ऐसे तो सुरक्षित नहीं बनेगा सड़क का सफर

Edited By ,Updated: 11 Mar, 2024 05:26 AM

road travel will not be safe like this

ट्रांसपोर्टर्स और ट्रक चालकों की हड़ताल से चुनावी दबाव में हिट एंड रन मामलों में सख्त सजा वाले प्रावधान को लागू करने पर फिलहाल रोक लग गई है, पर भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और उनमें रिकॉर्ड मौतों का सवाल मुंह बाए खड़ा है। बेशक सवाल नया नहीं है, पर...

ट्रांसपोर्टर्स और ट्रक चालकों की हड़ताल से चुनावी दबाव में हिट एंड रन मामलों में सख्त सजा वाले प्रावधान को लागू करने पर फिलहाल रोक लग गई है, पर भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं और उनमें रिकॉर्ड मौतों का सवाल मुंह बाए खड़ा है। बेशक सवाल नया नहीं है, पर असहज सवालों से मुंह चुराने की हमारी आदत भी पुरानी है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022 में देश में हुई 4,61,312 सड़क दुर्घटनाओं में 1,68491 लोग मारे गए। इनके अलावा 4,43,366 लोग घायल भी हुए। 2021 के मुकाबले 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में 12 प्रतिशत की वृद्धि बताती है कि साल-दर-साल सड़क हादसे बढ़ते ही जा रहे हैं।

2021 के मुकाबले 2022 में मृतक संख्या 9.4 तो घायलों की संख्या भी 15.3 प्रतिशत बढ़ी। 2022 में भारत में हर दिन औसतन 462 लोगों ने सड़क हादसों में अपनी जान गंवाई, यानी हर घंटे 19 लोग मारे गए। सबसे ज्यादा 13.9 प्रतिशत हादसे तमिलनाडु में हुए लेकिन सबसे ज्यादा यानी 13.4 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं। खुद सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि सड़क हादसों में होने वाली 10 में से 7 यानी 70 प्रतिशत मौतों का कारण ओवर स्पीङ्क्षडग है। सवाल उठता है कि ओवर स्पीडिंग पर अंकुश के लिए क्या कारगर कदम उठाए जा रहे हैं? ट्रैफिक पुलिस द्वारा चालान काट देना भर इसका कारगर निदान नहीं हो सकता, क्योंकि एक तो पुलिस हर जगह उपस्थित नहीं हो सकती, दूसरे उसकी कारगुजारियां भी किसी से छिपी नहीं हैं। इधर राजमार्गों पर कैमरे लगाने के काम में तेजी आई है, पर क्या

आधुनिकीकरण के नाम पर वाहनों की रफ्तार क्षमता में लगातार वृद्धि विरोधाभासी नहीं है? नशे में ड्राइविंग भी सड़क हादसों का बड़ा कारण मानी जाती है, पर एक ओर सरकार नशे में ड्राइविंग न करने की नसीहत का प्रचार करती है, तो दूसरी ओर ठेकों और बार में शराब की उपलब्धता देर रात तक बढ़ाई जा रही है? आंकड़ों के मुताबिक 5.2 प्रतिशत मौतें गलत दिशा से ड्राइविंग से होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो छोडि़ए, व्यस्त शहरों तक में इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने में ट्रैफिक पुलिस नाकाम नजर आती है। जगह-जगह डिवाइडर तोड़ कर अवैध कट बना लिए जाते हैं और संबंधित विभाग बड़ा हादसा होने तक अनजान बने रहते हैं? सभी जानते हैं कि ट्रैफिक पुलिस यातायात व्यवस्था सुचारू रखने से ज्यादा पेड़ों या अन्य चीजों के पीछे छिप कर ट्रैफिक सिगनल पर चालान काटने में व्यस्त रहती है। 

आंकड़े यह भी उपलब्ध हैं कि सीट बैल्ट या हैलमेट न पहनने के कारण कितनी जानें जाती हैं। सरकारी रिपोर्ट ही बताती है कि सबसे ज्यादा 68 प्रतिशत सड़क हादसे ग्रामीण क्षेत्रों में होते हैं, जबकि शेष 32 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में। नैशनल हाइवे पर होने वाले हादसों का प्रतिशत 36.2 है, तो स्टेट हाइवे पर होने वाले हादसों का 24.3, जबकि सबसे ज्यादा 39.4 प्रतिशत हादसे अन्य सड़क मार्गों पर होते हैं। मरने वालों में 45 प्रतिशत के आसपास टू व्हीलर चालक होते हैं, तो लगभग 19 प्रतिशत पैदल यात्री। 

क्या सड़क हादसों के इन आंकड़ों का बारीकी से अध्ययन कर कारगर निदान खोजने की कोई विशेष व्यवस्था देश में है? शायद नहीं, क्योंकि अगर होती तो खराब सड़कें, लापरवाह ड्राइविंग और बेपरवाह सरकारी तंत्र मिल कर सड़क के सफर को हादसों का सफर नहीं बना रहे होते। अगर देश की राजधानी दिल्ली तक में फ्लाई ओवर और सड़क के डिजाइन में खामियां सामने आएं तो शेष देश के बारे में ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं रह जाती। शहरी क्षेत्रों में गड्ढा रहित सड़क ढूंढ पाना चुनौतीपूर्ण कार्य है, तो ग्रामीण सड़कों की स्थिति की तो कल्पना ही की जा सकती है। भारी-भरकम टोल टैक्स वसूली का जरिया बने नए-नए एक्सप्रैस-वे का डिजाइन और सड़कों की क्वालिटी पर उठते सवाल बहुत कुछ कहते हैं, मगर कोई देखने-सुनने वाला तो हो। 

क्या सरकार देश में ड्राइविंग ट्रेङ्क्षनग की विश्वसनीय व्यवस्था का दावा कर सकती है? यह भी कि ट्रैफिक सिग्नल्स ठीक से काम करते हैं? शहरों से ले कर कस्बों तक के ड्राइविंग स्कूलों में कौन, कैसी ड्राइविंग सिखाता है और किस तरह ड्राइविंग लाइसैंस बनते हैं, यह बात आम आदमी अच्छी तरह जानता है, तो अनजान सरकार भी नहीं होगी? दुनियाभर के आंकड़े बताते हैं कि अगर देश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बेहतर और विश्वसनीय हो, तब लोग निजी वाहनों का उपयोग विशेष परिस्थितियों में ही करते हैं। सड़क पर वाहनों की संख्या कम होने से हादसों की आशंका ही नहीं घटती, जानलेवा वायु प्रदूषण और उससे होने वाली बीमारियों से भी जनता बच जाती है। लेकिन हमारे देश में आजादी के 75 साल बाद भी विश्वसनीय बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट न सिर्फ सपना बना हुआ है, बल्कि सरकारी बसें कम करते हुए इसे ट्रांसपोर्ट माफिया के लिए खोल दिया गया है। 

यह आंकड़ा सरकारी दावों और जिम्मेदार नागरिक-चरित्र, दोनों पर ही बड़ा सवालिया निशान है कि सड़क हादसों में दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं, जबकि दुनिया भर में मौजूद वाहनों की संख्या का मात्र 1 प्रतिशत ही भारत में है। वल्र्ड बैंक की एक स्टडी के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में होने वाली मौतें देश की अर्थव्यवस्था पर जी.डी.पी. के 5 से 7 प्रतिशत तक असर डाल रही हैं। बेशक अंतर्राष्ट्रीय आंकड़े हैं कि सड़क हादसों में होने वाली 90 प्रतिशत मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं, लेकिन उनमें सबसे ज्यादा 11 प्रतिशत भारत में ही होती हैं। फिर भी लगता नहीं कि इन आंकड़ों से हमारे नीति-नियंताओं पर कोई असर पड़ता है।-राज कुमार सिंह 
 

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