ऑटोमोबाइल सैक्टर को 57,042 करोड़ रुपए का प्रोत्साहन, छोटे उद्यमी को कुछ नहीं

Edited By ,Updated: 23 Jun, 2021 05:38 AM

rs 57 042 crore incentive to automobile sector nothing to small entrepreneurs

सभी हितधारकों के बीच उस समय खुशी की लहर दौड़ गई जब केन्द्र सरकार ने निर्माण क्षेत्र के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पी.एल.आई.) स्कीम की एक कड़ी की घोषणा की। दस महत्वपूर्ण

सभी हितधारकों के बीच उस समय खुशी की लहर दौड़ गई जब केन्द्र सरकार ने निर्माण क्षेत्र के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पी.एल.आई.) स्कीम की एक कड़ी की घोषणा की। दस महत्वपूर्ण निर्माण क्षेत्रों के लिए 1.46 लाख करोड़ रुपए पी.एल.आई. में से  57,042 करोड़ रुपए का बड़ा हिस्सा हजारों लघु, मध्यम उद्यम (एस.एम.ईज) को दरकिनार करते हुए मात्र 5 से 7 बड़ी ऑटोमोबाइल क पनियों तथा 15 से 20 ऑटो कलपुर्जे उद्योगों को दिए जाने की तैयारी की है। 

बेशक उद्योगों को उभारने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारें अनेकों प्रोत्साहन दे रही हैं ताकि अर्थव्यवस्था पर पड़े कोरोना महामारी के प्रभाव को कम किया जा सके। मगर प्रोत्साहन का आबंटन तथा उसकी डिजानिंग के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत है। ऐसा प्रतीत होता है कि नीति निर्माताओं का लक्ष्य चंद बड़ी क पनियों की मदद करने का है। मगर ज्यादातर क पनियों को जानबूझ कर छोड़ दिया गया है। हालांकि यह सुनने में अजीब है मगर वास्तविकता यही है।

57,042 करोड़ रुपए में से एक भी पैसा एस.एम.ईज के हिस्से नहीं आएगा। यहां तक कि भारतीय ऑटो कलपुर्जे उद्योग का ‘मक्का’ कहे जाने वाले लुधियाना को भी पूरी तरह नकार दिया गया। आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सिद्धांत कैसे लागू होगा यदि कुछ बड़ी क पनियां दूसरों की लागत पर प्रोत्साहित की जाएं।

पी.एल.आई. स्कीम नोटिफाई होने से पहले नीति आयोग, भारी उद्योग एवं सरकारी उद्यम मंत्रालय को पुनॢवचार करना चाहिए क्योंकि बनाई गई स्कीम सरकार के समग्र विकास मॉडल के खिलाफ है। जिस टीम ने इस स्कीम को तैयार किया है उसमें शामिल  5 से 7 बड़े कार्पोरेट्स ने अपने हितों के लिए बाकी समूचे ऑटोमोबाइल उद्योग की अनदेखी की है। मगर यहां देश की निर्माण तथा व्यापार प्रतिस्पद्र्धा के समावेशी निहितार्थ की जरूरत है। क्योंकि महामारी ने भारतीय ऑटोमोबाइल सैक्टर को बुरी तरह से प्रभावित किया है और ऑटो कलपुर्जे क्षेत्र में एस.एम.ईज ने पहले से ही घरेलू तथा निर्यात मांग में गिरावट दर्ज की है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में उनका राजस्व 60 प्रतिशत तक गिरने की स भावना है।

ऑटोमोबाइल सैक्टर के लिए ग्लोबल चै िपयन स्कीम के अनुसार 21 मार्च 2021 तक 10 हजार करोड़ की टर्नओवर, 2 हजार करोड़ का निर्यात तथा 35 सौ करोड़ रुपए की अचल स पत्तियां योग्यता का मापदंड है। ऑटो कलपुर्जे निर्माण के लिए इस मापदंड में 1 हजार करोड़ रुपए की टर्नओवर, 200 करोड़ रुपए का निर्यात, 350 करोड़ रुपए की अचल स पत्तियां तथा कम से कम निर्यात उत्पादों में 80 प्रतिशत स्थानीय सामग्री शामिल है। यह स्कीम ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देगी जहां बड़ी कंपनी और बड़ी हो जाएगी और छोटी क पनियां उन पर और ज्यादा निर्भर हो जाएंगी। उपरोक्त मापदंड के तहत 57,042 करोड़ का लाभ पाने की योग्यता केवल 5 से 7 मूल उपकरण निर्माताओं (ओ.ई.एम.) आटोमोबाइल क पनियों और 15 से 20 कलपुर्जे निर्माता बड़ी क पनियों तक सीमित हो जाएगी। 

भारतीय प्रोमोटरों के स्वामित्व वाली करीब 90 प्रतिशत क पनियां 1000 करोड़ रुपए के  प्रस्तावित राजस्व कटऑफ से भी नीचे गिर जाएंगी। वे देश में कुल कलपुर्जे निर्माण इकाइयों का करीब 64 प्रतिशत हिस्सा बनते हैं। बाकी क पनियों का 36 प्रतिशत या तो संयुक्त उपक्रम या विदेशी स्वामित्व वाला है। मगर यह राजस्व का 68 प्रतिशत है। यदि ड्राफ्ट पॉलिसी लागू हो गई तो फर्क और ज्यादा चौड़ा हो जाएगा। इसके नतीजे में के-आकार की रिकवरी होगी जहां छोटे कमजोर बन जाएंगे और बड़ी क पनियां बड़े प्रोत्साहन के जरिए और बड़ी हो जाएंगी। ऑटोमोबाइल  सैक्टर के लिए पी.एल.आई. स्कीम में कई गंभीर कमियां हैं। एक तो इसके लिए कुछ ही बड़ी ऑटोमोबाइल क पनियों को प्रोत्साहन हेतु आवेदन करने का मौका है। 

यदि पी.एल.आई. स्कीम को समूचे आटो मोबाइल सैक्टर में लागू किया जाए तो अगले एक दशक तक भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ेगा। आटो कलपुर्जे के आयात पर निर्भरता में कमी की जा सकती है। अभी भारत विश्व में 17 बिलियन डालर (1.28 लाख करोड़) के कलपुर्जे का सलाना आयात करता है। जिसमें से 26 प्रतिशत या 4.5 बिलियन डॉलर (37,750 करोड़ रुपए) के आटो कलपुर्जों का आयात चीन से, 14 प्रतिशत जर्मनी से, 10 प्रतिशत दक्षिण कोरिया तथा 9 प्रतिशत जापान से हो रहा है। 

वाहनों की बिक्री और सप्लाई चेन के बारे में व्यापक अनिश्चितता के बीच ऑटोमोबाइल क पनियां अब भविष्य के बारे में योजना बनाने का सपना देख रही हैं। बड़ी पी.एल.आई. स्कीम ने निवेश पर इस आशा में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं कि पी.एल.आई. से 5 वर्षों से ऊपर 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का अतिरिक्त निवेश होगा। इससे 58.84 लाख नौकरियों की क्षमता का अतिरिक्त रोजगार सृजन होगा। मगर इस लक्ष्य को पाने के लिए नीति निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि  पी.एल.आई. स्कीम का बड़ी क पनियों को सीमित लाभ बड़ी चुनौती है। 

सरकार ने टैलीकॉम उपकरण निर्माताओं के लिए 12,195 करोड़ रुपए का पी.एल.आई. दिया था जोकि सभी क पनियों के लिए समावेशी और अनुकूलनीय है। सरकार ने विशेष तौर पर अपने दिमाग में छोटे-मध्यम उद्यम की भूमिका को रखा ताकि स्थानीय विॢनर्माण को प्रोत्साहित किया जा सके। टैलीकॉम सैक्टर में एम.एस.एम.ईज के लिए पहले 3 वर्षों में 1 प्रतिशत ऊंचा प्रोत्साहन प्रस्तावित है और उनके लिए न्यूनतम निवेश मात्र 10 करोड़ पर तय किया गया है। अन्य कंपनियों के लिए मात्र 100 करोड़ रुपए का योग्यता मापदंड रखा गया है। टैलीकॉम उपकरण उत्पादन हेतु यह नि न योग्यता मापदंड ऑटोमोबाइल सैक्टर के लिए प्रस्तावित पी.एल.आई. के बिल्कुल उलट है। 

टैलीकॉम उपकरण तथा ऑटोमोबाइल सैक्टर में उत्पादन हेतु योग्यता मापदंड में ऐसा भेदभाव नहीं होना चाहिए। ऑटोमोबाइल सैक्टर के लिए  पी.एल.आई. स्कीम का लाभ ज्यादा से ज्यादा क पनियों खासकर छोटे उद्यमियों को भी देने का उद्देश्य होना चाहिए। यहां तक कि स्कीम में ट्रैक्टर निर्माताओं को भी शामिल करना चाहिए ताकि वे वैश्विक स्तर के लिए अपनी क्षमताएं बढ़ा सकें जिससे देश के किसानों को कृषि उपकरण और सस्ते उपलब्ध हों।

नीति निर्माताओं को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन ‘सबका साथ, सबका विकास’ को चरितार्थ करने के लिए लघु तथा मध्यम उद्योगों को भी उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना में शामिल करने बारे कड़े व जटिल मापदंड को सरल करने के बारे पुनॢवचार करना चाहिए। (पंजाब राज्य योजना बोर्ड के वाइस चेयरमैन, सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन)-अमृत सागर मित्तल

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