ट्रक ड्राइवरों के साथ सरकार की जिम्मेदारी भी तय हो

Edited By ,Updated: 08 Jan, 2024 05:50 AM

responsibility of govt should also be fixed along with truck drivers

नए कानून में ट्रक ड्राइवरों से जुड़ी 3 बातें दिलचस्प हैं। बीमार ड्राइवरों के लाइसैंस को कैंसिल करके, कुशल और स्वस्थ ड्राइवरों को बेहतर वेतन और नियमित रोजगार दिलवाने की बजाय केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ए.सी. केबिन को जरूरी करने का फार्मूला बता रहे...

नए कानून में ट्रक ड्राइवरों से जुड़ी 3 बातें दिलचस्प हैं। बीमार ड्राइवरों के लाइसैंस को कैंसिल करके, कुशल और स्वस्थ ड्राइवरों को बेहतर वेतन और नियमित रोजगार दिलवाने की बजाय केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ए.सी. केबिन को जरूरी करने का फार्मूला बता रहे हैं। दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री रोड एक्सीडैंट में पीड़ितों के फ्री इलाज के ‘फरिश्ते योजना’ को बंद करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फंस गए हैं। 

तीसरी तरफ मध्यप्रदेश में ड्राइवर की औकात बताने वाले कलैक्टर तो नप गए, लेकिन सख्त कानूनों में बदलावों को किए बगैर इन्हें 26 जनवरी गणतंत्र दिवस से लागू करने की खबर आ रही है। 1990 के पहले ट्रकों की संख्या से 30 फीसदी ज्यादा ड्राइवर थे। लेकिन अब 25 फीसदी ट्रकों के लिए ड्राइवर नहीं हैं। 60 फीसदी ड्राइवर 15 साल के भीतर ड्राइविंग छोड़ देते हैं। नए कानूनों को राज्यों से जरूरी परामर्श के बगैर बनाया गया है, इसलिए नए कानूनों के मनमाने अमल पर ड्राइवरों और ट्रक मालिकों को कई तरह के डर हैं। 

दिल्ली मैट्रो में एक महिला की साड़ी फंसने से मौत के मामले में दिल्ली पुलिस ने अंजान लोगों के खिलाफ धारा 279 और 304-ए के तहत जमानती मामला दर्ज किया है। पिछले साल बालासोर ट्रेन दुर्घटना में लगभग 300 लोगों की मौत और 1200 लोग घायल होने के बावजूद सरकार की आपराधिक जवाबदेही तय नहीं हुई। उस मामले से जुड़ी पी.आई.एल. (जनहित याचिका) में सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे विभाग से सभी सुरक्षा उपायों का ब्यौरा मांगा है। 

सड़क परिवहन का भारत की जी.डी.पी. में 3.6 फीसदी योगदान है। लेकिन देश में 85 फीसदी यात्री और 70 फीसदी माल का ट्रैफिक सड़क परिवहन से होता है। पिछले साल सड़कों में 4.46 लाख दुर्घटना के मामले थे, जिनमें लगभग 1.71 लाख लोगों की मौत हो गई। इन दुर्घटनाओं में सिर्फ 9 फीसदी मामले ट्रक ड्राइवरों के थे। दूसरे आंकड़ों से ट्रक ड्राइवरों से हो रही दुर्घटनाओं की गंभीरता नजर आती है। नैशनल हाईवे देश की सड़कों का 2.10 फीसदी नैटवर्क है, जहां 30.5 फीसदी एक्सीडैंट और 35 फीसदी मौतें होती हैं। हाईवे पर दुर्घटना के बाद ट्रक ड्राइवर अगर भाग जाए तो घायल व्यक्ति की इलाज के बगैर मौत हो जाती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2022 में हुई दुर्घटनाओं में ट्रक और लॉरी में सवार 10584 लोगों की जान गई। इसलिए ड्राइवरों की सुरक्षा के लिहाज से भी नए कानूनों की मंशा को ठीक बताया जा रहा है। 

कुछ ड्राइवर नशे और नींद की खुमारी में गाड़ी चलाकर एक्सीडैंट कर देते हैं। लेकिन खस्ताहाल सड़क, आवारा जानवर और अतिक्रमण की वजह से अनेक एक्सीडैंट होने के बावजूद बस और ट्रक के ड्राइवरों को दंडित करने का चलन है। अनियमित रोजगार, काम और वेतन की खराब स्थितियों में काम करने वाले ड्राइवरों से एक्सीडैंट होने पर, उनका पूरा जीवन जेल और कोर्ट कचहरी में खप सकता है।

कैशलैस इलाज और तुरंत मुआवजा मिले : हिट एंड रन यानि गाड़ी से किसी को टक्कर मारकर भाग जाना। नए कानूनों में अगर ड्राइवर पुलिस या मैजिस्ट्रेट को सूचना देता है तो 5 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन ड्राइवर एक्सीडैंट के बाद मौके से फरार हो जाए तो ऐसे मौत के मामलों में 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। 3 साल से अधिक सजा होने के कारण दोनों ही धाराएं गैर-जमानती हैं, जिनमें थाने से ड्राइवर को जमानत नहीं मिलेगी। नए कानूनों में ड्राइवर के भागने पर सजा को दोगुनी करने के बावजूद मोटर वाहन कानून 1988 और नियमों में जरूरी बदलाव नहीं किए गए। इसलिए राज्यों से परामर्श करके गलत रजिस्ट्रेशन, बगैर ड्राइविंग लाइसैंस और शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए दंड बढ़ाना चाहिए। नए साल में दिल्ली में नशा करके गाड़ी चलाने वालों की संख्या में 15 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है। इसलिए शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ जुर्माने के साथ सख्त कानून में एफ.आई.आर. दर्ज होना चाहिए। 

ड्राइवरों के लिए चल रहे ट्रेनिंग स्कूलों की संख्या काफी कम है और अधिकांश इंस्टीच्यूट फिटनैस, लाइसैंस और रिन्यूवल के जुगाड़ का सैंटर बन गए हैं। सामाजिक हकीकत को दरकिनार करके सख्त बनाने से भ्रष्टाचार और उत्पीडऩ बढ़ता है। कानूनों में सुधारों के साथ सी.आर.पी.सी. के नए कानूनों में व्यावहारिक बदलाव की जरूरत है। एक्सीडैंट के बाद पहला फोकस दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को इलाज और मुआवजे का होना चाहिए। सभी ट्रक मालिक थर्ड पार्टी के साथ ड्राइवरों का पर्याप्त बीमा कराएं। पीड़ित व्यक्ति को इंश्योरैंस कंपनी से कैशलैस उपचार के साथ 48 घंटे के भीतर मुआवजा मिलने के लिए मोटर व्हीकल कानून में नियम बनें तो ड्राइवरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में कमी आएगी। दुर्घटना के बाद सी.सी.टी.वी. फुटेज और चश्मदीद गवाहों के प्राथमिक बयानों के बाद ही ड्राइवर के खिलाफ गैर-इरातन हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए। 

गाडि़यों की खस्ताहाली, खराब सड़कों या आवारा जानवरों की वजह से दुर्घटना होने पर ड्राइवर के साथ ट्रक मालिक और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भी एफ.आई.आर. दर्ज होनी चाहिए। ड्राइवरों के अनुसार पुलिसिया भ्रष्टाचार और अदालतों में लम्बे मुकद्दमों के सिस्टम को ठीक किए बगैर सख्त कानूनों को लागू करने पर  ट्रकों के साथ अर्थव्यवस्था के कई सैक्टरों का विकास बाधित हो सकता है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 

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