पैंशन की अधिकतम सीमा तय करने का सही वक्त

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2022 06:02 AM

right time to fix pension ceiling

अग्निपथ स्कीम में अग्निवीरों के लिए 2 ही कमियां बताई गई थीं- एक, चार साल की नौकरी और दो, कोई पैंशन या अतिरिक्त मैडीकल इत्यादि लाभ नहीं। लेकिन अग्निपथ के पीछे सरकार के काम

अग्निपथ स्कीम में अग्निवीरों के लिए 2 ही कमियां बताई गई थीं- एक, चार साल की नौकरी और दो, कोई पैंशन या अतिरिक्त मैडीकल इत्यादि लाभ नहीं। लेकिन अग्निपथ के पीछे सरकार के काम करने की सबसे बड़ी वजहों में से एक थी, लगातार बढ़ता पैंशन का बोझ, जो रक्षा मंत्रालय के बजट को भारी-भरकम होने के बाद भी सिकोड़ देता है। रक्षा बजट का 20 फीसदी हिस्सा सिर्फ पैंशन की मद में जाता है, यानी लगभग 1 लाख करोड़ रुपए। साथ ही पिछले 10 वर्षों (2011 से 2021) के दौरान रक्षा मंत्रालय के बजट में से पैंंशन, भत्तों और वेतन का हिस्सा 50 फीसदी से भी कम से बढ़ते-बढ़ते 60 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यानी हथियार खरीद और आधुनिकीकरण के लिए अपेक्षित रकम नहीं बच पाती। 

अब यह बात भी सामने आई कि आखिर पैंशन की काट सिर्फ अग्निवीरों पर ही क्यों। सवाल उठाया गया कि विधायकों और सांसदों को 7-8 पैंशनें क्यों मिलती हैं। यह बात भी सही है और इस पर केंद्र की मोदी सरकार ने कुछ बड़े कदम भी उठाए हैं। संसद की संयुक्त समिति ने इसी वर्ष मई अंत में एक अधिसूचना जारी कर सांसदों को अब सिर्फ एक पैंशन पर गुजारा करने का रास्ता साफ कर दिया। आम तौर पर हमारे सांसदों को 3 लाख 30 हजार रुपए हर महीने वेतन और भत्तों के रूप में मिलते हैं। 

कुछ सुविधाओं की कीमत बाजार भाव से जोड़ी जाए तो यह रकम और भी बढ़ जाती है। यूं तो पूर्व सांसदों और उनके आश्रितों के मद में सरकार 2 साल पहले तक 70 करोड़ रुपए खर्च करती थी, जो अब अनुमान है कि खर्च 90 करोड़ रुपए हो गया होगा। इसी तरह विभिन्न राज्यों में पूर्व विधायकों को दी जाने वाली पैंशन पर होने वाला खर्च 800 करोड़ रुपए अनुमानित है। कोई नेता अगर एक दिन के लिए भी विधायक या सांसद रह जाए तो उसे ज्यादातर जगह जीवन भर पैंशन देने का प्रावधान देश में है। इतना ही नहीं, उसकी मौत के बाद उसकी पत्नी को यह पैंशन मिलती है। 

पंजाब के 5 बार मुख्यमंत्री और 10 बार विधायक रहे वरिष्ठ अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल के बारे में इस साल के शुरू में राज्य विधानसभा के सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट आई थी कि उन्हें हर महीने 6 लाख रुपए से ज्यादा पैंशन मिलती है, जो कि एक विधायक की पैंंशन से 8-10 गुणा ज्यादा है। पंजाब में 5 साल का एक कार्यकाल पूरा करने वाले विधायक को करीब 75100 रुपए पैंशन हर माह मिलती रही है, जबकि कार्यकाल अधूरा रहने पर 50100 रुपए प्रति माह मिलते हैं।

इसके अलावा 80 साल की उम्र पार करने पर पैंशन में 10 फीसदी की बढ़ौतरी होती है तथा 90 साल की उम्र पार करने पर 5 फीसदी की और वृद्धि होती है। प्रकाश सिंह बादल 94 साल के हैं। मीडिया में इस बारे में सुर्खियां बनने के बाद 17 मार्च, 2022 को प्रकाश सिंह बादल की ओर से एक ट्वीट कर पंजाब सरकार और विधानसभा स्पीकर से अनुरोध किया गया कि वह पूर्व विधायक के रूप में उन्हें मिलने वाली सारी पैंशन छोड़ रहे हैं और इसका इस्तेमाल लोगों के हितों के लिए किया जाए। इसके बाद 25 मार्च, 2022 को पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने विधायकों को सिर्फ एक कार्यकाल की पैंशन देने तथा परिवार को मिलने वाले भत्ते में भी कटौती का क्रांतिकारी फैसला लेने में ज्यादा देरी नहीं की। अनुमान लगाया कि इस फैसले से पंजाब सरकार को हर साल 80 करोड़ रुपए की बचत होगी।

इसके बाद हरियाणा में भी एक विधायक, एक कार्यकाल की पैंशन की मांग उठने लगी। खासकर आम आदमी पार्टी से जुड़े नेता इस मांग को उठा रहे थे, मगर 22 मई, 2022 को चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने स्पष्ट कर दिया कि पैंशन बंद नहीं होगी, जबकि बीते साल यह खट्टर ही थे जिन्होंने यह घोषणा की थी कि विधायकों की पैंशन में कटौती की जा सकती है। हालांकि हरियाणा में ‘आप’ के कुछ नेताओं ने अपनी अतिरिक्त पैंशन छोडऩे का ऐलान किया। कांग्रेस से ‘आप’ में आए पूर्व मंत्री निर्मल सिंह ने अपनी 3 पैंशन छोडऩे की घोषणा की। एक अनुमान के अनुसार हरियाणा सरकार हर महीने 30 करोड़ रुपए से ज्यादा हर महीने पूर्व विधायकों और उनके परिवारों को पैंशन के रूप में देती है। 

उत्तर प्रदेश में मार्च 2018 में विधायकों की पैंशन और भत्ते बढ़ाने का विधेयक पास किया गया। इसमें पूर्व विधायकों की मासिक पैंशन 8 गुणा बढ़ाकर 1000 रुपए से 8000 रुपए मासिक कर दी गई। रेल यात्रा कूपन की वार्षिक राशि 50,000 रुपए से बढ़ाकर 60,000 रुपए कर दी गई। सितम्बर 2021 में तमिलनाडु विधानसभा में भी विधायकों के पैंशन-भत्ते बढ़ाने का विधेयक पारित किया गया। पूर्व विधायकों की पैंशन 20,000 रुपए मासिक से बढ़ाकर 25,000 रुपए मासिक कर दी गई। 

राजस्थान सरकार पूर्व विधायकों और उनके परिवारों को पैंशन देने पर हर साल 37 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर रही है। मध्य प्रदेश में पूर्व विधायक को 35,000 रुपए मासिक पैंशन मिलती है। वैसे  पंजाब में मान सरकार के पैंशन कटौती के  बाद अब अन्य राज्य सरकारों पर दबाव बढ़ रहा है। मगर ज्यादातर सरकारें इस दिशा में कोई फैसला लेने से कतरा रही हैं। हालांकि गुजरात एक ऐसा राज्य है, जहां पूर्व विधायकों को पैंशन नहीं मिलती, मगर वे लगातार मांग करते रहते हैं, कुछ अदालत तक का भी दरवाजा खटखटा चुके हैं। सितम्बर 2001 में गुजरात विधानसभा में एक विधेयक पारित कर पूर्व विधायकों की पैंशन बंद कर दी गई थी। तब केशुभाई पटेल राज्य के मुख्यमंत्री थे। 

केंद्र सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों और उपराष्ट्रपतियों को भी पैंशन के अलावा रहने के लिए बड़े भवनों के अतिरिक्त कई बड़ी सुविधाएं देने पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री तक की बात तो लोगों को समझ में आ रही है। उन्हें सुरक्षा की भी जरूरत हो सकती है। पूर्व प्रधानमंत्रियों से विदेशी राजनयिक भी मिलने आते रहे हैं पर यह सुविधा पूर्व राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को क्यों, यह सवाल भी उठ रहा है। लेकिन अब अग्निवीरों के बहाने देश में एक बड़ी बहस खड़ी हो गई है कि सरकार के पूर्व कर्मचारियों को पैंशन देनी तो चाहिए पर कितनी? क्या उस पर ऊपरी सीमा कुछ होनी चाहिए। यानी कोई कैप लगाना चाहिए? कहने को अधिकतम पैंशन सवा लाख है, लेकिन मंहगाई भत्ता मिलाकर यह ढाई लाख भी हो जाती है, मैडीकल सुविधा अलग। 

अब केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों का पैंशन पर खर्च 2,08,000 करोड़ तक हो चुका है। यह आंकड़ा 3 साल पहले का है, यानी 2018-19 का। तब केंद्र में 52 लाख पैंशनर्स थे। वैसे नेताओं ने एक और पिटारा खोल दिया है, पुरानी पैंशन व्यवस्था लागू करने का, जो 2004 में खत्म कर दी गई थी। पहले ही सभी राज्य पैंशन बिल पर 4 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। पैंशन पर अधिकतम सीमा की जरूरत इसलिए भी बताई जा रही है कि यह माना जाता है कि नेताओं समेत वरिष्ठ पदों पर बैठे कर्मचारी जब सेवानिवृत्त होते हैं तो अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुके होते हैं। मैडीकल की जरूरतों के लिए इंश्योरैंस या सरकारी सुविधाएं और बचत होती ही है। तो क्या यह सही वक्त नहीं है कि नेताओं और कर्मचारियों समेत किसी की भी पैंशन पर ऊपरी सीमा लगे। लेकिन यह भी सच है कि किसी भी सरकार के लिए यह काम जोखिम भरा ही है, आसान नहीं।-अकु श्रीवास्तव
 

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