद्देश्य से सीधे जुड़ी हैं। 

आर.बी.आई. की प्रमुख जिम्मेदारियां अन्य देशों के केन्द्रीय बैंकों की जिम्मेदारियों से भिन्न नहीं हैं, जहां एक खुली अर्थव्यवस्था है। अपनी जिम्मेदारियों का सक्षमतापूर्वक निर्वहन करने के लिए केन्द्रीय बैंक जिस आधार पर तैयार खड़ा है वह है ‘केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता’। यूरोपियन सैंट्रल बैंक (ई.सी.बी.)का चार्टर अन्य बातों के अलावा कहता है कि ‘न तो ई.सी.बी., न राष्ट्रीय केन्द्रीय बैंक और न ही उनकी निर्णय लेने वाली इकाइयों के किसी भी सदस्य को केन्द्रीय संस्थानों, इकाइयों, कार्यालयों अथवा एजैंसियों, किसी सदस्य राज्य की सरकार या अन्य किसी संगठन से निर्देश नहीं लेने चाहिएं।’ 

केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता का नियम अब वास्तव में एक अपरिवर्तनीय कानून बन गया है। इसलिए यद्यपि आर.बी.आई. का गठन एक संसदीय कानून के अंतर्गत किया गया था इसलिए आर.बी.आई. एक बोर्ड संचालित कम्पनी नहीं है और न ही उसके साथ वैसा व्यवहार किया जा सकता है। विश्व में हर कहीं केन्द्रीय बैंक तथा गवर्नर (या चेयरमैन) एक समान हैं। यह केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता का नियम है जिसे राजग सरकार ने चुनौती दी है। इस अधिनियम के अंतर्गत जो कुछ भी किया जाता है, वह कानून के दायरे में रहकर ही किया जाना चाहिए अन्यथा यह अधिकार से परे होगा। 

स्वतंत्रता को चुनौती 
19 नवम्बर 2018 को इस नियम की कड़ी परीक्षा ली गई और इसे तोड़ा गया। आर.बी.आई. के बोर्ड आफ डायरैक्टर्स की बैठक में चार निर्णय लिए गए थे: 
-बोर्ड ने ई.सी.एफ., सदस्यता तथा संदर्भ शर्तों की समीक्षा करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्णय किया, जिस बारे सरकार तथा आर.बी.आई. संयुक्त रूप से निर्णय लेंगे; 
-बोर्ड ने सलाह दी कि आर.बी.आई. को एम.एस.एम.ई. उधारकत्र्ताओं की दबावयुक्त सम्पतियों के पुनर्गठन की योजना पर विचार करना चाहिए जिसमें  25 करोड़ तक ऋण जोखिम हो; 
-बोर्ड ने सी.आर.ए.आर. 9 प्रतिशत पर रखने का निर्णय किया और पारगमनकाल एक वर्ष के लिए बढ़ाने पर सहमति जताई तथा 
-बोर्ड ने निर्णय किया कि पी.सी.ए. के अंतर्गत बैंकों के संबंध में मामले की समीक्षा आर.बी.आई. के बोर्ड आफ फाइनांशियल सुपरविजन द्वारा की जाएगी। 
मेरे विचार में यह एक विनाशकारी बैठक थी जिसने एक नया खतरनाक मार्ग प्रशस्त किया। चार मुद्दों में से तीन पर बोर्ड ने निर्णय लिए। एक बार जब सरकार ने अपनी बात मनवा ली तो उसने वास्तव में धारा 7 (निर्देश देना) अथवा धारा 58 (नियम बनाना) का इस्तेमाल करने से अपने कदम वापस खींच लिए। अब यह स्पष्ट हो गया है कि ऊंट ने अपनी नाक टैंट में घुसा दी है और अब अधिक समय नहीं जब यह पूरा भीतर होगा। 

मुझे ऐसा मानने में कोई संकोच नहीं कि बोर्ड के सर्वाधिक स्वतंत्र निदेशक अपने-अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित प्रोफैशनल्स अथवा सफल व्यवसायी हैं। यद्यपि उनमें से कोई भी एक केन्द्रीय बैंकर नहीं है तथा उनमें से किसी को भी केन्द्रीय बैंक के कार्यों की जानकारी नहीं है। इसके अतिरिक्त, बैठक के कई पहलुओं के हवाले से यह कहा जा सकता है कि स्वतंत्र निदेशक सरकार से स्वतंत्र नहीं हैं जिसने उन्हें नियुक्त किया है, वह जोशो-खरोश से सरकार की स्थिति का समर्थन करते दिखाई देते हैं। इसी बोर्ड ने देश को उस वक्त असफल बना दिया था जब इसने 8 नवम्बर 2016 को दब्बू बनकर नोटबंदी की पुष्टि कर दी थी। अब लगभग 2 वर्ष बाद एक बार फिर बोर्ड ने केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता का उल्लंघन करके देश को असफल किया है। 

जवाबदेह, अधीन नहीं
रेपो रेट अथवा सी.आर.आर. पर सहमत होना (अधिकतर) अथवा असहमत होना (कभी-कभार) वित्त मंत्री तथा गवर्नर का अधिकार है। मैं सरकार तथा गवर्नर के बीच तनाव के पक्ष में हूं तथा कई बार सरकार द्वारा अपनी निराशा व्यक्त करने के भी पक्ष में हूं। मैं इस पक्ष में हूं कि संसद गवर्नर को निरंतर बुलाकर एक समिति के समक्ष अपने कार्यों का स्पष्टीकरण देने को कहे। मैं इस पक्ष में हूं कि शिक्षाविद् तथा मीडिया निडर होकर गवर्नर के निर्णयों की आलोचना करें। यद्यपि मैं इस पक्ष में कतई नहीं हूं कि सरकार द्वारा नियुक्त निदेशक उन मामलों पर निर्णय लें जो केन्द्रीय बैंक/गवर्नर के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। जब भी वे ‘स्वतंत्रतापूर्वक’ ऐसा करते हैं या सरकार के ‘निर्देश’ सारहीन हों, तो दोनों ही मामलों में यह अतिक्रमण है और केन्द्रीय बैंक की स्वतंत्रता के मूलभूत नियम को नष्ट कर देगा। बोर्ड की 14 दिसम्बर 2018 को होने वाली अगली बैठक में सरकार निश्चित तौर पर इस बात पर जोर देगी कि बोर्ड अधिक मुद्दों पर निर्णय ले। यदि डा. उर्जित पटेल अपने स्टैंड पर टिके नहीं रहते तथा सरकार के लिए और जगह बना देते हैं तो एक अन्य संस्था, जो अधिक असुरक्षित बन जाएगी, ढह जाएगी। फिलहाल मैं प्रार्थना और प्रतीक्षा करूंगा।-पी. चिदम्बरम

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