राकेश टिकैत : ‘कांस्टेबल से लेकर किसान नेता तक’

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2021 05:17 AM

rakesh tikait from constable to farmer leader

महीनों से सरकारी प्रवक्ता तथा मीडिया का एक वर्ग कृषि कानूनों के खिलाफ लडऩे वाली 3 दर्जन से ज्यादा कृषि यूनियनों के संघ के बीच में से एक नेता की तलाश में थे। 28 जनवरी की रात को उन्होंने अंतत: राकेश टिकैत जोकि भारतीय किसान यूनियन

महीनों से सरकारी प्रवक्ता तथा मीडिया का एक वर्ग कृषि कानूनों के खिलाफ लडऩे वाली 3 दर्जन से ज्यादा कृषि यूनियनों के संघ के बीच में से एक नेता की तलाश में थे। 28 जनवरी की रात को उन्होंने अंतत: राकेश टिकैत जोकि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, के रूप में नेता पा लिया।

टिकैत के मीडिया के समक्ष आंसू छलके तो उन्होंने कहा कि यहां पर किसानों के खिलाफ एक षड्यंत्र है। उनके आलोचक उनकी इस संवेदनशील भड़ास को एक राजनीतिक कदम जरूर करार देंगे मगर महिन्द्र सिंह टिकैत जोकि एक मेधावी किसान नेता थे जिन्होंने 1980 के दशक के अंत में भारतीय किसान यूनियन (बी.के.यू.) को पुनर्जीवित किया, के दूसरे बेटे हैं। महिन्द्र सिंह टिकैत ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुजफ्फरनगर तथा मेरठ में प्रदर्शन किए थे। राकेश टिकैत ने अपने आंसुओं तथा दृढ़ता से गाजीपुर सीमा प्रदर्शन स्थल पर मर रहे किसान आंदोलन में एक नई जान फूंक दी है। 

28 जनवरी तक बी.के.यू. मात्र सिंघू तथा टिकरी बार्डर पर एक समर्थक वाली भूमिका निभा रहा था। वास्तव में 28 दिसम्बर को गाजीपुर सीमा के यू.पी. गेट पर टिकैत पहली मर्तबा उभरे तो यह कयास लगाए जा रहे थे कि सत्ताधारी पार्टी उनका इस्तेमाल पंजाब तथा हरियाणा के किसानों पर निगरानी रखने के लिए  करेगी। यहां तक कि अखिल भारतीय किसान संघर्ष कमेटी के लोगों ने उनकी प्रतिबद्धता में विश्वास करने के लिए समय लिया। 

पिछले वीरवार को एक नाटकीय मोड़ के बाद गाजीपुर सीमा पर किसानों के समर्थन में एक गुरुत्वाकर्षण केंद्र बन गया। एक कांस्टेबल से किसान नेता बने राकेश टिकैत (51) एक हीरो बनकर उभरे हैं। मीडिया में कुछ इस तरह की खबरें भी थीं कि टिकैत ने भाजपा के लिए वोट दिया था मगर पार्टी उनके वायदों के मुताबिक खरी नहीं उतरी। प्रदर्शन के पहले दिनों के दौरान उनकी चिंता गन्ने की फसल की बाकी रहती अदायगी, डीजल की बढ़ती कीमतों तथा कृषि कानूनों की तरह बिजली की भी थी। एक समाचार पत्र में पिछले माह दिसम्बर में उन्होंने कहा कि ‘‘सरकार कृषि का निजीकरण करना चाहती है और किसानों को एक मजदूर की तरह देखना चाहती है।’’ 

एक विवाद में वह तब उलझे जब उन्होंने मंदिर ट्रस्टों को किसान प्रदर्शन के लिए दान देने को कहा और ऐसा वह कांवड़ यात्रा के दौरान भी कर चुके थे। स्थानीय भाजपा नेता तथा गाजियाबाद प्रशासन यह महसूस करने में असफल रहा कि राकेश टिकैत का राजनीतिक जोड़ बेशक कम हुआ होगा मगर महिन्द्र सिंह टिकैत तथा चौधरी चरण सिंह के वंशज अभी भी पश्चिमी यू.पी. में सदृढ़ दिखाई दे रहे हैं और उनका रुतबा कायम है। 

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद दोनों परिवारों का गठजोड़ तुच्छ हो गया था मगर गत वीरवार को चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह तथा राष्ट्रीय लोकदल के नेता वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने राकेश टिकैत को फोन किया और कहा कि वह किसान नेताओं के लिए उनके साथ हैं। टिकैत के आंसू वाले वीडियो तथा रालौद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के ट्वीट यू.पी., हरियाणा तथा राजस्थान  के गन्ना क्षेत्रों में आग की तरह फैल गए। उनके आंसुओं को किसानों के आत्मसम्मान की बेइज्जती के तौर पर देखा गया और इसके बाद मुजफ्फरनगर तथा मथुरा में बी.के.यू. द्वारा बुलाई गई किसानों की ‘महा पंचायत’ में एक भारी भीड़ उमड़ी। 

विशेष तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में राकेश टिकैत किसानों के निर्विवाद नेता के रूप में उभरे। उनके प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के वी.एम. सिंह के प्रदर्शन स्थल को छोडऩे के बाद गणतंत्र दिवस की घटना के लिए टिकैत को जिम्मेदार ठहराया गया। टिकैत ने यह चेतावनी दी कि यह घटना सिख समुदाय को बदनाम करने के लिए रचाई गई। उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर से एक प्रसिद्ध किसान नेता सेवक सिंह सिद्धू का कहना है कि जैसे ही इस घटना का पता चला तो वह गाजीपुर में पहुंच गए। बुलंद शहर के एक किसान शमीन हुसैन जो टिकैत को पानी पिलाने के लिए प्रदर्शनस्थल पर पहुंचे थे, का कहना है कि उन्हें अब जाट-मुसलमानों के बीच मेलजोल की संभावना दिख रही है जो मुजफ्फरनगर दंगों से पहले थी। दिलचस्प बात यह है कि दंगों के बाद टिकैत बंधु राकेश तथा नरेश का झुकाव भाजपा की तरफ हो गया। 

2014 लोकसभा चुनावों से पूर्व  वरिष्ठ भाजपा नेता तथा केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने राकेश टिकैत के कांग्रेस सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों को अपना समर्थन दिया था। हालांकि राकेश ने अजीत सिंह के साथ अपने रिश्ते पूरी तरह से खत्म नहीं किए। उन्होंने 2014 के चुनाव में अमरोहा से रालौद के टिकट पर चुनाव लड़ा और चौथे स्थान पर रहे। 

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