साम्प्रदायिक नजरिए से किए जाते दंगे व आतंकवाद मानवता के विरुद्ध

Edited By Pardeep,Updated: 30 Sep, 2018 04:01 AM

riots and terrorism done from communal perspective against humanity

राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) तथा भाजपा नेता एक सोची-समझी योजना के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व भारतीय जनता का सारा ध्यान विभाजनकारी, साम्प्रदायिक तथा भड़काऊ मुद्दों पर केन्द्रित करना चाहते हैं ताकि वे मोदी सरकार द्वारा अपने...

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) तथा भाजपा नेता एक सोची-समझी योजना के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व भारतीय जनता का सारा ध्यान विभाजनकारी, साम्प्रदायिक तथा भड़काऊ मुद्दों पर केन्द्रित करना चाहते हैं ताकि वे मोदी सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान की गई हर तरह की जुमलेबाजी तथा धोखेबाजी को भुला कर एक बार फिर भाजपा के हाथों में सत्ता सौंप दें। 

कुछ टी.वी. चैनलों पर तीन तलाक, राम मंदिर, आतंकवाद, लव जेहाद, गौरक्षा, आर.एस.एस. की विचारधारा, जम्मू-कश्मीर का मुद्दा, पाकिस्तान से संबंधित गिने-चुने प्रश्रों बारे बहस का संचालन इस तरह से करवाया जाता है कि इसका अंतिम प्रभाव संघ की साम्प्रदायिक विचारधारा तथा अंध राष्ट्रवाद के पक्ष में जाए। बहस को आयोजित करने वाला एंकर किसी गम्भीर संवाद को निष्पक्षता से निभाने वाले सुहृदय व्यक्ति की बजाय संघ का स्वयंसेवक अधिक लगता है। 

उपरोक्त मुद्दे जिन पर टी.वी. शो में रात को विचार किया जाता है, उनसे भिन्न अगली सुबह कई दूसरे टी.वी. चैनलों तथा प्रमुख समाचार पत्रों की मुख्य सुॢखयां महिलाओं तथा बच्चियों से हो रहे दुष्कर्मों, कर्ज के बोझ तले दबे मजदूरों-किसानों की आत्महत्याओं, बेरोजगारी के मारे नवयुवक-युवतियों की मौतों अथवा असामाजिक कार्यों में लिप्त घटनाएं, भीड़ तंत्र, पैट्रोल व डीजल की आसमान चढ़ रही कीमतों, उचित इलाज तथा आक्सीजन के अभाव में मौत के मुंह में जा रहे फूलों जैसे नवजात बच्चों की गिनती से संबंधित होती हैं। इसके अतिरिक्त धार्मिक अल्पसंख्यकों से हो रहे अत्याचारों, दलितों के विरुद्ध रौंगटे खड़े करने वाले सामाजिक अत्याचार की अमुक कहानियां तथा संघर्ष कर रहे लोगों से निपटने के लिए बरसती लाठियों के समाचार समाज में समाए दर्द को और उभार कर पेश करते हैं। 

जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह आगामी लोकसभा चुनावों में जीत तो क्या, पूरे 50 वर्षों तक देश में संघ की सत्ता कायम रहने का दावा करते हैं तो ऐसा लगता है कि उन्हें पहली किस्म की टी.वी. पर हो रही बहसों के मुद्दों का लोगों के मनों पर पडऩे वाले मारक प्रभाव बारे पूरा भरोसा है जो भारतीय समाज की एकता तथा प्रेम को खंडित करके धर्म तथा जाति के आधार पर बांट सकता है। जितना अधिक प्रचार साम्प्रदायिक मुद्दों का किया जाएगा और लोगों में अंध राष्ट्रवाद को उभारा जाएगा, उतनी ही अधिक मोदी को पुन: राज सिंहासन पर बैठाने की गारंटी होगी। यह है विनाशकारी फार्मूला जिसके आसरे भाजपा अध्यक्ष लोकसभा चुनाव जीतने के बड़े-बड़े दावे करते हैं। 

नि:संदेह साम्प्रदायिक नजरिए से किया जाता हर तरह का दंगा तथा आतंकवाद मानवता के विरुद्ध है। चाहे यह जम्मू-कश्मीर, गुजरात या पंजाब की देशभक्ति तथा बहादुरी से सरशार धरती पर हुआ हो जिसमें हजारों लोगों की बलि ली गई। कोई भी संवेदनशील, प्रगतिशील तथा सच का धनी व्यक्ति किसी आतंकवादी कार्रवाई का समर्थक नहीं हो सकता मगर समझने की बात यह है कि केवल वही आतंकवाद देश का मुख्य दुश्मन है, जिसे संघ की विचारधारा परिभाषित करती है अर्थात मुस्लिम समुदाय के कुछ सिरफिरे तत्वों द्वारा की जातीं आतंकवादी या हिंसक कार्रवाइयां। इसी सोच के अंतर्गत संघ ने कभी भी संघी सेनाओं द्वारा किसी जगह की गई हिंसक कार्रवाई की खुल कर आलोचना नहीं की और न ही दोषियों के लिए सजा की मांग करते उनके विरुद्ध कोई रोष प्रदर्शन किया। क्या आक्सीजन तथा दवाइयों की कमी के कारण मासूम बच्चों की मौतों की गिनती आतंकवादी कार्रवाइयों में मानवीय जानें जाने से कम संवेदनशील है? लाखों की गिनती में बेकारी, गरीबी तथा कर्जों के बोझ से हो रही आत्महत्याएं हमारी नजरों में क्यों नहीं आतीं? 

सामाजिक अत्याचार के शिकार दलित, गरीबी झेल रहे करोड़ों लोग तथा मासूम बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्म क्या टी.वी. जैसे प्रचार साधनों की बहस का प्रमुख मुद्दा नहीं बनने चाहिएं? क्या लोगों में साम्प्रदायिक फूट डाल कर नफरत के बीज बोने वाले लोगों तथा राजनीतिक दलों बारे लोगों को जागरूक करना और अमन-शांति का संदेश देना वास्तविक देशभक्ति है या हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर टकराव पैदा कर राजनीतिक दुकानें चलाने वाले भद्र पुरुषों की ओछी हरकतों को बढ़ावा देना देशहित में है? यह निर्णय 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में देशवासियों को करना होगा। इस बात का भी इतिहास गवाह है कि जब भी देश पर बाहरी या आंतरिक दुश्मनों द्वारा कोई वार किया गया तो सभी देशवासियों ने मिल कर उसका मुंह तोड़ जवाब दिया है इसलिए भारतीय लोगों को संघ से देशभक्ति का सर्टीफिकेट लेने की जरूरत नहीं है। 

संघ द्वारा कुछ समय पूर्व अपने एक कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को बुलाया गया था। उस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत तथा मुख्य मेहमान पूर्व राष्ट्रपति द्वारा दिए गए भाषणों ने देश का संवारा तो कुछ नहीं मगर संघ बारे वैचारिक धुंध और फैलाने में मदद जरूर की। अब संघ के नेताओं ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में अन्य राजनीतिक दलों तथा कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों को बुलाया ताकि वे संघ के विचारों को अच्छी तरह से समझ सकें। वास्तव में यह भी संघ की साम्प्रदायिक तथा विभाजनकारी विचारधारा में मुसलमानों तथा ईसाइयों के विरुद्ध नफरत और दलितों, महिलाओं व अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को गुलामी में धकेलने वाली मनुवादी व्यवस्था पर पर्दा डालने का ही एक प्रयास था। इन सभी कार्यक्रमों के लिए समय का चुनाव भी आने वाले लोकसभा तथा कुछ प्रांतीय विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया गया। 

संघ के झूठ की कोई सीमा नहीं है। एक ओर मोहन भागवत व नरेन्द्र मोदी देश की अनेकता तथा सहनशीलता की परम्परा का गुणगान करते नहीं थकते और देश के विकास में ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे लगाते हैं, मगर दूसरी ओर संघ से जुड़े बजरंग दल, गौरक्षक, स्वदेशी जागरण मंच, विश्व हिन्दू परिषद तथा भाजपा जैसे संगठनों के कार्यकत्र्ता हर रोज गौ मांस का सेवन करने के झूठे बहाने लगाकर बेकसूर मुसलमानों की हत्याएं करते हैं, पशुओं के व्यापारियों पर गौ हत्या के झूठे आरोप लगाकर भीड़तंत्र में भागीदार हैं। दलित नौजवानों को शादी के समय घोड़ी चढऩे तथा मूंछें रखने के आरोप में कत्ल या बेइज्जत कर देते हैं और बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को सम्मानित करते हैं। 

संघ की साम्प्रदायिकता का विरोध करने वाले लेखकों व बुद्धिजीवियों को ‘देशद्रोही’ होने के फतवे जारी करना ‘नागपुरी विचारधारा’ की रोजमर्रा की गतिविधियों का एक अभिन्न अंग बन गया है। लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए मोहन भागवत या नरेन्द्र मोदी चाहे जितनी मर्जी सफाइयां दें, वास्तव में उन्होंने ‘साम्प्रदायिक जिन्न’ को बोतल से बाहर निकाल दिया है, जो अब अपने खेल में मस्त है। देश के लगभग 1.35 अरब लोगों के महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा, आवास, अमन-शांति जैसे सभी प्रश्र सांझे हैं, जिनकी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की तरह मोदी सरकार ने भी पूरी तरह अनदेखी की है। 

जब देश में 2019 के लोकसभा चुनावों का एजैंडा निर्धारित हो रहा है तो लाजिमी है कि उपरोक्त मुद्दों बारे सार्थक बहसें हों, दोषी धरे जाएं तथा मुद्दे हल करने के उचित ढंग खोजे जाएं। ये मुद्दे सभी लोगों के सांझे हैं। इनको लोगों की सोच से हटाने की कोई भी चाल देशवासियों के हितों से खिलवाड़ है। जो मुद्दे लोगों में आपसी दुश्मनी पैदा करते हों, भड़का कर साम्प्रदायिक दंगों को जन्म देते हैं तथा असामाजिक तत्वों को लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने का अवसर देते हैं उनको किसी भी पक्ष से लोगों की मानसिकता का हिस्सा बनने से रोकना पड़ेगा। शायद अब समय आ गया है कि भारतीय लोग अपने अच्छे भविष्य के लिए मेल-मिलाप वाला माहौल कायम करने हेतु संघ के जर-खरीद टी.वी. चैनलों का बायकाट करने की दिशा में सोचें। साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा आम लोगों को शहद मिलाकर परोसा जा रहा ऐसा जहर हर कीमत पर रद्द किया जाना चाहिए।-मंगत राम पासला

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