राफेल का जिन्न सरकार को डराएगा

Edited By Updated: 11 Apr, 2021 02:11 AM

rafael s genie will scare the government

यादें बेहद कम हैं। आम लोगों के लिए हर दिन जीना एक चुनौती है। वे देश और उसके शासन के लिए पैदा हो रही चुनौतियों के लिए सचेत हैं। लेकिन बहुत लम्बे समय तक उन पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते हैं। वे संसद, विधानमंडल, न्यायपालिका, मुक्त मीडिया, सी. एंड...

यादें बेहद कम हैं। आम लोगों के लिए हर दिन जीना एक चुनौती है। वे देश और उसके शासन के लिए पैदा हो रही चुनौतियों के लिए सचेत हैं। लेकिन बहुत लम्बे समय तक उन पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते हैं। वे संसद, विधानमंडल, न्यायपालिका, मुक्त मीडिया, सी. एंड ए.जी. तथा विपक्षी राजनीतिक पार्टियों जैसे संस्थानों पर भरोसा करते हैं, जिनको उन्होंने इन चुनौतियों से निपटने के लिए स्थापित किया था। जब यह संस्थान अक्षमता या मिलीभगत या फिर भय के कारण अलग या सामूहिक रूप से असफल होते हैं तो लोग हार मान लेते हैं औरआगे बढ़ जाते हैं। ऐसा ही राफेल विमान मामले में हुआ।

4 संस्थान विफल
4 संस्थानों को इस मामले की छानबीन करने का अवसर मिला था। पहला मीडिया था। यहां पर कई प्रश्न उठाने और जवाब मांगने के लिए पर्याप्त सामग्री थी। मीडिया के एक प्रमुख वर्ग ने इन सवालों को उठाने के लिए इंकार कर दिया। इसके विपरीत कई मीडिया संगठनों ने सरकार के लिखित वक्तव्य को प्रकाशित किया क्योंकि वे प्रमाणिक समाचार थे। अपने 7 अक्तूबर 2018 के आलेख में मैंने वित्त मंत्री के लिए 10 सवाल उठाए थे उनमें से कुछ यह निम्नलिखित हैं :

1. भारत और फ्रांस के बीच समझौता ज्ञापन रद्द हुआ जिसके तहत भारत 126 दोहरे इंजन वाले बहु-उद्देश्यीय भूमिका वाले राफेल लड़ाकू विमान खरीदेगा। केवल 36 विमान खरीदने के लिए एक नए समझौते में प्रवेश करने के लिए निर्णय लिया गया।
2. क्या यह सही है कि नए समझौते के तहत प्रति लड़ाकू विमान की कीमत रद्द हुए समझौते के अनुरूप 526.10 करोड़ रुपए की कीमत के विपरीत 1070 करोड़ रुपए है (जैसा कि डॉसाल्ट ने खुलासा किया)।
3. यदि पहला विमान सितम्बर 2019 में (नए समझौते के 4 साल बाद) और अंतिम 2022 में वितरित किया जाएगा तब सरकार आपातकालीन खरीद के रूप में लेन-देन को कैसे सही ठहरातीहै?
4. एच.ए.एल. को तकनीक हस्तांतरित करने का समझौता खत्म कर दिया गया?
5. क्या सरकार ने समायोजित करने वाले सहयोगी का कोई नाम सुझाया, यदि नहीं तो सरकार ने एच.ए.एल. का नाम क्यों नहीं सुझाया?

इन और ऐसे अन्य सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला है। कुछ अपवादों के साथ मीडिया ने देश को विफल बना दिया। दूसरा, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका में महत्वपूर्ण सवालों की जांच करने में असमर्थता व्यक्त की। उदाहरण के लिए, न्यायालय ने कीमत या तकनीकी उपयुक्तता से संबंधित मामलों की जांच करने से इंकार कर दिया। इसके अलावा भारतीय वायु सेना को जिन 126 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता थी, उसकी बजाय 36 विमान खरीदने के निर्णय की जांच करने से भी इंकार कर दिया।

इसके साथ-साथ न्यायालय ने सरकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत एक नोट की सामग्री और सरकार की ‘मौखिक विनती’ को भी स्वीकार कर लिया। न्यायालय को यह मानते हुए गुमराह किया गया था कि सी. एंड ए.जी. की एक रिपोर्ट वहां थी जब उनमें से कोई भी संसद या न्यायालय के समक्ष उस दिन तक रखी नहीं गई थी। निर्णय की जय-जयकार करते हुए सरकार ने दावा किया कि उसकी स्थिति तब खराब हो गई थी जब सच्चाई यह थी कि न्यायालय द्वारा महत्वपूर्ण मुद्दों की जांच नहीं की गई थी।

तीसरा यह कि संसद पार्टी रेखाओं पर बंटी हुई थी। सरकार के कार्यों में संसदीय पर्यवेक्षण का उपयोग करने में असफल हुई। संसद अकेले पूछ सकती थी और सच्चाई को खोज सकती थी कि डॉसाल्ट तथा एच.ए.एल. के बीच 13 मार्च 2014 को तकनीक के हस्तांतरण और कार्य हिस्सेदारी बांटने के समझौते का क्यों त्याग कर दिया गया, जबकि 95 प्रतिशत वार्ता पूरी हो चुकी थी। यदि नए समझौते के तहत कीमत 9-20 प्रतिशत तक सस्ती थी तो डॉसाल्ट के 126 विमानों को बेचने का प्रस्ताव क्यों नहीं स्वीकार किया गया और एच.ए.एल. के मामले को समायोजित सहयोगी के तौर पर चुनने के लिए सरकार ने कदम आगे क्यों नहीं बढ़ाया। सरकार के क्रूर बहुमत ने संसदीय निगरानी को भंग कर दिया। चौथा सी. एंड ए.जी. द्वारा सबसे अधिक असफलता थी।

33 पन्नों की रिपोर्ट में सी. एंड ए.जी. लेन-देन पर एक गहरा कफन पहना दिया गया और सच्चाई के साथ मामले के तथ्यों को दफन कर दिया। सी. एंड ए.जी. के लिए यह अभूतपूर्व बात है कि इस प्राधिकरण ने माना कि सरकार ने सुरक्षा चिंताओं के आधार पर एम.एम.आर.सी.ए. मामले में वाणिज्यिक विवरणों को कम करने के लिए अपना रुख दोहराया है। ऐसा निषेध और विचलन बोफार्स या किसी अन्य मामले में नहीं दिखाया गया। इसके नतीजे में 126 से लेकर 141 पन्नों की रिपोर्ट औसत बुद्धि के व्यक्ति के कोई मतलब नहीं रखती। विशेष रूप से पन्ना संख्या 131 का टेबल 3 और पन्ना संख्या 133 का टेबल 4 केवल अस्पष्ट थे।

फिर भी सी. एंड ए.जी. को सरकार के उन दावों को रद्द करने के लिए बाध्य होना पड़ा जो इस बात को लेकर था कि नया सौदा 9 प्रतिशत (प्रति लड़ाकू विमान) तक सस्ता है। सी. एंड ए.जी. के पास किसी भी अन्य प्राधिकरण की तुलना में व्यापक विवरण था लेकिन स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण ने देश को बुरी तरह से विफल कर दिया।

परेशान करने वाले खुलासे
मुझे याद हो सकता है कि नया समझौता असामान्य रूप से अनिवार्य भ्रष्टाचार रोधी धाराओं को समाप्त कर देगा। क्या उस छूट के पीछे कोई छिपा हुआ उद्देश्य था? हमें पता नहीं है लेकिन अनुपस्थित खंड सरकार को परेशान करने के लिए आए हैं। फ्रैंच मीडिया संगठन ‘मीडिया पार्ट’ ने तीन हिस्सों वाली जांच में पाया कि फ्रांस की ए.एफ.ए. एजैंसी ने एक प्रमाण प्राप्त किया है कि डॉसाल्ट एक जाने-माने मध्यस्थ जोकि भारत में एक अन्य डिफैंस डील के संबंध में जांच झेल रहा है, को 1 मिलियन यूरो अदा करने के लिए राजी हुआ है और वास्तव में एक भारतीय कम्पनी डैफसिस सॉल्यूशंस को 508,925 यूरो अदा किए हैं। मीडिया पार्ट कहानी ने यह भी खुलासा किया है कि भारत और फ्रांसीसी जांचकत्र्ताओं ने समझौता सूचना की बड़ी डील को खोजा है मगर यह मामला दोनों देशों में दफन हो गया था। राफेल डील कब्र से खोदी गई है और इसका जिन्न सरकार को डराएगा।-पी. चिदम्बरम

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